Jharkhand news: गढ़वा शहर के बीच से गुजरी दानरो नदी का अस्तित्व खतरे में आ गया है. नगर परिषद, गढ़वा की ओर से लगातार दानरो नदी में शहर का कचरा डालने की वजह से इसका पाट लगातार कम हो रहा है. नगर परिषद की ओर से अब तक हजारों ट्रैक्टर कचरा नदी में डाला जा चुका है. इस डाले गये कचरे से नगर परिषद नदी की गहराई को भरकर उसे समतल कर रही है. नदी में एक तरफ से नगर परिषद कचरा डाल कर उसे समतल कर रही है, तो दूसरी तरफ उस पर गुमटी, झोपड़ी आदि लगाकर लोगों द्वारा अतिक्रमण भी किया जा रहा है.
हाल के दिनों में अचानक यहां दर्जनों झोपड़ी व गुमटी लग गयी है. कभी स्वच्छ पानी जिसका उपयोग नहाने के साथ-साथ पीने के लिये भी इस्तेमाल में लाया जाता था. उस पूरी नदी में अब नालियों का बदबूदार पानी, नगर परिषद द्वारा फेंके गये प्लास्टिक आदि के कचरे बिखरे पड़े हुए हैं.
गढ़वा नगर पंचायत के गठन के बाद नदी के किनारे बने तटबंध से सटाकर श्मशान घाट के सामने कचरा डाला जा रहा था. लगातार कचरा डालने के बाद वहां का गड्ढा पूरी तरह से भर चुका है. इसलिए अब नगर परिषद तटबंध की दूसरी ओर सीधे नदी में (सरस्वतिया व दानरो नदी संगम पर) कचरा डाल रही है. इससे पुरानी बाजार से लेकर सरस्वतिया व दानरो नदी के संगम तट तक की काफी जमीन समतल हो गयी है.
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कोरोना काल में नदी में ही सब्जी बाजार लगाना शुरू किया गया था. यहां अब तक करीब दो साल होने के बाद भी सब्जी मार्केट लगाया जा रहा है. इस सब्जी मार्केट की वजह से नदी किनारे आमलोगों की भीड़-भाड़ बढ़ गयी है. भीड़ बढ़ने के बाद नगर परिषद की ओर से कचरा फेंककर समतल किये गये जमीन का अतिक्रमण कर गुमटी, झोपड़ी आदि का निर्माण कर उसमें दुकानें खोली जा रही है.
नगर परिषद के अलावे अब लोग भी यहां मकान निर्माण के मलवे, घरों के कचरे, मरे जानवरों के शव आदि फेंक रहे हैं. इससे नदी तो प्रदूषित हो रही है, दूसरी ओर महामारी और संक्रामक रोग फैलने का खतरा भी शहर पर मंडरा रहा है. बरसात में जब दानरो नदी में पानी आता है, तब पानी के साथ नदी का कचरा भी बहता है और इसके संपर्क में आनेवाली दूसरी कोयल व सोन जैसी नदियां भी इस गंदगी की चपेट में आ जाती है.
मालूम हो कि कचरा फेंके जाने और अतिक्रमण की वजह से गढ़वा शहर की दूसरी नदी सरस्वतिया पहले ही नाले में बदल चुकी है. इस नदी की वर्तमान हालत यह हो गयी है कि गंदगी व बदबू की वजह से इसके पास से भी कोई गुजरना नहीं चाहता. कई स्थानों पर दानरो नदी की हालत भी कमोवेश यही हो गयी है.
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नगर पालिका अधिनियम 1956 के भाग 11 के अध्याय 38 की कई धाराओं में शहर में गंदगी और अव्यवस्था को लेकर जुर्माना करने के अधिकार दिये गये हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब नगर परिषद खुद ही इन सभी कानूनों का उल्लंघन करे, तो उसके लिए सजा कौन तय करेगा. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 268 पब्लिक न्यूसेंस को लेकर भी प्रावधान रखे गये हैं. इसमें धुआं फैलाने और ध्वनि प्रदूषण करने पर छह माह, धारा 270 में संक्रामक रोग फैलाने जैसा काम पर दो साल की सजा का प्रावधान है. धारा 277 के तहत जलस्त्रोत या जलाशय में कचरा डालने, उसे गंदा करने पर तीन महीने की सजा या 500 रुपये जुर्माने का प्रावधान है. धारा 278 में वायुमंडल अस्वास्थ्यकर करने पर 500 रुपये जुर्माना का प्रावधान है.
इस संबंध में नगर परिषद अध्यक्ष पिंकी केसरी ने कहा कि जल्द ही सुखबाना गांव में बन रहे सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट में कचरा फेंका जाना शुरू हो जायेगा. पर्यावरण क्लियरेंस नहीं होने की वजह से उस पर स्टे लगा हुआ था, लेकिन अब यह बाधा दूर हो गयी है. नदी में फेंका गया सारा कचड़ा वहां शिफ्ट किया जायेगा.
रिपोर्ट: पीयूष तिवारी, गढ़वा.