अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत और श्रीधर की दोस्ती नौ साल पुरानी है. सुशांत के श्रीधर ने फ़िल्म सोनचिडिया में स्क्रीन भी शेयर किया था. उन्हें अब तक विश्वास नहीं हो रहा है.उनका दोस्त अब उनके बीच नहीं रहा. वो दोस्त जो संषर्ष करने और रिस्क लेने से कभी डरता नहीं था.आखिरी बार उनकी मुलाकात 27 मई को कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा के जन्मदिन पर हुई थी.जिसमें उन्हें अंदेशा भी नहीं हुआ कि उनका दोस्त इस तरह की मनोदशा से गुज़र रहा है.उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…
‘एक बिहारी को मार दिया’
मुझे उस पर बहुत गुस्सा है.उसने बहुत गलत कदम उठाया है.उसने किसको मारा.सुशांत सिंह राजपूत एक्टर को नहीं मारा.एक्टर के तौर पर तो सुशांत हमेशा अपनी फिल्मों से याद किया जाएगा.तुमने के के सिंह के बेटे को मार दिया.तुमने एक बिहारी को मार दिया.जो अपने जिद और ढिढपन के लिए जाना जाता है. बाढ़ आए सूखा आए लड़ेंगे.नहीं अंग्रेज़ी आती फिर भी डटे रहेंगे.हमें मॉल में घुसने से डर लगता है लेकिन जाएंगे ज़रूर. हमारी बेटी की शादी में दहेज दिया जाता है.देंगे दहेज लेकिन बेटी की शादी अच्छे घर में ही करेंगे.आप कहाँ से आए थे कैसे भूल गए. ऐसे टूटना था तो अमिताभ बच्चन तो आपसे ज़्यादा टूट चुका था. क्या अमिताभ बच्चन के घर में फ़ोन नहीं था कि वो यश चोपड़ा के घर पर फोन करके काम मांग सके. वो आदमी खुद जाता है यश चोपड़ा के घर।अरे उससे तो सबक लेते. आप कहाँ से कहां पहुँचे थे सुशांत.आज अपने बच्चे को नहीं बता सकता कि सुशांत अंकल के साथ क्या हुआ.मैं तुम्हे अपना हीरो कैसे मानूं. क्यों किया ऐसा.ये सवाल घूमता रहता है.
परवीन बॉबी से तुलना बहुत गलत
उसकी कोई डिप्रेशन की हाई डोज वाली दवाएं नहीं चल रही थी.जितनी बढ़ चढ़ा कर बातें सामने आ रही है.एक एक्टर की ज़िंदगी में उतार चढ़ाव होता ही है.बीच बीच में हर किसी की लाइफ में ये फेज आता है.कई बार तो एक्टर्स अपने किरदार में इतना घुस जाता है कि वह लो फील करने लगता है. सुशांत का भी वैसा हो सकता था.उसने मुकेश की फ़िल्म में कैंसर के रोगी का किरदार निभाया था.हो सकता है उस किरदार का असर हो. जो भी महेश भट्ट या मुकेश भट्ट की बात सामने आ रही है.ये फेंकने वाली बात हो गयी.अब ये सब बोल क्यों रहे हो.आपने पहले क्यों नहीं बोला.सुशांत की एक खासियत थी कि वो बड़ो की हमेशा सुनता था.आप बोलते वो सुनता ही। वो कैसे पिछले छह महीने से वह सेल्फ डिस्ट्रक्शन मोड़ पर था.वो तो अपना जिम कभी मिस नहीं करता था.डांस भी करता था.परवीन बॉबी के तो ये हालत नहीं थी तो तुलना कैसे हो रही है.यकीन नहीं हो रहा सुशांत आत्महत्या कर सकता है.हमें खुद जानना है कि आखिर हुआ क्या है.किसी और चीज़ का शिकार तो नहीं था.क्या कोई था जो बहुत उकसा रहा था.किसी ने उसके एक्टर होने के अस्मिता पर ही तो सवाल नहीं उठा दिया हो. हुआ क्या जो उसने ये किया. जवाब चाहिए.
सबका ख्याल रखता था
सुशांत और मेरी कोई बराबरी नहीं है लेकिन वह सबको लेकर चलता है.मैं उसका हमेशा से दोस्त रहा।उसने महेश शेट्टी को नहीं छोड़ा पवित्र रिश्ता के समय की यारी दोस्ती है.उसने महेश बलराज को नहीं छोड़ा.मुकेश छाबड़ा से उसकी दोस्ती सालों की है.वो किसी को छोड़ता नहीं है. उसके प्यार के रिश्ते भले टूटे लेकिन हमेशा उनके बारे में अच्छा ही बोलता था.अच्छा ही सोचता था.कभी किसी के बारे में खराब नहीं यही वजह है कि उसके जो भी रिश्ते रहे हैं.वो एक फ़ोन कॉल पर उसके लिए हमेशा मौजूद थे. उसे अपना पर्सनल स्पेस चाहिए होता था लेकिन सबका ख्याल करता था.
अपनी शर्तों पर काम किया
जो भी लॉबी नेपोटिज्म की बात हो रही है वो सही है. हम आउटसाइडर्स के लिए संघर्ष तो है लेकिन इसी का मज़ा भी तो है. आप जहां अजनबी हैं वहां कोई आपका साथ नहीं देगा लाजमी है. लॉबी है इंडस्ट्री में यही सच है. सुशांत और मेरी इस पर बात भी कई बार हुई है.वह मजबूती से इसमें सामने आया है.वह साफ बोल देता कि मैंने इस बैनर की फ़िल्म छोड़ी है अपनी मर्ज़ी से छोड़ी है.मुझे स्क्रिप्ट में मज़ा नहीं आया.मैंने राब्ता चुन ली है. हम बोलते कि थोड़ी हटके स्क्रिप्ट है.उसके लिए हिट फ्लॉप से ज़्यादा ये मायने रखता था कि मैंने ये दुनिया जी है.अपने शर्तों पर काम किया है. मुझे याद है फ़िल्म धौनी के लिए रीडिंग सुबह आठ बजे नीरज पांडे लेते थे.वो पांच मिनट पहले आ जाता था लेकिन ऊपर नहीं जाता था.मैं बोलता था चले जाओ. कहता न तो पहले जाऊंगा ना ही बाद में.आदित्य चोपड़ा से भी वह अपनी बात रखने में कभी हिचका नहीं. सुशांत ने फिर यशराज को भी छोड़ा क्योंकि उसे दूसरे बैनर की फिल्मों को भी एक्सप्लोर करना था.इससे आपको मालूम पड़ेगा कि वो लड़का डरता नहीं है संघर्ष करने में.कंफर्ट जोन कभी उसको चाहिए ही नहीं था. वह मूडी था कभी अंकल ज़रूरी काम के लिए भी पटना बुलाते तो जाता नहीं लेकिन कभी घर में मुंडन के लिए पहुँच जाता था.
ऐसी हुई दोस्ती
वो ऐसा लड़का था जो किसी को भी अपना बना ले. टीवी से उसने उस वक़्त ब्रेक लिया था. फिल्मों में उसको कुछ बड़ा करना था. मुकेश छाबड़ा की कास्टिंग एजेंसी में हम थे तो वह वहां अक्सर आता था.भले उसका ऑडिशन हो या ना हो.वो आ जाता था. मेरी और उसकी पृष्ठभूमि एक थी.वह बिहार से था.मेरा ननिहाल भी बिहार था तो हमारी दोस्ती बहुत जल्दी हो गयी क्योंकि हमारे पास बात करने को बहुत कुछ होता था. प्ले देखना सबकुछ साथ होता था. सामने से पूछता था कि अच्छा एक्टर बनना है तो मुझे किसके शोज देखने चाहिए.
Posted By : Budhmani Minj