अभिनेत्री विद्या बालन इनदिनों प्राइम वीडियो पर रिलीज अपनी फिल्म शेरनी को लेकर सुर्खियों में हैं. वे कहती हैं कि वे बहुत ही सेल्फिश एक्टर हैं. वे ट्रेंड बनाने के लिए फिल्में नहीं करती हैं कि ऐसी फिल्में बनने लगे. बस उन्हें जो फ़िल्म अच्छी लगती हैं वे उससे जुड़ जाती हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
सफलता विद्या बालन के लिए नयी बात नहीं है ऐसे में शेरनी की सफलता कितनी खास है?
सफलता नयी नहीं है लेकिन ये हमेशा खुशी देती है. इस बात से इनकार नहीं करूंगी. शेरनी जब ओटीटी पर रिलीज हुई थी तो मुझे लगा था कि लोग वीकेंड पर शायद ना देखें लेकिन बाद में देखेंगे लेकिन जिस तरह से रिस्पांस आने शुरू हुए लगा कि ओटीटी पर भी इस फ़िल्म का सभी को बेसब्री से इंतज़ार था. जो बहुत ही खास बात है.
कोई मैसेज जो बहुत खास है?
हर मैसेज खास है इस बात को कहने के साथ मैं कहूंगी कि शर्मिला टैगोर मैम का मैसेज पढ़कर मैं बहुत ज़्यादा उत्साहित हुई. उन्हें यह फ़िल्म बहुत पसंद आयी. उन्होंने लिखा कि मुझे खुशी है कि भारत में भी ऐसी फिल्में बनने लगी हैं.
आपकी ज़िंदगी का आप शेरनी वाला पल किसे करार देंगी?
मैं पहले भी ये बात कह चुकी हूं. इश्किया आफर होने से पहले मुझे समझ आ गया था कि मैं स्टीरियोटाइप अभिनेत्रियों के किरदार के लिए मैं नहीं हूं तो क्या मेरा करियर बॉलीवुड में खत्म होने वाला है. ये सब उधेड़बुन चल ही रहा था कि इश्किया मुझे ऑफर्स हुई. कई लोगों ने कहा कि अपने से बड़े उम्र के एक्टर्स के साथ काम करोगी तो फिर वैसे ही उम्रदराज वाले रोल मिलने लगेंगे. मुझे इश्किया की स्क्रिप्ट और अपना किरदार बहुत पसंद आया. मैंने खुद से सवाल किया कि मुझे अलग अलग तरह के किरदार करने हैं और ये फ़िल्म मुझे मौका दे रही है तो मुझे करना चाहिए. मैंने लोगों की नहीं अपने मन की बात सुनी. मैं उसे अपनी लाइफ का शेरनी मोमेंट करार दूंगी.
फ़िल्म में आम लोगों ने भी एक्टिंग की है उनके साथ शूटिंग का अनुभव कैसा था?
हमारी फ़िल्म में कई गांव वाले हैं उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा कि वो एक्टिंग करेंगे. शुरुआत में मैं डरी हुई थी कि कहीं कैमरा ऑन होते ही ये घबरा ना जाए. अपनी लाइन्स ना भूल जाए लेकिन उन्होंने मंझे हुए एक्टर्स की तरह एक्टिंग कर दी . उन्हें जज होने का डर नहीं था. वे बस एक्टिंग को एन्जॉय कर रहे थे. वे पिक्चर में आएंगे. इसी बात से खुश थे. इस बात को कहने के साथ साथ मैं फ़िल्म के कास्टिंग डायरेक्टर्स रोमिल और तेजस को भी श्रेय देना चाहूंगी उन्होंने गांव वालों के साथ साथ फॉरेस्ट ऑफिसर्स के साथ समय गुजारा उनको बताया कि शूटिंग के वक़्त क्या करना होता है क्या नहीं करना है. जिससे वे सभी कैमरे के सामने सहज थे.
फ़िल्म का शीर्षक शेरनी है लेकिन विद्या विन्सेट का किरदार ने एक चुप्पी ओढ़ रखी थी,एक्टिंग करते हुए वो चुप्पी आपको चुभती थी?
मेरे लिए इस किरदार को निभाना बहुत ही मुश्किल था क्योंकि एक एक्टर और इंसान के तौर मैं बहुत ही एक्सप्रेसिव हूं लेकिन मुझे इस किरदार के लिए एक्सप्रेस नहीं करना था खासकर संवाद के ज़रिए. चुप रहना था. मुझे कई बार लगता था कि यहां तो विद्या विन्सेट को बोलना ही चाहिए लेकिन अमित मुझे समझाते कि हर कोई अपनी बात चिल्लाकर या जोश से रख नहीं पाता है लेकिन वो स्ट्रांग है. जो उसे करना है वो उसे करना है. इस फ़िल्म ने स्ट्रांग औरत की मेरी परिभाषा को बदला. अपने आसपास मैंने ऐसी औरतों को देखा है जो बिंदास हैं. जो चाहे बोलती हैं. विद्या विंसेंट का किरदार निभाकर मैंने समझा कि स्ट्रांग वुमन एक टाइप की नहीं होती है कोई चुप रहकर भी स्ट्रांग हो सकती है.
फ़िल्म के एक सीन में आपकी सास आपको गहने पहनकर सुंदर दिखने को कहती हैं ,हम महिलाएं कितना भी अहम मुकाम हासिल कर लें सुंदर दिखने का प्रेशर हम पर हमेशा बना रहता है,निजी जिंदगी में आपकी सास की क्या सोच है?
मेरी सास ऐसा बिल्कुल भी कुछ नहीं कहती है. वो खुद वर्किंग वुमन रही हैं. उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत कुछ किया है. मिस इंडिया रही हैं. बहुत अच्छी डांसर भी हैं. वे डांस सिखाती थी. कोरियोग्राफर भी रही हैं. वो कुछ नहीं कहती लेकिन हां मेरी मां कहती हैं. उन्हें लगता है कि मैं जेवेलरी सिर्फ कैमरा के सामने पहनती हूं. जो सच भी है. मैं झुमके फिर भी पहन लूं और कुछ तो बिल्कुल नहीं. मैं हाथ में कुछ नहीं पहनती इससे भी उनको परेशानी होती है. वैसे उनकी गलती नहीं है. हम औरतों को हमेशा हमारे अपीयरेंस से जज किया जाता है. जिस वजह से हमारी मांओ को लगता है कि कहीं हमारी बेटियां कम ना रह जाए और गहनों से सुंदरता बढ़ती है इसलिए पहनने को बोलती हैं. ऐसा उन्हें लगता है. मैं नहीं मानती हूं. जैसे मन करता है वैसे रहो.
इस फ़िल्म महिला होने की वजह से विद्या विंसेंट को लोग नज़र अंदाज़ करते हैं क्या आपने अपने करियर में ऐसा कुछ अनुभव किया है?
महिला सेंट्रिक फिल्मों को इंडस्ट्री में तवज्जो नहीं मिलती थी. आज से दस साल पहले की मैं बात कर रही हूं. जब मैं कहानी कर रही थी. लोगों ने कहा कि तुम्हारी डर्टी पिक्चर चली क्योंकि उसमें सेक्सी वुमन को दिखाया गया है. वुमन सेंट्रिक फ़िल्म तभी चलेगी अगर वो सेक्सी ह. कहानी प्रेग्नेंट औरत की कहानी है. जो अपने पति को ढूंढ रही है. ये फ़िल्म तो कब आएगी कब जाएगी पता भी नहीं चलेगा. कहानी ऐसी चली कि उसने सभी की बोलती बंद कर दी.
सोनम कपूर सहित कई अभिनेत्रियों ने कहा है कि सिर्फ फीस ही नहीं और दूसरे पहलुओं पर भी पुरूष एक्टर को ज़्यादा महत्व दिया जाता है?
ये सच है. एक्टर के अनुसार आपको डेट्स देने पडते हैं. एक्टर के लिए बड़ा कमरा बड़ा वैन होगा. सीनियर एक्टर्स है इसलिए होता तो चलता लेकिन नए एक्टर को भी यही ट्रीटमेंट मिलता था क्योंकि वो एक्टर है. सुबह 9 बजे की शिफ्ट में हम समय पर पहुंचते थे लेकिन एक्टर 11 तो कभी 12 बजे. मैं उन सब चीजों से पक गयी थी लगता था कि कब ये सब बदलेगा और भगवान का शुक्र है कि बदल गयी चीज़ें. अब मुझे किसी का इंतज़ार नहीं करना पड़ता है.
आप अपने करियर में रिस्क लेने के लिए जानी जाती है क्या कभी करियर के किसी मुकाम पर लगा हो कि मैं ज़्यादा रिस्क ले रही हूं?
कभी नहीं लगा क्योंकि मैंने उन्हें रिस्क की तरह देखा ही नहीं. डर्टी पिक्चर के वक़्त कई लोगों ने कहा कि ये तुम्हारी इमेज की बिल्कुल विपरीत फ़िल्म है लेकिन मैं फिल्में सिर्फ और सिर्फ अपनी पसंद से करती हूं. मैं किसी की राय नहीं लेती हूं. जो फ़िल्म मुझे अच्छी लगती है मैं कर लेती हूं. कुछ चलती हैं कुछ नहीं चलती हैं. वैसे मुझे लगता है कि आज के दौर में हम अभिनेत्रियां पुरुष अभिनेताओं की तुलना में ज़्यादा एक्सपेरिमेंट कर रही हैं.
विद्या आप अपनी फिल्मों को क्रिटिक की तरह देखती हैं और अपने परफॉर्मेंस को जज करती हैं?
मैं बिल्कुल भी क्रिटिक की तरह फिल्में नहीं देखती हूं एक आम दर्शक की तरह ही फिल्में देखती हूं. खासकर रिलीज के तुरंत बाद. हां कुछ सालों बाद देखती हूं तो सोचती हूं कि ये सीन और अच्छा कर सकती थी.