निरसा में छपता है नकली लॉटरी टिकट, हर दिन 20 से 25 लाख रुपये का होता है अवैध कारोबार
अन्य उत्पादों की तरह लॉटरी का भी डी माल (डुप्लीकेट) बाजार में घूम रहा है. बंगाल से सटा निरसा का इलाका गिरोह का मुख्य केंद्र है. स्थानीय स्तर पर लॉटरी टिकट छाप कर गिरोह अलग-अलग जगहों पर सप्लाई करता है.
इस साल के पूर्वार्द्ध में पश्चिम बंगाल की जामुड़िया थाना पुलिस ने 12 लोगों को भारी मात्रा में फर्जी लॉटरी टिकट के साथ पकड़ा था. आरोपियों में झारखंड के लोग भी शामिल थे. ये लोग स्थानीय स्तर पर प्रिंट की गयी डुप्लीकेट लॉटरी टिकट का धंधा करते थे. जब पुलिस ने उनसे पूछताछ की, तो पता चला कि संगठित गिरोह का नेटवर्क ना सिर्फ झारखंड-बंगाल, बल्कि ओड़िशा और बिहार तक फैला है. यह गिरोह हर दिन लाखों रुपये मूल्य के लॉटरी टिकट बेचता है. गिरोह का पर्दाफाश होने से पता चला कि लॉटरी के काले कारोबार की जड़ें किस कदर गहरी हैं.
दरअसल, रातों-रात मालामाल होने का सपना पालने वाले लोग ऐसे गिरोह के चक्कर में आकर अपनी गाढ़ी कमाई लॉटरी टिकट में लगा रहे हैं. ये लोग नहीं जानते कि अन्य उत्पादों की तरह लॉटरी का भी डी माल (डुप्लीकेट) बाजार में घूम रहा है. बंगाल से सटा निरसा का इलाका गिरोह का मुख्य केंद्र है. स्थानीय स्तर पर लॉटरी टिकट छाप कर गिरोह अलग-अलग जगहों पर सप्लाई करता है.
हर इलाके का अलग डिस्ट्रीब्यूटर
गिरोह में शामिल 20-25 लोग छपा टिकट डिस्ट्रीब्यूटर के पास पहुंचाते हैं. डिस्ट्रीब्यूटर से यह टिकट एजेंट के पास पहुंचाया जाता है. इसके लिए कई स्टाफ रखे गये हैं. उन्हें आठ हजार रुपये प्रतिमाह वेतन दिया जाता है. इसी तरह अकाउंटेंट को 20 हजार प्रतिमाह मिलता है. नोट गिनने के लिए तीन मशीनें रखी गयी हैं. अहम बात यह है कि जीतने वालों को शायद ही कभी रकम मिलती हो, क्योंकि एजेंट से ही रकम लेने का प्रावधान रखा गया है. यदि लोग अधिक तंग करते हैं, तो एजेंट अपना क्षेत्र ही बदल लेता है.
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250-300 एजेंट घूम-घूम कर बेचते हैं टिकट
झारखंड में लॉटरी टिकट की बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित है. फिर भी चोरी-छिपे इसकी बिक्री होती है. पूर्व में धंधेबाज बंगाल से मंगाकर टिकट बेचते थे. जब पुलिस ने कार्रवाई शुरू की, तो धंधेबाजों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया. निरसा में ही डुप्लीकेट लॉटरी टिकट छापना शुरू कर दिया. यह धंधा पिछले कुछ महीनों से चल रहा है. गिरोह में 250-300 एजेंट हैं, जो घूम-घूम कर टिकट बेच रहे हैं. टिकट की कीमत 50 से लेकर 800 रुपये तक होती है. यह लॉटरी टिकट कस्बा से लेकर सुदूर गांवों तक उपलब्ध कराया जाता है. एक अनुमान के मुताबिक, गिरोह प्रतिदिन 20 से 25 लाख रुपये तक के टिकट की बिक्री कर रहा है. इसमें कमीशन छोड़कर शेष राशि धंधेबाज अपने पास रख लेते हैं. हालात यह है कि रोज लाखों रुपये नकली-असली टिकट खरीद कर बरबाद करने वाले लोगों में से एक-दो लोगों को ही अब तक पुरस्कार के रूप में कुछ राशि मिली है, पर दूसरी ओर डुप्लीकेट टिकट छाप कर अवैध धंधा करने वाले गिरोह के सरगना लग्जरी गाड़ियों पर घूम रहे हैं.
साहनी, रवानी, गुप्ता, साव, सिन्हा और मंडल हैं कर्ताधर्ता
नकली लॉटरी की बिक्री में शामिल गिरोह के मुख्य कर्ताधर्ता में साहनी, रवानी, गुप्ता, साव, सिन्हा, मंडल आदि शामिल हैं. लॉटरी की छपाई स्थानीय स्तर पर की जाती है. इसका परिणाम सिक्किम व नगालैंड टिकट के आधार पर पश्चिम बंगाल के अनुसार निकाला जाता है. निरसा के पांड्रा मोड़, जामताड़ा रोड में बिड़लाढाल, भमाल, गोपालगंज सहित कई अन्य जगहों पर टिकटों की छपाई की जाती है. धंधे से जुड़े सूत्र बताते हैं कि निरसा में प्रतिदिन लगभग 40 से 45 हजार टिकट की छपाई होती है. धंधेबाजों ने बकायदा प्रिटिंग मशीन लाग रखी है.
लग्जरी गाड़ियों पर घूम रहा है कोयला ढोनेवाले का बेटा
कालूबथान थाना प्रभारी के बदलने पर इन दिनों क्षेत्र में धंधा मंदा हुआ है. यहां टिकट प्रिंट कर क्षेत्र में खपाया जाता है. इसमें शामिल एक युवक का पिता कभी साइकिल से कोयला ढोता था. आज युवक लग्जरी गाड़ियों का मालिक है. बताया जाता है कि फिलहाल वह पश्चिम बंगाल शिफ्ट कर गया है. युवक ने जीटी रोड पर जमीन भी खरीदी है. उसकी मंशा वहां एक होटल खोलने की है. इस तरह निरसा व कालूबथान में नकटी लॉटरी टिकट बेचकर कुछ लोग मालामाल, तो कम आय वाले तंगहाल हो रहे हैं.
डियरगंगा, डियर टेस्टा और डियर पैरोट नाम से छपता है टिकट
स्थानीय स्तर पर टिकट का नाम डियरगंगा, डियर टेस्टा, डिअर पैरोट रखा जाता है. इसका ड्रॉ पश्चिम बंगाल के अनुसार दोपहर एक बजे, शाम छह बजे और रात आठ बजे होता है. टिकट का मूल्य 50 रुपये से 800 रुपये तक रखा जाता है.
सीरीज में कैसे चलता है, इसे यूं समझें
सीरीज दाम परिणाम अंतिम अंक
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5 सीरीज 50 50
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10 सीरीज 100 100
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20 सीरीज 200 200
इसी तरह यह 80 सीरीज तक जाती है. सबसे कम प्राइज पांच टिकट लेने पर न्यूनतम 600 से अधिकतम 1400 रुपये रखा गया है, जबकि बंगाल में न्यूनतम 120, 450, 9000 और उसके बाद प्रथम पुरस्कार एक करोड़ का होता है. जब परिणाम घोषित होता है तो निरसा चौक पर चहल-पहल बढ़ जाती है. अब तो स्थिति यह है कि सिक्किम व नगालैंड स्टेट लॉटरी चोरी-छिपे बेचने वाले भी स्थानीय लॉटरी बेचने लगे हैं, क्योंकि उन्हें इसमें 20 प्रतिशत कमीशन मिलता है.
यदि इस तरह का धंधा कोई कर रहा है, तो उन्हें चिह्नित कर जल्द ही कार्रवाई की जायेगी.
-संजीव कुमार, वरीय आरक्षी अधीक्षक