फैशन की चकाचौंध में अस्तित्व खो रही खादी, साहिबगंज की दोनों दुकानों की स्थिति है डगमग

साहिबगंज में खादी उद्योग का अस्तित्व अब पहले की तुलना में काफी मिटता सा दिखाई दे रहा है. अनोखे उद्योग अब खोने के कगार पर है. आधुनिक जमाने की फैशन की चकाचौंध ने खादी उद्योग को बहुत ही फीका कर दिया है. खादी उद्योग की दो दुकानें है जो पिछले कई वर्षों से अपनी अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2022 12:26 PM
an image

Sahibganj News: साहिबगंज शहर में खादी उद्योग का अस्तित्व अब पहले की तुलना में काफी मिटता सा दिखाई दे रहा है. अनोखे उद्योग अब खोने के कगार पर है. वहीं, आधुनिक जमाने की फैशन की चकाचौंध ने खादी उद्योग को बहुत ही फीका कर दिया है. वर्तमान परिदृश्य में खादी उद्योग को बचाये रखने में अगर देखा जाये तो सिर्फ बुजुर्गों का ही एक महत्वपूर्ण योगदान बचा हुआ है. वह भी अब नये जमाने के फैशन आने के बाद बच्चे अब बुजुर्गों खादी के कपड़े की बजाय आधुनिक फैशन के कपड़े पहनाना पसंद करने लगे हैं.

खादी उद्योग की दुकानें अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद

शहर में खादी उद्योग की दो दुकानें पिछले कई वर्षों से है. जो रानीश्वर समग्र विकास परिषद व संताल परगना ग्राम उद्योग समिति है. एक दुकान शहर के कॉलेज रोड में है तो दूसरी दुकान चौक बाजार के बीचोबीच अपनी अस्तित्व को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है. वहीं, रानीश्वर समग्र विकास परिषद में पिछले 32 वर्षों से कार्य करते आ रहे बिहार के बांका जिला के शंभूगंज थाने के रहने वाले निरंजन पंडित ने बताया कि करीब 20 वर्ष पूर्व खादी उद्योग के काफी बोलबाला था. तकरीबन आधे से थोड़े कम लोग खादी उद्योग के बुने हुए कपड़े को पहनना पसंद करते थे और उसमें रुचि रखते थे. पर वर्तमान समय में फैशन की चकाचौंध में खादी कपड़े का अस्तित्व सिमटा जा रहा है.

Also Read: Gandhi Jayanti 2022: रांची की यादों में हैं महात्मा गांधी, स्मृतियां आज भी मौजूद
अब खादी में लोग नहीं रख रहे अपनी रुचि

लोग अब खादी में अपनी रुचि नहीं रख रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को इस विषय में सोचने की आवश्यकता है कि कैसे इस कारोबार को फिर से भारत के सभी राज्यों में वैसे ही सुचारू रूप से प्रारंभ करें. खादी कपड़ों पर छूट की बात करते हुए उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में खादी के तकरीबन सभी कपड़ों पर 20 फीसदी की छूट दी जा रही है. अगर सरकार इस पर गौर कर छूट को थोड़ी सी और बढ़ाएं तो निश्चित रूप से कारोबार में बढ़ोतरी होगा और खादी के कपड़े पहले की तुलना में ज्यादा बिकेंगे.

सरकारी अफसर व नेता खादी उद्योग से नहीं करते खरीदारी

शहर के रानीश्वर समग्र विकास परिषद यानी कॉलेज रोड स्थित खादी उद्योग भंडार से बीते कई वर्षों से जिले के बड़े-बड़े पोस्ट पर सरकारी नुमाइंदे व राजनीतिक से जुड़े बड़े से बड़े जनप्रतिनिधि ग्रामीण उद्योग खादी ग्रामोद्योग भंडार से अपने पहनने के लिए कपड़े की खरीदारी नहीं करते है. हालांकि यह निश्चित रूप से अपने शौक की बात है. लेकिन सरकारी पद व शहर के गिने-चुने जनप्रतिनिधियों में आने वाले लोगों का कहीं न कहीं छोटा सा भी दायित्व बनता है कि वह खादी उद्योग भंडार से कपड़े खरीद कर लोगों को भी प्रोत्साहित करें. लोगों की माने तो सरकारी नुमाइंदे हो या फिर जनप्रतिनिधि जो कपड़े खादी उद्योग खरीद रहे बल्कि कम से कम खादी उद्योग भंडार का हाल भी जानने को पहुंचना भी मुनासिब नहीं समझते. बीते कई वर्षों से आज तक कोई भी राजनेता या फिर बड़े आला अधिकारी भंडार पहुंचकर दुकान व दुकानदार की हाल तक को नहीं जाना है.

शहर में मिलने वाले खादी कपड़ों के प्रकार व कीमत

  • सूती खादी: 70 रुपए से 400 प्रति मीटर

  • पोली खादी: 70 रुपए से 250 रुपए प्रति मीटर

  • सिल्क पोली कटिया: 460 रुपए से 800 रुपए प्रति मीटर

  • ऊनी खादी : 500 रुपए से 750 रुपए प्रति मीटर

  • खादी कंबल: 1200 रुपए से 1800 रुपए प्रति कंबल

रिपोर्ट: सुनील ठाकुर

Exit mobile version