आलिया भट्ट की प्रेग्नेंसी को लेकर क्या बोली पूजा भट्ट? जानें Bombay Begums का अगला सीजन कब आएगा

पूजा भट्ट जल्द ही फिल्म चुप रिवेंज ऑफ द आर्टिस्ट रिलीज होने वाली है. इस मूवी से वो एक लंबे समय बाद बड़े पर्दे पर वापसी कर रही है. फिल्म को लेकर एक्ट्रेस ने बात की है. साथ ही उन्होंने आलिया की प्रेग्नेंसी को लेकर भी बात की.

By कोरी | September 18, 2022 8:08 AM
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आगामी शुक्रवार पूजा भट्ट अभिनीत फ़िल्म चुप रिवेंज ऑफ द आर्टिस्ट सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है. इस फ़िल्म से वह 21 सालों बाद रुपहले परदे पर वापसी कर रही हैं. पूजा एक्टिंग के इस दौर को एक्ट्रेसेज के लिए बेस्ट मानती हैं. जहां उनकी उम्र,रंग,वजन कोई मायने नहीं रखती है. उनकी इस फ़िल्म, करियर और कंट्रोवर्सीज पर उर्मिला कोरी से हुई खास बातचीत.

पूजा आप बेबाक बिंदास रही हैं, चुप फिल्म को कैसे हां कह दिया ?

( हंसते हुए ) लोगों को चुप करवाने के लिए. मैंने इस प्रोजेक्ट को इसलिए हां कहा था क्योंकि इसकी कास्टिंग से भी श्रुति महाजन जुडी हुई हैं. जिन्होंने बॉम्बे बेगंस के लिए मेरा चुनाव किया था. श्रुति का जब मुझे चुप के लिए कॉल आया तो एक भरोसा था कि ये मुझे गलत किरदार नहीं देगी. मैंने उसे कहा कि जो भी आप मुझे ऑफर करेंगे. मुझे पता है कि वो अलग होगा. उसने कहा कि आपके विश्वास के लिए शुक्रगुज़ार हूं. इस फिल्म का निर्देशन आर बाल्की कर रहे हैं. मेरे मुंह से निकला वाऊ. मैंने बाल्की का काम देखा है. कुछ मुझे पसंद आया है. कुछ नहीं. उनका एक विजन है. जो मुझे हमेशा अपील करता है. आर बाल्की ने ज़ूम पर मीटिंग की और मुझे अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट भेज दी. मैंने स्क्रिप्ट पढ़नी शुरू की और मैं उसे रख नहीं पायी. इस फिल्म का कोई भी रेफरेंस पॉइंट नहीं है. ना रीजनल फिल्मों में ना ही हॉलीवुड में. इस किस्म की फिल्म नहीं बनी हैं. मैंने कहा कि बस अब क्या जान लेंगे डायरेक्टर सही है. एक्टर सही है. स्क्रिप्ट कमाल है तो क्यूं नहीं करूं.

21 साल बाद आप फिल्मों में वापसी कर रही हैं, क्या उस दौरान आपने एक्टिंग को मिस किया?

मौजूदा दौर एक्ट्रेसेज के लिए बेस्ट है. जब मैं एक्टिंग करती थी. वो फेज अलग था. उस वक़्त तो एक्ट्रेसेज को ये बोलकर फिल्में आफर होती थी कि ये हीरो है. चार गाने हैं. उसके बाद भी आप पूछेंगे तो उनको लगता था कि इसका दिमाग खराब है. बता तो रहा हीरोइन का रोल है. मैं उस तरह के सिस्टम में बतौर एक्ट्रेस खुश नहीं थी इसलिए मैं आर्म कैंडी वाली फिल्मों को मना करने लगी और प्रोडक्शन और निर्देशन में खुद को बिजी कर लिया.

बतौर निर्माता और निर्देशक अपनी जर्नी को कैसे परिभाषित करेंगी?

मैंने तम्मन्ना तब बनायीं थी जब मैं २५ साल की थी. वो बहुत ही खास पल था कि मैं भी फिल्म बना सकती हूं. एक अलग कहानी दुनिया के सामने पेश कर सकती हूं. मुझे पहला नेशनल अवार्ड उसके लिए मिला था. उसके बाद मैंने दुश्मन बनायी. आशुतोष राणा उस फिल्म से लांच हुए थे ,काजोल को बेस्ट एक्ट्रेसेज का अवार्ड भी मिला था. उसके बाद जख्म आयी. उसके बाद सुर और जिस्म. जिस्म के बाद तो पूरा माहौल ही बदल गया. मुझे लगता है कि मैंने अपने खुद के दिल को फॉलो किया. पैसे खुद से इकट्ठा किए. मैं इंडिपेंडेंट प्रोड्यूसर थी. मैंने कॉर्पोरेट कन्धों पर फ़िल्म को रखकर दांव नहीं खेला कि घटा हुआ तो आपका कमाई हुई तो मेरी. हर फिल्म हिट नहीं हो सकती है. कुछ फ्लॉप भी होगी. उस फ्लॉप में भी एक बेसिक अमाउंट की रिकवरी करना वो एक कला होती है. ये मैंने महेश भट्ट और मुकेश भट्ट से ही सीखा कि फ़िल्म बजट में लो लेकिन क्वालिटी में हाई होनी चाहिए. नए लोगों को ब्रेक दो,कहानी सिंपल हो, लेकिन उसे प्लान अच्छे से करो. ३० से ४० दिनों में शूटिंग एक शेड्यूल में ही पूरा कर लो. एक लोकेशन पर ही कहानी को शूट करो।. जैसे हमने जिस्म फ़िल्म को पॉन्डिचेरी में शूट किया था. पूरी फिल्म वहां पर बनीं थी. जिससे लुक ही एक अलग आ गया था उस ज़माने में मुझे लोग बोलते थे कि अरे आप यूरोप नहीं जा रही हो. मैं बोलती कि क्यों जाऊं जब हिंदुस्तान में इतना कुछ है.

चूंकि आप महिला निर्माता और निर्देशक थी क्या इस वजह से और ज़्यादा दिक्कतें आती थी?

महिलाओं के लिए जर्नी कभी आसान नहीं होती हैं. इंडस्ट्री के कुछ लोग थे जो हमेशा ही मेरे खिलाफ थे. महिला प्रोड्यूसर और डायरेक्टर होना उस वक़्त आसान बात नहीं थी. मेरी हर फिल्म को वो पहले ही करार कर देते थे कि नहीं चलेगी. बिपाशा बासु को आप ब्लैक ड्रेस क्यों पहना रही हैं. वो खुद भी ब्लैक हैं. सबकुछ ब्लैक ही दिखेगा. मैंने साफ़ बोल दिया कि सब ब्लैक ब्लैक ही होगा. पाप में लागी तुम से मन की लग्न सुनकर इन्ही लोगों ने कहा था कि राहत की आवाज़ को हिंदुस्तानी लोग स्वीकारेंगे नहीं.. वो गाना आज भी लोगों के जुबान पर है. जॉन अब्राहम के खिलाफ भी लोग थे. एक्टिंग नहीं उसके तो नाम से भी लोगों को दिक्कत थी. ये हीरो का नाम लोग नहीं अपनाएंगे लेकिन वो फ़िल्म ऎसे चली कि बिपाशा और जॉन स्टार बन गए.

चुप के सेट पर क्या आपका निर्देशन पक्ष हावी होता था?

मैं वो बैगेज लेकर नहीं जाती हूं. एक्टर हूं तो सिर्फ एक्टर हूं. मैं आर बाल्की के साथ काम ही क्यों करती अगर मैं उनके अनुसार काम नहीं करना चाहती थी. मैं उनका विजन समझना चाहती थी. मैं उन एक्टर्स में से नहीं हूं,जो शॉट के बाद मॉनिटर देखते हैं. मैं पूरी तरह से अपने निर्देशक पर ही डिपेंड रहती हूं.

फ़िल्म निर्देशन को काफी समय हो गया है क्या जल्द ही उस जिम्मेदारी को भी संभालेंगी?

मुझे फ़िल्म निर्देशित करना बहुत पसंद है, लेकिन जब तक स्क्रिप्ट में बात नही होगी. मैं फ़िल्म नहीं निर्देशित कर सकती. पैसों के लिए मुझे काम नहीं करना. ऐसा नहीं है कि मेरे बैंक में 500 करोड़ पड़े हैं इसलिए ऐसा बोल रही हूं लेकिन जितने भी हैं. उसमें मैं अपना पेट भर लूंगी. मुझे महंगे ड्रेस,बैग्स नहीं चाहिए. करोड़ो की कार नहीं चाहिए,मैं अपनी इनोवा में खुश हूं. मुझे ऑटो रिक्शा में अभी भी आना पसंद है. कुलमिलाकर मैं प्रोजेक्ट नहीं फ़िल्म बनाना पसंद करूंगी. जब वैसा कुछ मिलेगा तो डायरेक्शन करूंगी. प्रोड्यूस करना चाहूंगी.

आप बहुत ही रीयलिस्टिक सोच और अप्रोच रखती हैं,इसका श्रेय किसको देंगी?

खुद को,भट्ट साहब,मां,दोस्तों,स्कूल सभी को. मैंने कभी ग्लैमर इंडस्ट्री के ग्लैमर को अपने सिर पर नहीं चढ़ने दिया. मैं पारसी स्कूल में पढ़ी हूं।उनको इससे कोई मतलब नहीं था कि आपका पिता एक्टर है या डायरेक्टर,साइंटिस्ट है या भारत का प्रधानमंत्री।उनके लिए सभी बराबर थे. मेरे फ्रेंड्स भी ऐसे थे. मैं दिल है कि मानता नहीं की शूटिंग से आती थी और शाम में उनके साथ स्ट्रीट फूड खाती थी. हीरोइन थी,तो अलग से कोई ट्रीटमेंट नहीं मिलता था.

मेरी मां नॉन फिल्मी बैकगॉउन्ड से थी. वो एक बार आयी थी जब मेरा पहला फोटोशूट था. उस वक़्त मैं 16 साल की थी. उन्होंने उसके बाद कहा कि मैं तुम्हारे साथ अब नहीं आऊंगी. तुम्हे ख़ुद से अपना काम मैनेज करना पड़ेगा. घर पर मुझे अपने खाए हुए बर्तन,पिए हुए ग्लास को किचन में रखकर शूटिंग पर जाना पड़ता था. मेरा बेड भी मैं खुद से ठीक करती थी. उसके बिना मेरी मां मुझे शूटिंग पर जाने नहीं देती थी. ऐसी आदत ये लगी कि मैं होटल में भी सबसे पहले उठकर अपना बेड खुद से ही ठीक कर लेती हूं.

चुप के सेट पर क्या आपका निर्देशन पक्ष हावी होता था?

मैं वो बैगेज लेकर नहीं जाती हूं. एक्टर हूं तो सिर्फ एक्टर हूं. मैं आर बाल्की के साथ काम ही क्यों करती अगर मैं उनके अनुसार काम नहीं करना चाहती थी. मैं उनका विजन समझना चाहती थी. मैं उन एक्टर्स में से नहीं हूं,जो शॉट के बाद मॉनिटर देखते हैं. मैं पूरी तरह से अपने निर्देशक पर ही डिपेंड रहती हूं.

हम सभी जानते हैं कि आपके पिता महेश भट्ट ने आपके व्यक्तित्व को गढ़ने में अहम भूमिका निभायी है,पिता से मिली अहम सीख क्या रही है?

वे हमेशा से मेरे लिए एक टीचर की तरह रहे हैं. उन्होंने मुझे सीखाया है कि तुम्हे मेरी हर बात को मानने से इनकार करना है,क्योंकि मेरा अनुभव और आपका अनुभव अलग होगा तो आप चीजों को अपने अनुभवों से जज करेंगी. उन्होंने मुझे ये भी सिखाया है कि सच को एक हथियार की तरह इस्तेमाल मत करना वरना वो झूठ से भी बड़ा पाप है.

चुप फ़िल्म क्रिटिक्स पर निशाना साधती है,क्या फिल्मों की आलोचना नहीं होनी चाहिए ?

मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं कह रही हूं. अगर आपकी तारीफ के साथ आलोचना ना हो तो आप अपने आपको कलाकार कैसे कह सकते. हर एक्टर हर क्रिएटिव इंसान मे एक नारसिसिस्ट टेंडेंसी होती है. सफलता मिलने के बाद वो खुद को खुदा समझने लगते हैं. राजेश खन्ना ने जो स्टारडम देखा था. वो आज के कई सुपरस्टार्स के स्टारडम को मिला दें,तो भी उसके बराबर का नहीं होगा. आज की पीढ़ी में अधिकतर लोग उनको जानते भी नहीं हैं. वक़्त से बड़ा कोई क्रिटिक नहीं है. हमें क्रिटिक्स से ज़्यादा विश्वास करने वालों की ज़रूरत है. प्यासा और कागज़ के फूल को अगर उस वक़्त सम्मान मिल गया होता तो गुरुदत्त साहब की ज़िंदगी कुछ और होती थी. हमें बस थोड़ा संवेदनशील होने की ज़रूरत है. चुप फ़िल्म का भी यही मैसेज है. वैसे सिर्फ बाहर के लोग ही नहीं बल्कि इंडस्ट्री में भी कई लोग ऐसे होते हैं. जो मुंह से आपकी फ़िल्म को कामयाब होने की शुभकामनाएं देंगे ,लेकिन मन ही मन चाहेंगे कि आपकी फ़िल्म फ्लॉप हो जाए. वैसे यह सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं हॉलीवुड में भी है. भट्ट साहब ने मुझे बताया था कि जब हॉलीवुड में गॉडफादर रिलीज हो रही थी,तो आधी इंडस्ट्री चाहती थी कि फ़िल्म फ्लॉप हो जाए.

आपने अपनी ज़िंदगी में आलोचनाओं का सामना कैसे किया है?

अपने काम को लेकर नहीं बल्कि अपनीं निजी जिंदगी को लेकर सबसे ज़्यादा आलोचनाओं को झेला है. जब मैं इंडस्ट्री में आयी थी ,तो मैं जैसी रियल लाइफ में थी. वैसे फिल्मों के सेट पर भी थी. अपने इंटरव्यूज में मैं खुलकर बोलती थी. कुछ छुपाती नहीं थी. कई जर्नलिस्ट उस वक़्त मेरी बात पर एग्री करते थे, लेकिन फिर वो समाज के हिसाब से जो उस वक़्त का मापदंड था. मेरा पक्ष रखें बिना मुझे दोषी ठहरा देते थे. मुझे बुरा नहीं लगता था क्योंकि मैं इस बात को हमेशा से मानती आयी हूं कि ज़िन्दगी हमेशा आपके साथ फेयर रहे. ये ज़रूरी नहीं है. मैंने कभी कुछ छिपाया नहीं है. मैं शराब एडिक्ट थी तो खुलकर स्वीकार किया लेकिन अब उसे छोड़ दिया है.

सबसे मुश्किल समय कब था?

जब सुशांत सिंह राजपूत की ट्रैजिक मौत के बाद प्रायोजित ढंग से एक नफरत की लहर शुरू हो गयी थी. मेरे पूरे परिवार को टारगेट किया जा रहा था. जो आसान नहीं था. सुसाइड जैसे संवेदनशील मुद्दे का लोग अपने फायदे के लिए तमाशा बना रहे थे. पब्लिक को गुमराह कर रहे थे. वो ज़्यादा गलत था. हम भट्टस हैं,हमें तो नेगेटिविटी को झेलने की आदत सी है. हमेशा लोगों ने हमें गिराने की कोशिश की है,लेकिन हम उठ खड़े हुए हैं,लेकिन वो आम लोग जो सिनेमा में सपने लेकर आते हैं. आप उनके सपनों को उनसे छीन रहे हैं. वो ऐसा वक़्त था. जो कहीं ना कहीं एक डार्क एज की तरह था. शुक्र है धीरे-धीरे ही सही लोगों को सच मालूम पड़ गया.

बॉम्बे बेगमस का अगला सीजन कब आनेवाला है?

मुझे लगता है कि इसका जवाब अलंकृता श्रीवास्तव ज़्यादा बेहतर तरीके से दे सकती हैं. मैं भी अगले सीजन के इंतज़ार में हूं. वैसे सितंबर महीना हमारे लिए बहुत खास है. पापा 75 साल के होने वाले हैं. ब्रह्मास्त्र रिलीज हो गयी है. बड़े परदे पर मेरी फ़िल्म एक अरसे बाद आएगी.

आलिया की प्रेग्नेंसी को लेकर कितनी उत्साहित हैं?

आलिया को मैंने बचपन से बड़ा होते देखा है. मैं उससे 22 साल बड़ी हूं. उसकी प्रेग्नेंसी को लेकर उत्साह तो बनता है. वैसे पूरी फैमिली बहुत उत्साहित है. आम लोग भी बहुत खुश हैं. यह बदलाव देखकर बहुत अच्छा लगता है. हमारे वक़्त में सिर्फ रिलेशनशिप की वजह से ही हम अभिनेत्रियों को बहुत कुछ सुनना पड़ जाता था. मैंने और मनीषा(कोइराला) ने बहुत झेला है. अब के दर्शक समझदार हैं उन्हें पता है कि परदे पर किरदार हैं. असल जिंदगी में एक्टर भी नॉर्मल इंसान हैं.

एक्ट्रेसेज के तौर पर आलिया के काम को कितना पसंद करती हैं?

वो कमाल की अभिनेत्री है. उड़ता पंजाब,डार्लिंग्स और गंगूबाई में मुझे उसका काम बहुत पसंद आया है. गंगूबाई में पहली बार वह एक औरत के तौर पर परदे पर दिखी है. निर्माता के तौर भी उसने डार्लिंग जैसी अलग फ़िल्म से शुरुआत की है. मैं आलिया के प्रोडक्शन वाली किसी फिल्म में अभिनय करना चाहूंगी.

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