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आर्थिक समीक्षा से बढ़ीं उम्मीदें

समीक्षा में यह आशा जतायी गयी है कि अगले तीन साल में भारतीय अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर की हो जायेगी और 2030 तक इसके सात ट्रिलियन डॉलर तक होने की भी संभावना है. वैश्विक अनिश्चितताओं और चुनौतियों को देखते हुए भविष्य में वृद्धि और मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ने की आशंकाओं का उल्लेख भी किया गया है.

By Abhijeet Mukhopadhyay | January 31, 2024 3:22 AM
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इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आंतरिक बजट प्रस्तुत करेंगी क्योंकि जल्दी ही लोकसभा चुनाव होने हैं. चुनाव के बाद बनने वाली सरकार पूर्ण बजट पेश करेगी. इस कारण इस बार बजट पेश होने से एक दिन पहले आर्थिक सर्वे भी पेश नहीं होगा. लेकिन मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन के कार्यालय की ओर से एक रिपोर्ट- भारतीय अर्थव्यवस्था: एक समीक्षा- तैयार की गयी है. इस समीक्षा में यह बताया गया है कि यह समीक्षा आर्थिक सर्वे के स्थान पर नहीं आयी है. इसका अर्थ यह है कि नयी सरकार के गठन के बाद जो पूर्ण बजट आयेगा, उससे पहले आर्थिक सर्वे भी पेश किया जायेगा. आर्थिक सर्वे में एक साल में भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन का व्यापक विश्लेषण होता है और उससे सरकार की भावी योजनाओं को तैयार करने में बड़ी मदद मिलती है. इस वर्ष सरकार ने जो आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत की है, उससे भी भारतीय अर्थव्यवस्था की एक समुचित तस्वीर मिलती है. इस दस्तावेज में बीते दस वर्षों का विश्लेषण किया गया है और भविष्य के लिए कुछ सकारात्मक अनुमान भी जाहिर किये गये हैं. इस समीक्षा में प्रमुख बात यह है कि इस वित्त वर्ष (2023-24) में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत से अधिक रहेगी. यह लगातार तीसरा साल होगा, जब अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सात प्रतिशत से अधिक रही है. इस अनुमान के ठोस आधार हैं क्योंकि इस वित्त वर्ष में पहली छमाही में वृद्धि दर सात प्रतिशत से अधिक रही है.

बीते एक दशक में सरकारी खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि रही है. इस कारण इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार की गति बढ़ी है और विभिन्न विकास परियोजनाओं एवं कल्याणकारी कार्यक्रमों में तेजी आयी है. सरकारी खर्च का बढ़ना इसलिए भी जरूरी रहा है क्योंकि निजी क्षेत्र की ओर से अपेक्षित निवेश नहीं आ सका है. इसके अलावा, भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत वित्तीय क्षेत्र और क्रेडिट वृद्धि से भी बड़ा आधार मिला है. समीक्षा में यह भी रेखांकित किया गया है कि अमेरिका और ब्रिटेन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी फिनटेक (वित्तीय तकनीक) अर्थव्यवस्था है. हाल ही में भारतीय स्टॉक मार्केट हांगकांग को पीछे छोड़ते हुए चौथे स्थान पर पहुंच गया और उसकी मार्केट पूंजी चार ट्रिलियन डॉलर से अधिक हो चुकी है. इससे इंगित होता है कि भारतीय स्टॉक मार्केट में घरेलू और विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ा है तथा नये-नये शेयर जारी हो रहे हैं. बैंकिंग सेक्टर को समावेशी बनाने तथा बैंकिंग सुविधाओं को समाज के निम्न आय वर्ग तक पहुंचाने में प्रधानमंत्री जन धन योजना का उल्लेखनीय योगदान रहा है. समीक्षा में बताया गया है कि 2015-16 में जन धन खाताधारकों में महिलाओं की संख्या 53 प्रतिशत थी, जो 2019-21 में बढ़कर 78.6 प्रतिशत हो गयी. समीक्षा के अनुसार, कार्यबल में महिलाओं का अनुपात भी बढ़ा है. साल 2017-18 में श्रम शक्ति में महिला भागीदारी दर 23.3 प्रतिशत थी, जो 2022-23 में बढ़कर 37 प्रतिशत हो गयी. समीक्षा में यह भी कहा गया है कि स्किल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया और स्टैंड अप इंडिया जैसे अभियानों से मानव पूंजी निर्माण में भी महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी हो रही है.

समीक्षा में यह आशा जतायी गयी है कि अगले तीन साल में भारतीय अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर की हो जायेगी और 2030 तक इसके सात ट्रिलियन डॉलर तक होने की भी संभावना है. साथ ही, वैश्विक अनिश्चितताओं और चुनौतियों को देखते हुए भविष्य में वृद्धि और मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ने की आशंकाओं का उल्लेख भी किया गया है. क्रेडिट वृद्धि तो हुई है, पर आगे इसकी वृद्धि पर दूसरे आर्थिक कारकों का असर भी पड़ सकता है. समावेशी विकास पर समीक्षा में जोर दिया गया है और जन धन खातों का उल्लेख किया है, लेकिन इस दस्तावेज में ग्रामीण भारत में आय और मांग बढ़ने पर चर्चा नहीं की गयी. इस पहलू पर ध्यान देना जरूरी है और उम्मीद है कि वित्त मंत्री के बजट प्रस्ताव में ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ाने के बारे में समुचित ध्यान दिया जायेगा. यह भी दावा किया गया है कि कोरोना महामारी के दौर की तुलना में बेरोजगारी दर में उल्लेखनीय कमी आयी है. यह सही है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मनरेगा के तहत ग्रामीण रोजगार की मांग अभी भी उच्च स्तर पर बनी हुई है. ग्रामीण क्षेत्रों में मांग की स्थिति में भी अभी बहुत सुधार होना बाकी है, जैसा कि ट्रैक्टरों की बिक्री के हालिया आंकड़ों से पता चलता है. इस साल से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से चलने वाली मुफ्त राशन योजना को पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया है. इस फैसले से भी एक संकेत यह निकलता है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के निर्धन वर्ग के लोगों को अभी सहायता की आवश्यकता है.

बहरहाल, अंतरिम बजट होने के बावजूद सरकार कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों के बारे में प्रावधान एवं आवंटन कर सकती है. पहली बात तो यह है कि सरकारी पूंजी खर्च जारी रहना चाहिए, खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर विकास में. आर्थिक समीक्षा में भी कहा गया है कि सरकारी खर्च की वजह से अर्थव्यवस्था की गति बढ़ाने में बड़ी मदद मिली है. उत्पादन से संबंधित प्रोत्साहन योजना के अच्छे परिणाम हमारे सामने है. इलेक्ट्रॉनिक्स समेत कुछ अन्य क्षेत्रों में निर्यात बढ़ा है तथा घरेलू बाजार में उनकी खपत हुई है. इस योजना के आधार और आवंटन में बढ़ोतरी की जानी चाहिए. ऐसा करने से मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र का विस्तार होगा, जो आय, मांग और रोजगार बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है. ग्रामीण विकास को लेकर भले ही अभी आवंटन न बढ़ाया जाए, पर कुछ घोषणाएं की जानी चाहिए, जिनसे मांग बढ़ाने में सहायता मिले. कुछ घोषणाओं और उपायों से आत्मनिर्भर भारत अभियान पर जोर दिया सकता है. ऐसी पहलों से अर्थव्यवस्था को लेकर उत्साह में वृद्धि होगी. निश्चित रूप से बीते एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था की गति बहुत संतोषजनक रही है. इससे भविष्य के लिए ठोस आधार भी बना है. लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आर्थिक विषमता में भी बढ़ोतरी हुई है. आर्थिक विकास का लाभ आबादी के अधिक से अधिक हिस्से तक पहुंचाने के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता है. समावेशी विकास के प्रयासों के अच्छे परिणाम हमारे सामने हैं, लेकिन इन्हें पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य की अनिश्चितता के प्रभाव के बारे में आर्थिक समीक्षा में कहा गया है. इस पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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