झारखंड : समेकित कृषि प्रणाली से पूरे साल आमदनी कर सकेंगे किसान, 2007 से संचालित है मॉडल

समेकित कृषि प्रणाली से किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं. इस मॉडल में किसान एक साथ कई चीजों की खेती व पालन कर सकते हैं. पूर्वी सिंहभूम के दारीसाई में इस मॉडल को तैयार कर किसानों को इसे बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है.

By Samir Ranjan | September 14, 2023 6:25 PM

गालूडीह (पूर्वी सिंहभूम), मो परवेज : पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत दारीसाई क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के समेकित कृषि प्रणाली का मॉडल अपनाने से क्षेत्र के किसानों की दशा और दिशा दोनों बदलेगी. स्थानीय किसान समेकित कृषि को अपनाएं, इसलिए यहां यह मॉडल 2007 को बना. तब से कृषि को बढ़ावा दे रहा. इस समेकित कृषि प्रणाली को सही से रूप से संचालित करने को जोनल रिसर्च सेंटर ने एक किसान दंपति मथुर सिंह और उसकी पत्नी चंचला सिंह को मानदेय पर रखा है. इसके लिए दोनों को प्रति माह सात-सात हजार यानी कुल 14 हजार रुपये दिये जा रहे हैं. इसके अलावे रहने के लिए घर भी उपलब्ध कराया है. किसान दंपति को समेकित कृषि को बढ़ावा देने की सभी सुविधाएं भी उपलब्ध करायी गयी है.

बकरी के साथ-साथ मुर्गा-मुर्गी, बत्तख, गाय व मछली का हो रहा पालन

किसान दंपति ने जानकारी देते हुए बताया कि हमलोग यहां बकरी, मुर्गी-मुर्गा, बत्तख, गाय व मछली का पालन कर रहे हैं. अंडा-दूध से पैसा आ रहा है. मुर्गी भी बेचते हैं. देसी मुर्गी की मांग बाजार में काफी है. दाम भी अच्छा मिलता है. तालाब के पानी से सब्जी की खेती भी कर रहे हैं. मछली पालन भी हो रहा. आसपास के किसान यहां आते हैं. प्रायोगिक जानकारी लेते हैं और देखकर सीखते भी हैं.

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12 माह खेती करना ही समेकित कृषि प्रणाली : निदेशक

दारीसाई क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के सह निदेशक डॉ एन सलाम ने कहा कि समेकित कृषि प्रणाली का मतलब 12 महीने खेती. इसमें तालाब होगा, जहां मछली पालन होगा. तालाब के आसपास बागवानी, सब्जी समेत अन्य की खेती होगी. आसपास बकरी शेड बनाकर बकरी, मुर्गी, बत्तख व गाय का पालन होगा. गाय-बकरी के दूध, मछली और मुर्गी के अंडे बेच कर आमदनी होगी. तालाब के पानी से बारह माह सब्जी की खेती होगी. गाय-बैल के गोबर से खाद का उपयोग होगा. यानी मिश्रित खेती. खेती के साथ पशु और मछली पालन को बढ़ावा. सालों भर पैसे किसी ना किसी से आयेंगे. बदलती जलवायु को देखते हुए हर किसानों को समेकित कृषि प्रणाली को अपनाना जरूरी है. इसी उद्देश्य से दारीसाई में समेकित कृषि प्रणाली का मॉडल तैयार कर किसानों को इसे अपना कर बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है.

प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने की बारीकी को जाना

दूसरी ओर, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (छतीसगढ़) और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची के कृषि वैज्ञानिकों की टीम दारीसाई क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र पहुंची. टीम में शामिल कृषि वैज्ञानिक नेचुरल एग्रीकल्चर को बढ़ावा देने की बारीकी को जाना. वहीं, टीम ने दारीसाई केंद्र के सह निदेशक डॉ एन सलाम और अन्य कृषि वैज्ञानिकों के साथ बैठक कर प्राकृतिक कृषि पर समीक्षा की. दरअसल, नेशनल एग्रीकल्चर हायर एजुकेशन प्रोजेक्ट (एनएएचइपी) के तहत 15 दिवसीय चार से 17 सितंबर तक नेचुरल एग्रीकल्चर (प्राकृतिक खेती) पर प्रशिक्षण रांची में चल रहा है. इस प्रशिक्षण में बीएयू के छह और रायपुर के छह यानी कुल 12 कृषि वैज्ञानिक शामिल हैं. टीम के डॉयरेक्टर डॉ एमसएस मलिक और प्रोजेक्ट समन्वयक डॉ बीके अग्रवाल हैं. डॉ अग्रवाल और सीओपीआइ डॉ मनोज कुमार वर्णवाल, डॉ शीला बारला के नेतृत्व में टीम यहां पहुंची थी. जिसमें डॉ पी बारिक, प्रेमलाल साहू, डॉ चंद्ररेश कुमार, स्वाति ठाकुर, डॉ रोशन लाल, एम अंसारी, निर्मल आदि शामिल थे.

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पुरानी पद्धति पर जोर

डॉ एन सलाम ने टीम को प्रक्षेत्र भ्रमण कराकर अनुसंधान कार्य व अन्य गतिविधियों के बारे में जानकारी दी. यहां विभिन्न प्रयोग, समेकित कृषि प्रणाली, नये विकसित किए गये उद्यान, आम, लीची, नाशपाति, एमएलटी फसलों (धान) व पॉली हाउस में की जा रही सब्जी की खेती को देखकर सभी खुश हुए. सभी ने कार्य की सराहना की. डॉ एन सलाम ने कहा कि नेचुरल खेती की ओर किसानों को मोड़ने की पहल हो रही है. खाद की जगह नीम की खाद, खल्ली, नीम के बीज, पत्ता का उपयोग पर जो दिया जा रहा है. गोबर, केंचुआ खाद अपनाने की बात कही जा रही है. पुरानी पद्धति से जिस तरह किसान खेती करते थे, वही पद्धति अब अपनाने पर जोर दिया जा रहा. इससे कृषि बेहतर होगी और उपज भी गुणकारी होगा.

दारीसाई में पहली बार नागपुर किस्म के संतरे की खेती

दारीसाई क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र परिसर में कृषि वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान को लेकर पहली बार नागपुर किस्म के संतरे लगाये थे, जिसमें काफी फल आये हैं. संतरे लद जाने से पौधे झुक गये हैं. दारीसाई केंद्र के सह निदेशक डॉ एन सलाम ने कहा कि नागपुर किस्म का संतरा है. यह अक्तूबर माह में पक कर तैयार हो जायेगा. इसका स्वाद बेहतर रहा, तो यह इस क्षेत्र के किसानों के लिए बेहतर साबित होगा. इस मिट्टी में नागपुर किस्म का संतरा बेहतर हो रहा है. बाजार में संतरा का दाम भी बेहतर है. यह नकद फसल है. इसे किसान अपनायेंगे, तो आर्थिक लाभ ज्यादा होगा. संतरा दो बार निकलता है. एक बार जाड़े के समय और दूसरा गर्मी के समय में. नागपुर किस्म का जो संतारा लगा है, वह जाड़े के पहले अक्तूबर तक निकल जायेगा. दारीसाई में करीब 20-25 पौधे लगे हैं. सभी पौधे से संतरे से लद गये हैं. ठेंक देकर पौधों का खड़ा रखा गया है.

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