धनबाद : मार्क्सवादी चिंतक पूर्व सांसद एके राय की तीसरी पुण्यतिथि 21 जुलाई को है. उन्हें जानने वाला शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा होगा, जो उनकी सादगी से परिचित न हो. जिस कमरे में वह बैठते थे आज भी वह उसी तरह है. कुर्सी उसी स्थान पर, किताबें अपनी जगह पर, तस्वीरें उसी तरह दीवार पर, आने व जाने का रास्ता भी वही. कमी है, तो सिर्फ एके राय की.
सालों तक उनके साथ रहने वाले आज भी उनके विचारों के साथ जी रहे हैं. उनके विचारों से प्रभावित होने वाला शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो राय दा से दूर होने के बारे में सोच सके. यही कारण है कि कई लोगों की सांसें पार्टी की सेवा करते हुए टूट गयी. प्रस्तुति : मनोज रवानी
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तीन बार विधायक व तीन बार सांसद रहे एके राय लकड़ी की कुर्सी पर ही बैठते थे. रोजाना सुबह में पार्टी कार्यालय में आकर उसकी सफाई करना, अखबार पढ़ना, किताबों की दुनिया में रहना और राजनीति पर चिंतन करना, साथ ही रोजाना पार्टी के कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करना उनकी दिनचर्या में शामिल था. उनका कहना था कि मजदूर वर्ग का विकास ही देश का विकास है.
यही कारण है कि वह मजदूरों के हक की लड़ाई के लिए हमेशा अग्रसर रहते थे. उनके कार्यालय में न ही बिजली का कनेक्शन था और न ही जहां वह सोते थे, उस कमरे में हवा के लिए खिड़की व वेंटिलेटर. रोशनी के लिए खपड़े की छत के बीच में सफेद एडबेस्टस और जमीन पर एक चटाई.
राजनीति के दौरान विदेशी सामान के विरोध में आये. कार्यक्रम में मोटरसाइकिल से ही जाना पसंद करते थे. वहीं मजूदरों द्वारा दिये गये कुर्ता व पैजामा ही पहनते थे. सभा के दौरान उनका संबोधन सुनने के लिए लोगों में उत्सुखता साफ दिखती थी.
आजादी की लड़ाई अब मजदूर वर्ग को ही लड़नी है’, ‘नयी जन-क्रान्ति’, ‘मनमोहन सिंह के भारत में भगत सिंह की खोज’, ‘धर्म और राजनीति’, ‘सांप्रदायिकता, क्षेत्रीयता, अलगाववाद की समस्या पर एक मार्क्सवादी विवेचन’ ‘योजना और क्रांति’, ‘झारखंड और लालखंड’, ‘बिरसा से लेनिन’ और ‘नयी दलित क्रांति’ आदि. इसके अलावा हिंदी व अंग्रेजी के पत्र पत्रिकाओं में भी अक्सर उनके लेख प्रकाशित होते रहते थे.
Posted By: Sameer Oraon