सैलानियों का मन मोह रहे सात समुंदर पार से आये विदेशी परिंदे
सरायकेला (शचिंद्र कुमार दाश) : दुनिया के कई देशों की सरहदें कोरोना महामारी के कारण आम लोगों के लिए बंद हैं, लेकिन सरहदों की बंदिशों से अनजान विदेशी परिंदे झारखंड के सरायकेला-खरसावां के जलाशयों में चहचहाने लगे हैं. आसपास के इलाकों में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मेहमान साइबेरियन परिंदों का कलरव और अठखेलियों का विहंगम दृश्य पक्षी प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. ये सैलानियों का मन मोह रहे हैं.
सरायकेला (शचिंद्र कुमार दाश) : दुनिया के कई देशों की सरहदें कोरोना महामारी के कारण आम लोगों के लिए बंद हैं, लेकिन सरहदों की बंदिशों से अनजान विदेशी परिंदे झारखंड के सरायकेला-खरसावां के जलाशयों में चहचहाने लगे हैं. आसपास के इलाकों में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मेहमान साइबेरियन परिंदों का कलरव और अठखेलियों का विहंगम दृश्य पक्षी प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. ये सैलानियों का मन मोह रहे हैं.
चांडिल डैम में इन दिनों सात समुंदर पार से सीगल प्रजाति के विदेशी पक्षियों के पहुंचने का दौर शुरु हो गया है. चांडिल डैम के अलावा चौका का पालना डैम, राजनगर के काशीदा डैम, कुचाई के केरकेट्टा डैम में भी ये विदेशी मेहमान पहुंच रहे हैं. सैकड़ों की संख्या में इन विदेशी प्रवासी साइबेरियन पक्षियों के पहुंचने से यहां के प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लग रहा है.
सर्दी शुरू होते ही चांडिल डैम में विदेशी मेहमानों की अठखेलियां शुरू हो जाती हैं, जो किसी भी सैलानी को अपनी और आकर्षित करने के लिए काफी है. पक्षियों को नजदीक से निहारने व अपने कैमरे में तसवीर कैद करने के लिये भी बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचने लगे हैं. इससे एक ओर जहां स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा मिल रहा है, वहीं स्थानीय लोगों के रोजगार में भी वृद्धि हो रही है.
चांडिल डैम में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है. सुबह व शाम को कलरव करते ये विदेशी पक्षियां लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. दूर देश से लाखों मिल की दूरी तय कर ये साइबेरियन पक्षी लगभग तीन चार माह तक रहने के लिये यहां पहुंचते हैं और फिर मार्च के आते ही ये फिर स्वदेश लौट जाते हैं. देखने में देसी बगुले जैसे इन पक्षियों के गरदन पर बादामी रंग चढ़ा रहता है, जो इनकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है.
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जानकार बताते हैं कि विदेशी साइबेरियन पक्षियों को सरायकेला-खरसावां समेत पूर्वी भारत का यह हिस्सा खूब भाता है. नवंबर-दिसंबर के माह में विदेशी साइबेरियन पक्षियों का यहां जमावड़ा लगता है. करीब चार-पांच यहां रहने के बाद यहां विदेशी पक्षियां फिर अपने देश को उड़ जाते हैं. कई विदेशी पक्षियां तो यहां रहने के दौरान अपने बच्चे को उड़ना सीखाती हैं. इसके बाद में मार्च-अप्रैल में बच्चों को अपने साथ ले जाती हैं.
विदेशी पक्षियों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. पूर्व में प्रवासी पक्षियों का लोग चोरी छिपे शिकार करते थे, परंतु अब इन पक्षियों की सुरक्षा की जा रही है. पक्षियों का शिकार पूरी तरह से बंद है. किसी को भी पक्षियों का शिकार करने नहीं दिया जा रहा है. चांडिल डैम में बनाये गये केज के साथ-साथ बडे़ आकार के पेड़ इन पक्षियों के रहने का अस्थायी ठिकाना बने हुए हैं. इस कारण चांडिल डैम में पक्षियों की संख्या में आये दिन बढ़ोतरी हो रही है.
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चांडिल डैम के केज में मछलियों को भोजन के रूप में दिया जानेवाला दाना इन साइबरियन पक्षियों को खूब भा रहा है. इन दानों को विदेशी पक्षी बड़े चाव से खाते हैं. स्थानीय लोगों के साथ-साथ यहां पहुंचने वाले सैलानी भी पक्षियों को दाना खिलाते हैं. इन साइबेरियन पक्षियों को नजदीक से देखने के लिये बड़ी संख्या में सैलानी पहुंच रहे हैं. पक्षियों को देखने के लिए सबसे अधिक सैलानी चांडिल डैम में पहुंच रहे हैं. इससे यहां के पर्यटन को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ आस पास के दुकानदारों के रोजगार में भी बढ़ावा मिल रहा है. झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ अब बंगाल व ओडिशा के लोग भी इन पक्षियों को देखने के लिये चांडिल डैम पहुंच रहे हैं.
चांडिल बांध विस्थापित मत्स्यजीवि स्वावलंबी सहकारी समिति के अध्यक्ष नारायण गोप ने कहा कि विदेशी पक्षियां चांडिल डैम की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं. चांडिल बांध विस्थापित मत्स्यजीवि स्वावलंबी सहकारी समिति भी अपने स्तर से हर तरह की सुविधा दे रही है. मछलियों को दिया जानेवाला दाना इन पक्षियों को खूब पसंद है.
Posted By : Guru Swarup Mishra