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झारखंड : कम बारिश से पूर्वी सिंहभूम के किसान परेशान, सूर्यमुखी की खेती से धान की कर रहे भरपाई

पूर्वी सिंहभूम में कम बारिश ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. अब किसान वैकल्पिक खेती की ओर जाने लगे हैं. कई किसान सूर्यमुखी की खेती में जुटे हैं. कारण है कि सूर्यमुखी की खेती में पानी की अधिक जरूरत नहीं होती है. इतना ही नहीं, सूर्यमुखी की खेती से मुनाफा भी अच्छा होता है.

By Samir Ranjan | August 18, 2023 4:22 PM
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गालूडीह (पूर्वी सिंहभूम), मो परवेज : पूर्वी सिंहभूम जिले में इस साल कम बारिश को देखते हुए किसानों ने वैकल्पिक खेती पर जोर दिया है. इस बार जिले के 70 किसानों ने करीब 200 बीघा (ऊपरी जमीन) में सूर्यमुखी फूल की खेती की है. दारीसाई कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों ने पहल की है. इसकी खेती में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है. कृषि वैज्ञानिक डॉ आरती वीणा एक्का और गोदरा मार्डी कहते हैं कि जिले में सूर्यमुखी की खेती अच्छा संकेत है. जिले में सूर्यमुखी की खेती पहले शून्य थी. कहीं-कहीं छिट-पुट होती थी.

100 किलो बीज किसानों को नि:शुल्क दिये गये

पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला, मुसाबनी, धालभूमगढ़, डुमरिया, गुड़ाबांदा, चाकुलिया, जमशेदपुर प्रखंड के कई गांवों में सूर्यमुखी की खेती हुई है. 70 किसानों के बीच दारासाई कृषि विज्ञान केंद्र से 100 किलो सूर्यमुखी का बीज (कावेरी चैंप) नि:शुल्क बांटा गया. एक किलो बीज दो बीघा जमीन में लगता है. कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत संकुल अग्रिम पंक्ति प्रत्याक्षण के तहत किसानों को जोड़ा जा रहा है.

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किसानों को तरीका और तकनीक बताया गया

कृषि वैज्ञानिक डॉ आरती वीणा एक्का और गोदरा मार्डी ने किसानों को खेती का तरीका व तकनीक बताया. बाकायदा प्रशिक्षण भी दिया. इसमें सड़ा गोबर का उपयोग बेहतर होता है. खाद की मात्रा, खर पतवार पर कंट्रोल करने, जमीन का चयन कैसे करें, जहां पानी जमा ना हो, वहां सूर्य मुखी की खेती करने की जानकारी कृषि वैज्ञानिकों ने दी.

धान की तुलना में सूर्यमुखी से अधिक मुनाफा

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि साल में तीन बार सूर्यमुखी लगता है. पहली फसल जुलाई-अगस्त में, दूसरी अक्तूबर- नवंबर में और तीसरी फसल फरवरी-मार्च में. 100 दिन में फसल तैयार हो जाती है. सूर्य मूखी का दाना निकाल कर उसकी पेराई होती है, जिससे तेल निकलता है. इसकी कीमत बाजार में 130 से 140 रुपये प्रति किलो है. कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि सूर्य मुखी का तेल पतला होता है. यह शरीर के लिए फायदेमंद है. इस तेल के सेवन पाचन ठीक होता है. दारीसाई केंद्र में तेल पेराई मशीन भी लगी है. किसान सूर्य मुखी तैयार होने पर बीज लेकर यहां आयेंगे पेराई होगी और फिर तेल निकाल कर बोतलों में भर कर बाजार में बेच सकते हैं. यह नगद फसल है. इससे किसानों को धान के बजाय अधिक मुनाफा होगा.

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बरसोल में धान बेचने के छह माह बाद भी नहीं मिली राशि, भुगतान की गुहार

इधर, बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डाॅ दिनेशानंद गोस्वामी ने गमारिया, नेदड़ा व कुलिया गांव का दौरा किया और ग्रामीणों की समस्याएं सुनीं. लोगों ने डॉ गोस्वामी से कहा कि धान क्रय केंद्रों में धान बिक्री किए हुए छह महीने बीतने के बाद भी किसानों को धान की राशि प्राप्त नहीं हुई. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लोगों को घर नहीं मिला. कई लोगों ने वृद्धा व विधवा पेंशन का नियमित भुगतान नहीं होने की भी शिकायत की. वहीं, डाॅ गोस्वामी ने कहा कि सरकार की उदासीनता के कारण लोगों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. वर्ष 2018 की फसल बीमा योजना की राशि का भुगतान अब तक किसानों को नहीं हुआ. डाॅ गोस्वामी ने लोगों को आश्वस्त किया कि राज्य में बीजेपी की सरकार बनने पर बहरागोड़ा विधानसभा का सर्वांगीण विकास होगा.

जिले में कृषि का हाल : दलहन, तेलहन, मोटे अनाज की पैदावार घटी

पूर्वी सिंहभूम जिले में खेती का हाल बुरा है. धान छोड़ दिया जाये, तो 15 अगस्त तक मक्का के अलावा तेलहन, दलहन और मोटे अनाज की पैदावार काफी कम हुई है. वहीं, जिले में लक्ष्य के विपरीत 58.63 फीसदी ही खेती हो पायी है. यह रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी गयी है. जिले में खेती का कुल लक्ष्य 147860 हेक्टेयर था, जिसके विपरीत 86686 हेक्टेयर खेती हुई है. वहीं, तेलहन का भी जिले में काफी कम पैदावार होने का अंदेशा है. जिले में 2650 हेक्टेयर में पैदावार होना है, लेकिन अब तक सिर्फ 16 हेक्टेयर में ही रोपनी हो पायी है. दलहन की पैदावार भी घटी है. दलहन का लक्ष्य 22200 हेक्टेयर था, जिसके बदले अब तक सिर्फ 4458 हेक्टेयर में ही आच्छादन हो पायी है.

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फसलों का लक्ष्य

मक्का में थोड़ा सुधार देखा गया है. मक्का की पैदावार का लक्ष्य 11820 हेक्टेयर था, जिसके विपरीत इस साल अब तक 5105 हेक्टेयर में पैदावार हो चुकी है. धान की पैदावार 70 फीसदी तक होनी है क्योंकि उसमें आच्छादन सबसे ज्यादा हुई है. धान की खेती का लक्ष्य 110000 हेक्टेयर था, जिसके विपरीत 77023 हेक्टेयर में आच्छादन हो चुका है. यह तब है जब बारिश के हालात जून के बाद से सुधरे है. जून में जहां सामान्य वर्षापात 247.8 मिलीमीटर है, लेकिन उसके विपरीत सिर्फ 97.4 मिलीमीटर बारिश हुई है. जुलाई में सामान्य वर्षापात 316.4 मिलीमीटर होनी है, लेकिन इसके विपरीत 264.6 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है. अगस्त में सामान्य वर्षापात 291.8 मिलीमीटर की जगह 218.8 मिलीमीटर बारिश हुई है. जून की अपेक्षा जुलाई में कम बारिश होने के बाद अगस्त माह में बारिश में सुधार हुई है.

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