इन एक्टर्स के सामने इनसिक्योर हो जाते हैं नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ..खुद किया खुलासा
बॉलीवुड एक्टर नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने अपनी आने वाली फिल्म हीरोपंती 2 को लेकर बात की. बता दें कि फिल्म में टाइगर श्रॉफ औऱ तारा सुतारिया भी है. फिल्म 29 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है.
हर किरदार में रच बस जाने के लिए फेमस अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) जल्द ही हीरोपंती 2 (Heropanti 2) में नज़र आएंगे. जिसमें वह अपने अभिनय के नए रंग बिखेरेंगे. उनके इस प्रोजेक्ट, कमर्शियल सिनेमा, साउथ सिनेमा सहित कई मुद्दों पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत.
मुश्किल किरदारों को आसानी से कर देना आपकी खासियत है लेकिन हीरोपंती 2 का जो किरदार है वो काफी अलग है?
इस किरदार में मैंने थोड़ा फेमिनिन टच रखा है. हमलोगों ने मिलकर किरदार को ऐसा गढ़ा था. थिएटर के समय से मेरी ये ख्वाइश थी कि कभी विलेन का रोल करूं तो उसमें फेमिनिन टच रखूं तो वो और ज़्यादा डेडली लगेगा. एक ख्वाइश हीरोपंती से पूरी हुई है.
टाइगर के साथ दूसरी फिल्म है कैसा अनुभव रहा?
अच्छा था. आज के एक्टर बॉडी पर ज़्यादा मेहनत करते हैं. स्टार्स और सुपरस्टार्स जो होते हैं. उनके काम करने का तरीका एक होता है. दूसरे एक्टर्स का तरीका अलग होता है. उनका क्राफ्ट अलग होता है.
आप किसी फिल्म के लिए बॉडी बना सकते हैं?
हां क्यों नहीं किसी किरदार की अगर डिमांड बिस्किट पेट पर बनाने की रहेगी तो ज़रूर करूंगा. मैं बनाकर घूम नहीं सकता हूं. फ़िल्म के लिए ज़रूरत पड़ी तो बना लूंगा.
फ़िल्म का शीर्षक हीरोपंती है आपने निजी जिंदगी में कभी कोई हीरोपंती की है?
रियल लाइफ में कोशिश की थी तो बहुत पिटाई हुई थी. उस वक़्त उम्र 17 या 18 साल की रही होगी. क्रिकेट मैच खेल रहे थे. कोई और ग्रुप भी था. बोला हम पहले खेलेंगे तुमलोग बाद में खेलना. मैं आया बीच में बोला क्या कह रहा है तू हमलोग ही पहले खेलेंगे. सबसे पहले उसने मुझे ऊपर से नीचे देखा फिर बोला क्या कह रहा है तू? वो जो सरकंडे होते हैं. उनको उनलोगों ने तोड़े औऱ मेरी पिटाई शुरू कर दी. बहुत पिटाई की थी. उसके बाद मैंने कभी हीरोपंती नहीं दिखायी.
कितने अलग किरदारों को करने की ख्वाहिश है?
अब तो और मेरे दिमाग में अजीबोगरीब आइडियाज आते रहते हैं. मैं खुद की एक फ़िल्म लिख रहा हूं फेस्टिवल्स के लिए. एक थिएटर के एक्टर के ऊपर है. एक्टिंग में मैं ही रहूंगा. डायरेक्शन में कौन होगा ये सोच रहे हैं.
ये जो कहानी आप एक्टर की लिख रहे हैं क्या ये आपसे प्रभावित है?
मुझसे ही नहीं कई एक्टर्स के साथ ऐसा हुआ है. थिएटर के दौरान मेरे साथ जो एक्टर्स हैं. उनमें कइयों की ये कहानी थी.
आपने कमर्शियल और आर्ट फिल्मों के बीच बहुत अच्छा बैलेंस किया है निजी तौर पर क्या आपको ज़्यादा पसंद है?
मेरा बदलता रहता है. पिछले दो साल से मुझे रोमांस करने की भूख थी तो मैं रोमांस करते जा रहा था. अब उससे भी मोह भंग हो गया है. मुझे ह्यूमन माइंड की विविधता लुभाती है. एक ही मां के चार बच्चे हैं. शक्ल सूरत भले एक ही हो लेकिन सोच बहुत अलग. मुझे वही अपील करता है.
पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया इंफ्ल्यूएन्सर्स को उनके फॉलोवर्स देखकर एक्टिंग में मौके दिए जा रहे हैं,आप काफी ट्रेनिंग के साथ आते हैं आपकी क्या सोच है?
आप जब एक मिनट की चीज़ बनाते हैं तो उसमें आप बहुत अच्छा कर सकते हैं. जो ट्रेंड चल रहा होता है उसके अनुसार आप नाच सकते हैं. गा सकते हैं. कोई जोक सुना सकते हैं. लेकिन फ़िल्म जो होती है. वो क्रिकेट टेस्ट मैच की तरह होती है. आपको ढाई घंटे होल्ड करना है तो वहां घोड़े खुल जाते हैं. किरदार को पकड़े रहना. कंटीन्यूटी को मेन्टेन करना. ये सब दो ढाई महीने तक करना होता है. जो आसान नहीं होता है.
अभी हाल ही में खबरें आयी थी कि आपने दो सौ स्क्रिप्ट्स को ना कहा है किसी स्क्रिप्ट को हां कहने के लिए आपके लिए सबसे ज़रूरी क्या होता है
आजकल हमारे यहां जो फिल्में बन रही हैं सबकुछ लैविश है. करोड़ो रूपये फ़िल्म को बनाने में लग रहे हैं. लोग पागल हुए जा रहे हैं. आजकल चौकाने वाली चीज़ें चल रही हैं. चौंका दो कैसे भी. फ्लाइट जो ऊपर उड़ती है उसे पानी में घुसा दो. इसको उड़ा दो. हालांकि मै भी इस तरह की फिल्में करता हूं लेकिन मेरा विश्वास नहीं है. मैं कैरेक्टर ड्रिवेन फिल्में करना चाहता हूं. हमारे यहां वक़्त लगेगा ऐसी फिल्मों को आने में. स्क्रिप्ट कैरेक्टर ड्रिवेन होनी चाहिए. उदाहरण के लिए मैं न्यूयॉर्क एमी अवार्ड्स के लिए गया था. जो चार एक्टर अवार्ड के लिए नॉमिनेट हुए थे. उनकी फिल्में मैंने देखी. डेविड को बेस्ट एक्टर का अवार्ड मिला. उसकी फ़िल्म मैंने देखी. कमाल की सीरीज है डेस्क. सभी को देखनी चाहिए.
साउथ का सिनेमा इनदिनों बॉलीवुड पर हावी हुआ है?
मैंने कोई सी भी फ़िल्म देखी नहीं है. मुझे दो घंटे बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. उसमें मैं सिलेक्ट करता हूं कि कौन सी फ़िल्म मुझे देखनी है. मैं वर्ल्ड सिनेमा को देखता हूं.
कभी राजामौली ने आपको फ़िल्म आफर की तो आप करेंगे?
मैं तो हीरोपंती भी कर रहा हूं. साजिद भाई क्या कम हैं.
अक्षय कुमार ने हाल ही में कहा था कि सफलता के लिए 30 प्रतिशत मेहनत और 70 प्रतिशत किस्मत चाहिए?
मैं सौ प्रतिशत मेहनत को मानता हूं. मैं उनको गलत नहीं कहता लेकिन मेरी लाइफ का यह अनुभव है कि जो कुछ भी हुआ है. वो चमत्कार या लक से नहीं हुआ है. मैंने जितना खोदा उतना मिला मुझे.
आज के समय में पैसा आपके लिए कितनी अहमियत रखता है?
मुझे एक बात शुरुआत से पता थी कि अगर आप पैसों के ग़ुलाम बनोगे तो. पैसा आएगा नहीं. काबिल बनों. पैसा आएगा. मैंने मंटो फ्री में की थी. आगे भी कोई स्क्रिप्ट पसंद आयी तो फ्री में करूंगा. मुझे सिनेमा से प्यार है पैसों से नहीं. वो बाय प्रोडक्ट है कि पैसा आ जाता है.
ऐसी खबरें आती हैं कि आप जब फ़िल्म से जुड़ते हैं तो हीरो इनसिक्योर हो जाते हैं कभी कोई रोल कटा है या सीन?
मेरा रोल कभी नहीं कटा. एक कटा था बहुत पहले हे राम में. रोल एक ही सीन था. वैसे वो सेंसर में कटा था. किसी एक्टर को इनसिक्योर महसूस नहीं हुआ था.
आप इनसिक्योर एक्टर हैं क्या?
मैं पूरी तरह से सुरक्षित एक्टर हूं. इसकी वजह है. मैं जैसे रोल करना चाहता हूं. वैसे मुझे मिल रहे हैं. एनएसडी पास करने के बाद जब मैंने सोचा था कि बहुत अलग अलग तरह के रोल करूंगा. वो सोच कामयाब हो रही है. सीरियस मैन,नो मैन लैंड्स, हीरोपंती जैसी फिल्में कर रहा हूं. वैसे मैं जो चाइल्ड एक्टर्स के सामने नर्वस हो जाता हूं. इनसिक्योर भी क्योंकि बच्चे जो भी बोलते हैं. वो सच लगता है.
ये फ़िल्म ईद पर आ रही है कि ईद से जुड़ी क्या खास यादें रही हैं?
बचपन में जब गांव में रहते थे तो पचास पैसे पच्चीस पैसे बड़े बुजुर्गों से ईदी मिल जाया करती थी. मुझे याद है हम जिस गांव में रहते थे. उससे छोटा गांव मेरी मां का था. ईद पर हम वहां जाते थे. मेरे नाना एक चारपाई पर पड़े रहते थे. बुलाते इधर आ और अपनी अन्टी में से 25 पैसे निकालकर मुझे दे देते थे और कहते थे कि किसी को मत बताना. सारे बच्चों को वो यही कहते थे और बच्चे इस सस्पेंस को बनाये रखने की बहुत कोशिश करते थे.
आपने मुम्बई में नया घर बनवाया है कितना नवाबों वाली फीलिंग आ रही है?
सच कहूं तो मैं उस टाइप का हूं नहीं जो ये सोचे कि मैं घर बनाऊंगा. उसमें रहूंगा. किसी ने जगह दिखायी तो सोचा चलो बना लेते हैं. मैं बताना चाहूंगा कि जब मैं पहले शिफ्ट हुआ तो वहां सबसे बड़े वाले रूम में सो रहा था लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी फिर मैंने अपना बेड सबसे छोटे वाले रूम में शिफ्ट करवाया. वहां पर सिर्फ एक बेड है औऱ दो चेयर मुझे वहां नींद आती है. मुझे समझ आ गया कि मेरी औकात यही है. इतने में ही रहता हूं.
आप हाल ही लोकल ट्रेन में भी सफर करते दिखें थे क्या आपको आम रहना पसंद है?
मैं मीरा रोड में शूट कर रहा था और एक कॉन्क्लेव में मुझे जाना था. एक ही घंटा बचा था. समझ आ गया था कि यह ट्रेन से ही मुमकिन है. उसकी वजह से टाइम पर पहुंच जाऊंगा. दस साल पहले मैं ट्रेन से ही सफर कर रहा था. बीच बीच में टाउन साइड जाना होता था मुम्बई की लोकल ट्रेन में ही जाता था. मैं आम लोगों के बीच खुलकर सांस लेता हूं .भईया वहीं से आए ही हैं तो अच्छा लगेगा ही.
लक्जरी लाइफ की क्या चीज़ें आपको पसंद है?
लक्जरी क्या है. वो सिर्फ एक बहकावा है. मैंने बहुत चाहा कि कुछ महंगे कपड़े पहनूं. कुछ शौक बनाऊं अपने. कुछ शौक पालूं अपने लेकिन वो हो नहीं पाया. जूते भी जो हैं. वो मेरे भाई के मैं पहन लेता हूं. ये जूता भी भाई का है.