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खरीफ फसल में लगे किसान कृषि वैज्ञानिकों की मानें सलाह, हल्की बारिश खेतों के लिए फायदेमंद, जल्द करें बुवाई

खरीफ फसल में लगे किसानों के लिए हल्की बारिश फायदेमंद है. बारिश के पानी को खेत में ही रोके. इससे खेती-बारी करने में आसानी होगी. वहीं, कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि संभावित बारिश के बीच फसलों की बुवाई कार्य जल्द शुरू कर दें.

Jharkhand News: झारखंड में प्री मानसून की बारिश को देखते हुए मानसून आने के आसार बढ़ गये हैं. अभी का मौसम पूरी तरह खेती-बारी और किसानों के अनुकूल है. कृषि वैज्ञानिक के अनुसार किसान खेती-बारी में लग जाये. बारिश होने पर उसे खेत में ही रोके. जिससे खेती-बारी करने में आसानी होगी.

मौसम पूर्वानुमान के अनुसार कृषि परामर्श

कृषि वैज्ञानिक नीरज कुमार वैश्य ने कहा कि अगले कुछ दिनों में होने वाले संभावित वर्षा के बीच मौसम अनुकूल होने पर विभिन्न फसलों की बोवाई कार्य जल्द से जल्द किसान शुरू करें. किसान भाई धान के फसल को छोड़कर अन्य सभी फसल की बोवाई मेढ़ बनाकर ही करें. जिससे बीच में बनी नालियों में वर्षा जल का संचयन हो सके. अत्याधिक वर्षा की स्थिति में भी पौधा जलजमाव के कारण गले नहीं, साथ ही खेत की मिट्टी का क्षरण भी कम से कम हो. जिन खेतों में धान रोपा करना है. वैसे खेतों के मेढ़ को दुरुस्त रखें. विभिन्न सब्जियों एवं फसलों के खेतों में जल निकास के लिए नालियां बना दें. उपरी खेतों में वर्षा की अनियमितता को देखते हुए कम अवधि एवं कम पानी की आवश्यकता वाली फसल जैसे, उरद, अरहर, सोयाबीन, मड़ुवा, दोंदली, ज्वार आदि की खेती कर सकते हैं.

किसानों के लिए कृषि आधारित परामर्श

हल्दी : हल्दी की उन्नत किस्म राजेंद्र सोनिया की बोवाई 40 सेंटीमीटर व 15 सेंटीमीटर की दूरी पर करें. एक एकड़ में बोवाई के लिए आठ क्विंटल बीज, 80 क्विंटल कंपोस्ट, 53 किलोग्राम डीएपी, 70 किलोग्राम यूरिया व 40 किलोग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश की आवश्यकता है.

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अदरख : अदरख की उन्नत किस्म बर्धवान, सुरूचि, सुप्रभा, नदिया इत्यादि में से किसी एक किस्म की बोआई 40 सेंटीमीटर कतार से कतार व 10 सेंटीमीटर पौधा से पौधा की दूरी पर करें. एक एकड़ में बोवाई के लिए आठ क्विंटल बीज, 80 क्विंटल कंपोस्ट, 53 किलोग्राम डीएपी, 70 किलोग्राम यूरिया व 40 किलोग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश की आवश्यकता होती है.

मूंगफली : मूंगफली की उन्नत किस्में गिरनार-3, बिरसा मूंगफली-3, बिरसा मूंगफली-4, बिरसा बोल्ड में से किसी एक किस्म का चुनाव कर सकते हैं. एक एकड़ में खेती करने के लिए बिरसा बोल्ड किस्म के लिए पांच किलोग्राम दाना बीज व अन्य किस्मों के लिए 30 से 35 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है.

उड़द : उड़द की उन्नत किस्म बिरसा उरद-1, डब्ल्यूबीयू-109, पंत यू-31 आदि में से किसी एक किस्म का चुनाव कर सकते हैं. एक एकड़ में खेती करने के लिए 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है.

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अरहर फसल का कीट और रोग प्रबंधन

पीले छेदक कीट से अरहर में अनेक प्रकार के फलीछेदक का आक्रमण होता है. पिल्लू फलियों में छेदकर दाने को खा जाता है. फल मक्खी की शिशु (ग्रब) भी दाने को नुकसान करता है. जबकि फली बग फलियों का रस चूसते हैं. जिससे फलियों का विकास रूक जाता है. इस कीट से बचाव के लिए दो या तीन बार कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिये. पहला छिड़काव इंडोक्साकार्व 0.5 मिली प्रति लीटर पानी (0.5-1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर) से करना चाहिये. इस फसल के रोग की बात करें तो फसल में उकठा रोग लगता है. इस रोग के लगने से पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाती है तथा पौधे मुरझा कर सूख जाते हैं. पौधों के तने में का निचला भाग काला पड़ जाता है. इस रोग से फसल के बचाव के लिए अरहर के साथ ज्वार की भी बुआई करें. यदि फसल में रोग लगता है तो रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला दे. किसान आईपीए 203 एवं बिरसा अरहर-1 रोगरोधी किस्में लगा सकते हैं. इसका बीज बोने से पहले कार्बेंडाजिम दो ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से बीज का उपचारित कर लें. बीज बुआई के समय ट्राइकोडरमा युक्त गोबर का खाद जरूर डाले. वहीं खेत में प्रचूर मात्रा में गोबर की सड़ी खाद एवं खली का प्रयोग करें.

उड़द फसल का कीट और रोग प्रबंधन

भूआ पिल्लू पौधा तैयार होने के प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों की हरियाली को चाट जाते हैं. जिसके कारण पत्तियां कागज के समान दिखायी पड़ती है. वहीं पौधे के बड़े होने तक पिल्लू पत्तियों को बूरी तरह से खा जाते हैं. इससे बचाव के लिए इंडोक्साकार्ब 15.80 एससी 500 मिली प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये. वहीं इसके रोगों की बात करें तो इसमें मौजेक, पीला मौजेक एवं जालीदार अंगमारी रोग लगता है. पीला मौजेक रोग से ग्रसित होने के कारण पत्तियों पर अनियंत्रित हल्की या पीली चित्तियां दिखायी देती है. पत्तियां छोटी हो जाती है और पौधों की सामान्य वृद्धि कम हो जाती है. इस बीमारी से बचाव के लिए रोगी पौधों से प्राप्त बीज बोने के काम में नहीं लाये. कीट नियंत्रण के लिए मेटासिस्टॉक्स एक मिली प्रति लीटर पानी अथवा ट्राइक्योर पांच मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. वहीं, जालीदार अंगमारी रोग लगने के कारण पौधे के सभी हरे भागों पर नीले-भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. जिससे पूरा पौधा सूख जाता है. नम मौसम में कवक जाल पौधों पर दिखायी देता है. इस बीमारी से बचाव के लिए कार्बेंडाजिम दो ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से बीजोपचार करें. कार्बेंडाजिम दो सौ ग्राम या इंडोफिल एम-45 एक किग्रा प्रति एकड़ की दर से 400 मीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.

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रिपोर्ट : जगरनाथ पासवान, गुमला.

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