क्षेत्रीय संघर्ष भड़कने की आशंका
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर 14 और 15 जनवरी को ईरान के दौरे पर हैं. गाजा संकट की शुरुआत के बाद से यह ईरान की पहली मंत्री-स्तरीय यात्रा है. निश्चित रूप से इस दौरे में पश्चिम एशिया में संघर्ष का बढ़ना चर्चा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा.
पश्चिम एशिया में चल रहे संकट के बढ़ने की आशंका को बल देते हुए अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा यमन में कई हूती ठिकानों पर हमलों का सिलसिला कुछ दिन से चल रहा है. हूती समूह अंसार अल्लाह द्वारा लाल सागर में वाणिज्यिक जहाजों को लगातार निशाना बनाने के जवाब में अमेरिका और ब्रिटेन ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया है. उल्लेखनीय है कि दिसंबर के शुरू में हूती समूह ने इस्राइली जहाजों और इस्राइल आने-जाने वाले जहाजों के लाल सागर में परिचालन पर पाबंदी लगाने की घोषणा की थी. उसके बाद कई जहाजों पर हमले भी हुए हैं और अनेक कंपनियों ने उस रास्ते पर आवाजाही छोड़ दी है. अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा हमलों का यह घटनाक्रम बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि गाजा में युद्ध शुरू होने के बाद से अमेरिका ने इराक और सीरिया में ईरान समर्थित समूहों पर अनेक हमले किये थे, लेकिन यमन पर आक्रामक हमले से परहेज किया था. अमेरिका को डर था कि इससे इस्राइल-हमास संघर्ष क्षेत्रीय स्तर पर बढ़ सकता है. तो फिर क्या वजह है कि अमेरिका ने अब अपनी रणनीति बदल दी और हमला करने का फैसला किया? क्या यह महज संयोग था कि अमेरिका ने यमन में हमलों के लिए वही दिन चुना, जब गाजा में इस्राइल के अपराधों के खिलाफ सबूत हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में दुनिया के सामने पेश किये जा रहे थे? कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह अदालत में चल रहे विचार-विमर्श से मीडिया का ध्यान भटकाने की एक सोची-समझी रणनीति है.
कारण जो भी हो, पश्चिम एशिया का संकट निश्चित तौर पर हद से ज्यादा बढ़ चुका है. यमन में पहले दिन 16 जगहों को निशाना बनाने के लिए लड़ाकू विमानों और टॉमहॉक मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया. लाल सागर में छुपी पनडुब्बी यूएसएस फ्लोरिडा इस हमले का हिस्सा थी. अमेरिका ने दबाव बनाने और किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए यूएसएस आइजनहावर विमानवाहक पोत को भी तैनात किया है. वाशिंगटन का दावा है कि वह हूती उग्रवादियों की क्षमता को कमजोर करने में सफल रहा है, लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञ ऐसे दावों से असहमत हैं. हूती लड़ाके प्रशिक्षित हैं और लगभग एक दशक से यमन में लड़ाई लड़ रहे हैं. हूती आंदोलन, जिसे स्थानीय रूप से अंसार अल्लाह के नाम से जाना जाता है, नब्बे के दशक में हुसैन अल-हूती के नेतृत्व में उभरा. इसने शिया उप-संप्रदाय जैदी के लिए एक धार्मिक पुनरुद्धार आंदोलन शुरू किया. इसे प्रमुखता तब मिली, जब इसने 2014 में यमन की राजधानी सना पर नियंत्रण करते हुए इसके बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. तब से यमन में गृहयुद्ध चल रहा है, जिसमें ईरान समर्थित हूती सऊदी अरब समर्थित सुन्नी गठबंधन के खिलाफ लड़ रहे हैं. इसने पड़ोसी देशों को सुन्नी-शिया आधार पर क्षेत्रीय छद्म युद्ध में झोंक दिया है. हालांकि हूती विद्रोही अमेरिका के लिए सीधा खतरा पैदा नहीं करते हैं, लेकिन सऊदी अरब पर उनके हमले गंभीर चिंता का विषय रहे हैं और अब लाल सागर में वाणिज्यिक जहाजों पर लगातार हमले पश्चिमी देशों के साथ-साथ भारत के लिए भी एक बड़ी चिंता का कारण बन गये हैं.
लाल सागर को भूमध्यसागर से जोड़ने वाली स्वेज नहर एशिया से यूरोप के बीच मुख्य व्यापारिक मार्ग है. वैश्विक व्यापार का लगभग 12 प्रतिशत और वैश्विक तेल व्यापार का 10 प्रतिशत पारगमन स्वेज नहर मार्ग के माध्यम से होता है. दक्षिण अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप से होकर गुजरने वाला वैकल्पिक समुद्री मार्ग लगभग छह हजार समुद्री मील लंबा है. स्वाभाविक रूप से वह रास्ता जहाज कंपनियों और व्यापारियों के लिए काफी महंगा रास्ता है. हूती हमलों ने जहाजरानी कंपनियों को भयभीत कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप या तो व्यापार बंद कर दिया गया है या केप ऑफ गुड होप के माध्यम से आवाजाही होने लगी है. बीमा कंपनियों ने लाल सागर-स्वेज नहर मार्ग के माध्यम से व्यापार को बीमा सुरक्षा देना बंद कर दिया है या अधिक प्रीमियम वसूल रहे हैं. भारत का लगभग 20 प्रतिशत व्यापार लाल सागर के माध्यम से होता है. इसका लगभग 65 प्रतिशत कच्चा तेल लाल सागर से होकर गुजरता है. जैसा कि हमने पहले देखा है, भारत आ रहे दो वाणिज्यिक जहाजों को भी निशाना बनाया गया. इसलिए भारत के लिए यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह पश्चिम एशिया में संघर्ष को बढ़ने से रोकने के लिए हर संभव कदम उठाये. भारत ने अपने वाणिज्यिक जहाजों की सुरक्षा के लिए इस क्षेत्र में अपने नौसैनिक जहाजों को तैनात किया है. मौजूदा संघर्ष में भारत की मध्यस्थता की क्षमता सीमित है. वैसे अधिकतर देशों के साथ इसके अच्छे कामकाजी संबंध हैं. आधिकारिक स्तर पर इस्राइल और अमेरिका के साथ मजबूत संबंधों के बावजूद ईरान के साथ भारत की सहभागिता बरकरार है. वर्तमान प्रकरण के शुरू में इसका झुकाव इस्राइल की तरफ देखा जा रहा था, लेकिन जटिलताओं का एहसास होते ही नीति में संशोधन किया गया. भारत ने बीते 13 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें इस्राइल-हमास संघर्ष में तत्काल मानवीय युद्धविराम और सभी बंधकों की बिना शर्त रिहाई की मांग की गयी थी. युद्ध छिड़ने के बाद यह पहली बार था कि भारत ने इस तरह के प्रस्ताव का समर्थन किया.
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर 14 और 15 जनवरी को ईरान के दौरे पर हैं. गाजा संकट की शुरुआत के बाद से यह ईरान की पहली मंत्री-स्तरीय यात्रा है. निश्चित रूप से इस दौरे में पश्चिम एशिया में संघर्ष का बढ़ना चर्चा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा. खाड़ी में अस्थिरता बढ़ने का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ेगा. यह क्षेत्र भारत की अधिकांश ऊर्जा आवश्यकताओं का स्रोत है. यहां भारतीय प्रवासियों की संख्या 90 से अधिक है. यह सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है, खासकर खाड़ी देशों में, जहां से वे सालाना 38 अरब डॉलर से अधिक धनराशि भारत भेजते हैं. इस्राइल-हमास संघर्ष का बढ़ना क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरनाक है. स्पष्टतः अमेरिका और ईरान संघर्ष बढ़ाने के लिए इच्छुक नहीं हैं, लेकिन इस्राइल चाहेगा कि अमेरिका इस संघर्ष में शामिल हो, जबकि हमास, हिज्बुल्लाह और हूती ईरान को संघर्ष में घसीटना चाहेंगे. इस प्रकार, क्षेत्र में स्थिति बहुत नाजुक है और यह बड़े स्तर पर भड़क सकती है. भारत को तत्काल युद्धविराम, मानवीय सहायता प्रदान करने और इस्राइली बंधकों की रिहाई के महत्व को रेखांकित करते हुए एक संतुलित नीति बनाये रखनी चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)