फिल्म चितचोर, खट्टा मीठा, पिया का घर और मंज़िल जैसी हल्की फुल्की दिल को छू जाने वाली फिल्मों से हिंदी सिनेमा में खास मुकाम बनाने वाले निर्देशक बासु चटर्जी नहीं रहे. 93 साल के बासु दा पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. उनकी सुपरहिट फिल्मों में से पिया का घर के अभिनेता अनिल धवन ने उनसे जुड़ी अपनी कुछ यादों को उर्मिला कोरी से साझा की. बातचीत के प्रमुख अंश…
पहली मुलाकात
दादा बहुत ही बेहतरीन निर्देशक, अलग किस्म के इंसान थे. बहुत सारी अच्छी फिल्में बनायी हैं. फ़िल्म बनाने का उनका अंदाज़ सबसे हटके था. दादा से पहली मुलाकात मुझे आज भी याद है. मुझे राजश्री वालों ने बुलाया था अपने ऑफिस. राज बाबू (राजकुमार बड़जात्या) वहां मौजूद थे. उनसे बात हुई उन्होंने फिल्म ‘पिया के घर’ के बारे में मुझे बताया और बासु दा से मिलने को कहा. जिसके बाद बासु दा से मेरी मुलाकात हुई. पास के कमरे में मैं और बासु दा बैठे. उन्होंने मुझे कहा कि मैंने तुम्हारी फ़िल्म चेतना देखी. बहुत अच्छी फिल्म थी. उस फिल्म में तुम्हारा सिंपल का किरदार था. उसे देखकर मुझे लगा कि तुम पिया का घर में फिट बैठता है.
बासु दा को समय की बर्बादी नहीं थी पसंद
बासु दा की फिल्में भले ही गुदगुदाती थी लेकिन वह निर्देशक के तौर पर सख्त थे. उनको काम परफेक्ट चाहिए. वो भी समय पर. समय की बर्बादी उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं थी. पूरी तैयारी करके सेट पर आते थे. घर से ही शॉट डिवीज़न सीन का करके आते थे ताकि सेट पर समय बर्बाद ना हो. कैमरामैन को समझा देते थे कि क्या क्या चाहिए जब तक हम कपड़े पहनकर मेकअप करते थे. उसके बाद वो आकर हमको डायलॉग की रीडिंग करवाते थे फिर शूटिंग शुरू.
जब पड़ी उनकी डांट
एक बार एक सीन की शूटिंग के वक़्त डांट पड़ी थी. पिया के घर के वक़्त मैं नया नया बंबई आया हुआ था. रास्ते ज़्यादा मालूम नहीं थे. हमलोग एक सीन की शूटिंग चर्चगेट में कर रहे थे. मैं और जया दोनों ट्रेन में है और कैमरा और बासु दा दोनों सामने सड़क पर खड़ी कार में है. हमको इतना बताया गया था कि जब ट्रेन चलेगी तो हम तुमको पिक्चराइज करेंगे. दोनों आपस में हंस रहे हो. बातें कर रहे हो. यही शॉट होगा. हमने कहा ठीक है. जैसे हमारी ट्रेन चलती है. सड़क पर खड़ी कार और कैमरा भी चल पड़ा और शॉट हो भी गया. थोड़ी देर बाद मुझे और जया को याद आया कि हमने बासु दा से पूछा ही नहीं कि हमें उतरना कौन से स्टेशन है. हमदोनों ही उस वक़्त नए थे. ट्रेन से सफर भी नहीं करते थे. बस से आते जाते थे. मुझे और जया को कुछ नहीं समझा. ट्रेन भागी जा रही है. एक के बाद एक स्टॉप. हमें कुछ नहीं समझा.
हम ट्रेन से उतरे फिर टैक्सी ली और राजश्री के आफिस पहुँच गए. उस वक़्त तो मोबाइल होता नहीं था. आफिस में जाकर मालूम हुआ कि बासु दा ने वहां कॉल किया था.राजश्री वालों ने अगले दिन आने को कहा. अगले दिन जैसे बासु दा ने मुझे देखा बोले तुम कमाल के आदमी हो. ट्रेन से शॉट देकर राजश्री आफिस क्यों चले गए.मैंने कहा उतरना कहाँ था.आपने बताया नहीं.उन्होंने बोला तुमने पूछा क्यों नहीं.उस वक़्त फ़िल्म इंस्टिट्यूट से पढ़कर आए लोगों को लेकर एक सोच इंडस्ट्री में थी कि ये लोग अपने को बहुत काबिल समझते हैं.जैसे सबकुछ आता है. बासु दा ने मुझे और जया को कहा कि तुमलोग जितना सीखकर आए हो अपने पास रखो.हम तुमको जो बताएंगे तुम वही करना.उससे आगे पीछे कुछ नहीं.वैसे बासु दा बहुत अच्छे तरीके से नरेट करते थे.
दादा का घर का स्पेशल खाना
उस ज़माने में सेट का माहौल ही कुछ अलग होता था. मेकअप रूम होता नहीं था. पिया के घर की शूटिंग हमने मुम्बई के रियल चॉल में की थी.कोई इधर खा लिया.कोई उधर बैठकर खा लिया.दादा घर से कभी कुछ खाने को ले आते और बोलते आ जाओ सब.स्पेशल आया है घर से.फिर सबके साथ मिलकर जमीन पर बैठकर ही गप्पे मारते हुए खाना खाते थे.बहुत ही घर जैसा माहौल सेट पर खाने के वक़्त मिलता था.
posted by: Budhmani Minj