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Exclusive: नेपोटिज्‍म पर बोले रणवीर शौरी- बड़े बैनर की फिल्में बॉयकॉट..ये सिर्फ कहने की बात है

ranveer shorey on nepotism, big banner films : अभिनेता रणवीर शौरी उन चुनिंदा सेलेब्रिटीज़ में से एक हैं जिन्होंने सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद से इंडस्ट्री के भाई भतीजावाद पर लगातार अपने सोशल मीडिया पोस्ट्स से सवाल उठा रहे हैं. भाई भतीजावाद की जड़ें कितनी गहरी हैं जिसका वो भी शिकार हुए हैं औऱ सोशल मीडिया पर कुछ खास नामों के फिल्मों के बॉयकॉट पर उन्होंने बातचीत की.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 18, 2020 3:44 PM

sushant singh rajput death, ranveer shorey interview: अभिनेता रणवीर शौरी उन चुनिंदा सेलेब्रिटीज़ में से एक हैं जिन्होंने सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद से इंडस्ट्री के भाई भतीजावाद पर लगातार अपने सोशल मीडिया पोस्ट्स से सवाल उठा रहे हैं. भाई भतीजावाद की जड़ें कितनी गहरी हैं जिसका वो भी शिकार हुए हैं औऱ सोशल मीडिया पर कुछ खास नामों के फिल्मों के बॉयकॉट पर उन्होंने बातचीत की. उर्मिला कोरी से रणवीर शौरी की खास बातचीत…

नेपोटिज्म पर आप लगातार सवाल उठा रहे हैं आपको लगता है कि इंडस्ट्री पूरी तरह से नेपोटिज्म के गिरफ्त में है ?

मैं नहीं कहूंगा कि पूरी इंडस्ट्री पर नेपोटिज्म हावी है क्योंकि इंडस्ट्री तो बहुत बड़ी है.बहुत सारी छोटी फिल्में भी बनती हैं.हां ये ज़रूर कहूंगा कि इस इंडस्ट्री का जो पावर है.वो चार छह लोगों के ही कंट्रोल में है. मेरी भी अनदेखी हुई है मेनस्ट्रीम के बड़े नामों से।साल दो साल मैं घर पर बिना काम के बैठा हूं. किसी तरह मैने इंडिपेंडेंट फिल्मों और सीरीज की तरह खुद को यहां बरकार रख पाया हूं।जिनके ड्रीम्स बड़े होंगे. उनको ये सब अनदेखी झेलने के लिए बहुत स्ट्रेंथ चाहिए. यही वजह है कि मैंने अपनी महत्वकांक्षाएं कम कर ली थी. समझ गया कि मुझे कभी भी मेनस्ट्रीम फिल्मों में लीड भूमिकाएं नहीं मिलेगी. चाहे मेरी एक्टिंग कितनी अच्छी हो.शुरुआत में इस लालच में मेनस्ट्रीम में छोटे मोटे रोल कर लेता था कि शायद नोटिस होने से अच्छा काम मिलेगा. फिर समझ आया कि वो आपको नोटिस ही नहीं करना चाहते हैं।फिर दीवार में सर मारने से क्या होगा.

जिन चार पांच नामों के हाथ में इंडस्ट्री में पावर है उनकी फिल्मों को बॉयकॉट करने की बात सोशल मीडिया पर आ रही है आपका क्या कहना है ?

ये सब कहने की बातें हैं.ना मैं समझता हूं कि बॉयकॉट होना चाहिए.ना मैं समझता हूं कि बॉयकॉट होगा.ये जो सिस्टम बना हुआ है.उसे तोड़ पाना आसान बात नहीं है.इसके लिए इंकलाब की ज़रूरत है जो करना आसान नहीं है.एक हफ्ते चिल्लाएंगे लोग फिर सब भूल जाएंगे.वैसे बॉयकॉट करना ज़रिया नहीं होना चाहिए बल्कि दूसरी चीज़ें प्रमोट होनी चाहिए.जो छोटी फिल्में हैं वो देखी जानी चाहिए जो एक्टर्स उनमें काम करते हैं मीडिया को उनको तवज्जो देनी चाहिए.इसमें विलन मीडिया भी है.हमारे बारे में कोई नहीं लिखना चाहता है। स्टार सिस्टम की सर्कस को मीडिया ने ही बढ़ावा दिया है.

सुशांत को आप कैसे याद करते हैं सोनचिड़िया में आपने साथ में काम किया था?

बहुत ही अच्छा और होनहार लड़का था. क्यों ऐसा किया सोचकर ही अजीब सा लगने लगता है.उसने बडे सपने देखने की कीमत चुकाई है।क्यों उसने खुद को इतना असहाय महसूस कर लिया।यह सवाल घूमता है.

आपने बताया कि आपने भी बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं कैरियर में ऐसे में आप खुद को पॉजिटिव कैसे रख पाते थे ?

एक्टिंग मुझे सबसे ज़्यादा खुशी देता था लेकिन मैंने दोस्त,परिवार और अपनी हॉबीज को भी तवज्जो दी. म्यूजिक मुझे सुकून देता है।मेरा बेटा है जिसमें मेरा ध्यान बहुत बंट जाता है.मैंने काम के साथ पर्सनल लाइफ को भी बैलेंस किया.जिसमें मुझे संभाला वरना दो साल तक आपको काम ना मिले.आप कैसे खुद को संभाल सकते हैं.

वर्किंग फ्रंट पर क्या चल रहा है

एक दो वेब सीरीज है.फ़िल्म लूटकेस आएगी. सोनी लिव पर मेरी फिल्म कड़क आज यानी 18 जून को रिलीज हो रही है.

फ़िल्म कड़क को हां कहने की क्या वजह थी ?

रजत कपूर के साथ मैं सालों से जुड़ा हुआ हूं।उनके साथ कई सारी फिल्में भी की है.उनकी फिल्म करते हुए एक उत्साह और खुशी तो होती ही है क्योंकि उनकी हर फिल्म अलग होती है.एक एक्टर के तौर पर आप ग्रो करते हैं. मेरा किरदार काफी लेयर्ड वाला इस बार भी है.एक सीन में काफी कुछ कैरी करना पड़ता हैजो कई बार बहुत चैलेंजिंग था. कड़क एक दिन की कहानी है.पूरी फ़िल्म की शूटिंग एक घर में ही हुई है.कम चीजों में अच्छी फिल्म बनाना रजत को आता है.यह एक ड्रामा कॉमेडी फिल्म है.जैसा माहौल है.मुझे लगता है कि लोग इसे एन्जॉय करेंगे.

एक एक्टर के तौर पर ओटीटी प्लेटफार्म को कैसा पाते हैं ?

मैं तो हमेशा से ये कहता आया हूं कि जो ओटीटी प्लेटफार्म हैं वो भगवान का आशीर्वाद हम एक्टर्स के लिए हैं.बहुत सारी फिल्में हैं.जिनकी थिएट्रिकल रिलीज मुश्किल हो जाती थी.एक ही जगह फ़िल्म लगती है और वो बहुत कंट्रोल्ड जगह है.एग्जीबिटर्स सिस्टम रिलीज का सही नहीं है.बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है.ओटीटी के आने से कम से कम दर्शक तो मिल रहे हैं.मैं इस बात को स्वीकार करूँगा कि थिएटर में फ़िल्म लगने का अपना चार्म है.अपना ग्लैमर है लेकिन मैंने इस बारे में सोचना बहुत पहले बंद कर दिया था क्योंकि मेरी बहुत सारी फिल्मों को रिलीज करने में बहुत मेहनत करनी पड़ी थी.बहुत खराब अनुभव था.

Posted By : Budhmani Minj

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