बादल
कृषि मंत्री, झारखंड सरकार.
Prabhat Khabar, Dhanbad Foundation Day: झारखंड में अभी लगभग 33 लाख टन सब्जियों का सालाना उत्पादन है. जिसमें करीब 18 लाख टन मार्केटिंग सरप्लस के रूप में दूसरे राज्यों में भेजी जाती है. अगले दस सालों में इसे नौ लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जाएगा और उत्पादन एक सौ लाख टन से अधिक करने की योजना है. साथ ही साथ सब्जियों के निर्यात निति भी लायी जायगी. कृषि निर्यात नीति का काम पूर्ण कर लिया गया है और जल्द ही लागू भी कर दी जायेगी. कृषकों को उनके उत्पादों के सही दाम दिलाने तथा सही प्लेटफॉर्म दिलाने की दिशा में कृषि विपणन संरचना पर ध्यान दिया जा रहा है. सुदृढ़ीकरण की दिशा में कृषि विपणन विधेयक को दुबारा लागू किया जा रहा है ताकि कृषकों को एक व्यवस्थित स्थान मिले और बिचौलियों से भी छुटकारा मिले. राज्य में अभी 19 विपणन समितियां ई-नाम से जुड़ी हुई.
70 फीसदी जनसंख्या कृषि पर आधारित
कृषि एवं संबधित क्षेत्र जैसे पशुपालन, डेरी तथा मत्स्य पालन में झारखंड राज्य में पिछले कुछ सालों में प्रगति तो हुई है, किंतु अभी भी राज्य इन क्षेत्रों में पूर्णत: आत्मनिर्भर नहीं हो सका है जबकि संसाधनों की कमी नहीं है. यह राज्य भी कृषि प्रधान राज्य है और करीब 70 फीसदी जनसंख्या कृषि पर ही आधारित है, परंतु सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि भागीदारी साल दर साल घटी है. अतः राज्य में कृषि एवं संबधित क्षेत्र जैसे पशुपालन, डेरी तथा मत्स्य को एक साथ देखने की आवयश्कता है और मौजूद संसाधनों का व्यस्थित उपोग करते हुए दीर्घ अवधि के लिए कार्ययोजना बनाने की जरूरत है. कृषि एवं संबधित क्षेत्र की कार्य योजना राज्य की भौगोलिक संरचना, वातावरण, वर्षा तथा कृषकों की अभिरुचि के अनुसार होनी चाहिए.
सिंचाई व्यवस्था
राज्य में लगभग 38 लाख हेक्टेयर भूमि खेती योग्य है, किंतु सात-आठ लाख भूमि ही सिंचाई से आच्छादित है. हालांकि यहां 1200-1300 मिलीमीटर वर्षा होती है, किंतु वर्षा जल के उपयोग का प्रबंधन नहीं होने के कारण सूखा के समय में कृषि की स्थिति बिगड़ जाती है. राज्य में बागवानी के लिए काफी क्षमता और संभावना है और बागवानी बिना सिंचाई प्रबंधन के संभव नहीं है. इसीलिए लगभग 50 फीसदी खेती तो सिंचाई प्रबंधन से आच्छादित करने की योजना पर कार्य किया जायेगा. खासकर सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था जैसे ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंक्लर सिंचाई इत्यादि तकनीक पर जोर दिया जायेगा, जिससे जल का सही एवं व्यस्थित उपयोग हो और कृषि उत्पादन को भो बढ़ावा मिले. राज्य में जल बड़े स्रोतों जैसे डैम, कोल पिट्स, तालाबों के रखरखाव तथा इन स्रोतों के आसपास कृषि कार्य प्रबंधन आगामी सालों के लिए मुख्य कार्य होगा. नाबार्ड के स्टेट इरीगेशन प्लान को किर्यान्वित किया जाएगा. कृषकों को इसके लिए सम्मिलित रूप से प्रशिक्षित किया जायेगा.
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दलहन की खेती पर फोकस
राज्य की भौगोलिक संरचना, वातावरण दलहन की खेती के लिए बहुत ही उपयुक्त है. यहां पर दलहन की उत्पादकता राष्ट्रीय औसत से करीब 150 किग्रा प्रति हेक्टेयर अधिक है. राष्ट्रीय औसत उत्पादकता करीब 888 किग्रा प्रति हेक्टेयर है. करीब आठ लाख हेक्टेयर पर मुख्य रूप से अरहर, चना, उरद, मूंग, कुल्थी तथा मसूर की खेती की जाती है. अगले दस सालों में दलहन की खेती दुगुना करने की योजना है, जिससे खाद्य एवं स्वस्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी.
सब्जी की खेती और निर्यात नीति
झारखंड में लगभग तीन लाख हेक्टेयर में मुख्य रूप से शिमला मिर्च, फ्रेंच बींस, बरवटी, टमाटर, गाजर, फूलगोभी, भिंडी की खेती काफी की जाती है. अभी लगभग 33 लाख टन सब्जियों का सालाना उत्पादन है, जिसमें करीब 18 लाख टन मार्केटिंग सरप्लस के रूप में दूसरे राज्यों में भेजी जाती है. अगले दस सालों में इसे नौ लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जाएगा और उत्पादन एक सौ लाख टन से अधिक करने की योजना है. साथ ही साथ सब्जियों के निर्यात निति भी लायी जायगी. कृषि निर्यात नीति का काम पूर्ण कर लिया गया है और जल्द ही लागू भी कर दी जायेगी. इसी संबंध में ‘एक जिला एक उत्पाद’ भी तय किया गया है. इसके तहत कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जायेगा.
फोकस एरिया
– नाबार्ड के स्टेट इरीगेशन प्लान का क्रियान्वयन
– ‘एक जिला एक उत्पाद’ के मद्देनजर कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा
– सुदृढ़ीकरण की दिशा में कृषि विपणन विधेयक का दुबारा क्रियान्वयन
– पहले चरण में राज्य के सभी 264 प्रखंडों में एफपीओ का गठन
– अगले दस सालों में दलहन की खेती दोगुना करना
– दस लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में पूर्णत: जैविक खेती की तैयारी
– मछली उत्पादन दो लाख मीट्रिक टन से आठ लाख मीट्रिक टन तक बढ़ाना
– राज्य की दुग्ध प्रसंस्करण क्षमता दस लाख लीटर अर्जित करना
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पॉजिटिव एरिया
– झारखंड में प्राकृतिक जल संसाधन पर्याप्त
– दलहन की उपज औसत से 150 किग्रा प्रति हेक्टेयर अधिक
– राज्य से 18 लाख टन सब्जी अन्य राज्यों में जाती है
– कृषि निर्यात नीति का काम पूर्ण, अब होगा क्रियान्वयन
– उत्पाद की खरीद बिक्री को समितियां इ-नाम से जुड़ीं
– पशुओं की सेवा को प्रखंडों में पशु मोबाइल एंबुलेंस की व्यवस्था
– पर्याप्त मछली उत्पादन, फिशरी में आत्मनिर्भर
कृषि विपणन संरचना का सुदृढ़ीकरण
राज्य में सीधे कृषि विपणन की सुविधा नहीं है. अत: कृषकों को उनके उत्पादों के सही दम दिलाने तथा सही प्लेटफॉर्म दिलाने की दिशा में कृषि विपणन संरचना पर ध्यान दिया जा रहा है. सुदृढ़ीकरण की दिशा में कृषि विपणन विधेयक को दोबारा लागू किया जा रहा है, ताकि कृषकों को एक व्यवस्थित स्थान मिले और बिचौलियों से भी छुटकारा मिले. राज्य में अभी 19 विपणन समितियां ई-नाम से जुड़ी हुई है और बाकी विपणन समितियों को सुदृढ़ कर ई-नाम से जोड़ा जाएगा. कृषि उत्पाद की खरीद-बिक्री की जानकारी से सरकार और जनता अवगत रहेगी. व्यवस्था पर कार्य चल रहा है.
FPO का गठन और सहकारी समितियों का सुदृढ़ीकरण
अभी तक करीब 152 एफपीओ का गठन नाबार्ड, नफेडए एसएफएसी तथा एनसीडीसी द्वारा किया गया है. पहले चरण में सभी 265 प्रखंडों में एफपीओ गठित किया जाएगा और उसके बाद पंचाययत स्तर तक यह विस्तारित होगा. साथ ही सहकारी समितियों को सुदृढ़ किया जाएगा. इस दिशा में बढ़िया करने वाली समितियों को दो-दो लाख रुपये की कार्यशील पूंजी भी प्रदान की जा रही है.
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