झारखंड : ‘हरा सोना’ की पैदावार में लगे पूर्वी सिंहभूम के किसान, बांस के कोपले निकलने से दिखी खुशी

हरा सोना के नाम से मशहूर बांस के उत्पादन को लेकर पूर्वी सिंहभूम के बहरागोड़ा, चाकुलिया और बरसोल के किसान इनदिनों काफी आकर्षित हो रहे हैं. काफी संख्या में बांस में कोपले निकलने से किसानों में खुशी देखी जा सकती है. इसे नकदी फसल के रूप में भी देखा जा सकता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 30, 2023 6:22 PM

बरसोल (पूर्वी सिंहभूम), गौरव पाल : पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत बहरागोड़ा, चाकुलिया और बरसोल का बांस देशभर में अपनी गुणवत्ता और टिकाउपन के लिए मशहूर है. हर साल ट्रकों में भरकर यहां का बांस देश के कोने-कोने में भेजा जाता है. बहरागोड़ा की बड़ी आबादी बांस के व्यवसाय पर निर्भर है. चाकुलिया व बहरागोड़ा प्रखंड के बांस किसान खुश हैं. इस साल काफी संख्या में बांस के कोपले निकले हैं.

बांस है नकदी फसल

बता दें कि पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत चाकुलिया, बहरागोड़ा और बरसोल में बांस की व्यापक पैमाने पर खेती होती है. बांस की खेती में नकदी फसल वाली सारी खूबियां मौजूद है. साल के नौ महीने लोग बांस को बेचते हैं. दो से तीन साल में बांस के पौधे तैयार हो जाते हैं. चाकुलिया में कई लाइसेंसी डिपो हैं. इसके अलावा छोटे-मोटे 45 से अधिक सब डिपो हैं, जहां छोटे-छोटे व्यापारी ग्रामीणों से बांस संग्रह करते हैं. बांस की कोपले निकलने पर किसान दो से तीन महीने तक बांस कटाई बंद कर देते हैं. एक आंकड़े के मुताबिक, बहरागोड़ा विधानसभा में ढाई हजार से भी अधिक लोग बांस के व्यवसाय पर निर्भर हैं.

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मानुषमुड़िया में बंद है बंबू प्रोसेसिंग प्लांट

यहां से हरियाणा, यूपी, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में बांस की आपूर्ति होती है. हाल के दिनों में कम बारिश होने के कारण इसकी गति धीमी पड़ी है. वन विभाग की ओर से समय-समय पर किसानों को बांस के पौधे उपलब्ध कराये जाते हैं. अमूमन लगभग पांच साल में बांस से लोगों को करीब 30 से 60 हजार तक की आमदनी होनी शुरू हो जाती है. इस कारण से बरसोल के ग्रामीण अंचलों में परती जमीन पर लोग बांस लगाना पसंद करते हैं. मानुषमुड़िया के बंबू प्रोसेसिंग प्लांट बीते कई वर्षों से तकनीकी कमी के कारण बंद है. ग्रामीणों ने बताया कि उक्त बंबू प्रोसेसिंग प्लांट चालू होने से क्षेत्र के कई लोगों को रोजगार मिलेगा.

उत्तम क्वालिटी का चाकुलिया का बांस

अपनी गुणवत्ता और टिकाऊपन के लिए मशहूर इस क्षेत्र के बांस की अन्य इलाकों में डिमांड भी काफी है. यही कारण है कि किसान इस फसल की खेती में अधिक दिलचस्पी दिखाते हैं. यहां के उत्पादित बांस देश के कोने-कोने में भेजे जाते हैं. बता दें कि चाकुलिया क्षेत्र इलाके में उत्पादित की क्वालिटी काफी उत्तम किस्म की है इसलिए हरियाणा, यूपी, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में बांस की आपूर्ति होती है. हालांकि, हाल के दिनों में कम बारिश होने के कारण इसकी गति धीमी पड़ी है.

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क्या है नकदी फसल

नकदी फसल को वाणिज्यिक या व्यापारिक फसल भी कहते हैं. किसान दूसरे उद्योगों के लिए इन फसलों को उगाते हैं और फसल को बेंचकर तुरंत नकद राशि प्राप्त करते हैं. नकदी फसलों में उन व्यापारिक फसलों को शामिल किया जाता है जिनके माध्यम से उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है.

कौन-कौन नकदी फसल है

नकदी फसलों में मूंगफली, आलू, दाल, फल, सब्जी के अलावा गन्ना, कपास, चाय, काफी, जूट, कोको, अलसी, मेस्ट, रबड़ आदि को शामिल किया गया है. बता दें कि बांस की खेती खूब बारिश वाले इलाकों के साथ-साथ कम बारिश वाले इलाके में भी होता है. यही कारण है कि पिछले दो साल से कोल्हान प्रमंडल क्षेत्र में अच्छी बारिश नहीं होने से क्षेत्र के किसान बांस की फसल के पैदावार पर अधिक जोर देने लगे हैं.

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बांस की फसल में नहीं लगते रोग-कीट

बांस की खेती किसानों को इसकी गणुवत्ता और टिकाऊपन के साथ-साथ इसके पौधे में रोग-किट नहीं लगने से भी आकर्षित करता है. वहीं, किसानों को जानवरों से नुकसान की चिंता से भी मुक्ति मिलती है. एक बार बांस की खेती करने से कई साल तक इससे मुनाफा कमाया जा सकता है.

‘हरा सोना’ को बार-बार तैयार नहीं किया जाता

‘हरा सोना’ के नाम से मशहूर बांस की फसलों को खेत में बार-बार तैयार करने की नौबत नहीं आती है. वहीं, विशेष देखरेख की भी जरूरत नहीं पड़ती है. इन्हीं गुणों के कारण किसान बांस की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं.

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