बरेली के ‘सियासी चाणक्य’ का क्या होगा अगला कदम? इस्लाम साबिर की सपा से बढ़ती दूरी से उठने लगे यह सवाल
पूर्व विधायक इस्लाम साबिर बरेली लोकसभा सीट से 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव सपा, बसपा और कांग्रेस के टिकट पर लड़ चुके हैं, लेकिन काफी कम अंतर से चुनाव हार गए थे.
Bareilly News: यूपी की सियासत में बरेली की मुख्य भूमिका है. सपा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं संरक्षक मुलायम सिंह यादव हों या बसपा प्रमुख मायावती समेत प्रदेश ही नहीं देश के कई बड़े नेताओं ने बरेली में आंदोलन एवं सियासी जमीन मजबूत कर सियासत के शीर्ष तक पहुंचे हैं. यूपी के पहले मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत भी बरेली शहर सीट से पहली बार विधायक बने थे. 04 अक्टूबर 1992 को गठित होने वाली सपा ने पहले ही चुनाव में 09 में से 07 सीट जीतीं थीं. मगर, अब बरेली से सपा के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया है, जबकि रामपुर और कैराना में पहले ही मुस्लिम नेताओं और मतदाताओं में नाराजगी है, जिसके चलते सपा के भविष्य को लेकर तमाम तरह के सवाल उठने लगे हैं.
बरेली में दरगाह आला हजरत से जुड़े मौलाना शहाबुद्दीन ने सपा विधायक का पेट्रोल पंप ध्वस्त होने के बाद सपा के खिलाफ सबसे पहले मुसलमानों से समाजवादी पार्टी से दूरी बनाने का बयान दिया था. इसके बाद आईएमसी प्रमुख एवं नबीरे आला हजरत मौलाना तौकीर रजा खान ने अखिलेश यादव को आरएसएस और भाजपा से मिला होने की बात कही थी. इसके साथ ही मुस्लिम विधायक-सांसदों से मुसलमानों के लिए सड़क पर उतरने की बातकर सपा-बसपा आदि से इस्तीफे देने को कहा.
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मौलाना ने अखिलेश यादव पर तमाम आरोप लगाए थे. इसके साथ ही सपा प्रमुख पर तमाम आरोप लगाए थे. मगर, अब सपा विधायक एवं उनके पिता पूर्व विधायक इस्लाम साबिर ने भी सपा से दूरी बनानी शुरू कर दी है. उनको बरेली की सियासत का चाणक्य कहा जाता है. वह सियासत में हारी बाजी भी जीतने में सक्षम हैं, तो वहीं सियासत से उनका नाता भी काफी पुराना है. वह खुद एक बार कांग्रेस से 1991 में 533 दिन विधायक रहे हैं. मगर, उनके पिता अशफाक अहमद पांच बार विधायक बने थे. वह 6503 दिन तक विधायक रहे थे. ताऊ रफीक अहमद एक बार 1985 और बेटे शहजिल इस्लाम 2002, 2007, 2012 और 2022 में चौथी बार विधायक बने हैं.
बसपा की सरकार में शहजिल इस्लाम मंत्री भी थे. पूर्व विधायक इस्लाम साबिर बरेली लोकसभा सीट से 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव सपा, बसपा और कांग्रेस के टिकट पर लड़ चुके हैं, लेकिन काफी कम अंतर से चुनाव हार गए थे.
2014 लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट पर उनके विधायक बेटे शहजिल इस्लाम की पत्नी आयशा इस्लाम लोकसभा चुनाव लड़ीं थीं. वह 2,77,573 वोट लेकर चुनाव हार गई थीं. हालांकि, इस्लाम साबिर अंसारी समाज से ताल्लुक रखते हैं. वह इस समाज के वोट को लेने के साथ ही बड़ी संख्या में किसी भी प्रत्याशी और दल को ट्रासंफर कराने की स्थिति में हैं. उनको मुसलमानों का बड़ा नेता माना जाता है. वह बरेली मंडल के बड़े मुस्लिम नेता हैं, जो मुस्लिम समाज के हर वोट के साथ ही हिन्दू समाज के मतदाताओं में भी पकड़ रखते हैं.
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मुहम्मद आजम खां की नाराजगी के साथ ही इस्लाम साबिर की नाराजगी सपा को काफी भारी पड़ सकती है. मगर, अब उनके अगले कदम पर हर किसी की निगाह लगी है.
रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद