Chauth Chand 2022: आज मनाई जाएगी चौठ चन्द्र पूजा, चांद की इस तरह होती है पूजा
Chauth Chand 2022: बिहार के मिथिला प्रांत में चौठ चंद्र पूजा जिसे चोरचन पूजा (Chorchan Puja) भी कहतें हैं, एक बेहद ही महत्वपूर्ण व्रत है. यह पर्व आज यानी 30 अगस्त को मनाया जाएगा. भगवान श्री गणेश और चन्द्र देव को समर्पित चौठ चन्द्र या चोरचन पूजा का बहुत अधिक धार्मिक महत्व है.
Chauth Chand 2022: चौठ चंद्र पूजा भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि अगस्त या सितम्बर माह में आती है. इस साल चौठ चन्द्र पूजा और व्रत आज यानी 30 अगस्त 2022, दिन बुधवार को मनाई जायेगी.
बिहार के मिथिला प्रांत में प्रसिद्ध है चौठ चन्द्र पूजा
बिहार के मिथिला प्रांत में चौठ चंद्र पूजा (Chauth Chandra Puja 2022) जिसे चोरचन पूजा (Chorchan Puja) भी कहतें हैं, एक बेहद ही महत्वपूर्ण व्रत है. मिथिलांचल में तो चौठ चंद्र पूजा का विशेष महत्व है. भगवान श्री गणेश और चन्द्र देव को समर्पित चौठ चन्द्र या चोरचन पूजा का बहुत अधिक धार्मिक महत्व है. इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती है. प्रसाद के रूप में भिन्न-भिन्न प्रकार के पकवान बनाए जातें हैं. इस दिन गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) का व्रत भी किया जाता है. श्री गणेश, विष्णु, माँ पार्वती के साथ साथ चन्द्र देव की पूजा की जाती है. चोरचन पूजा की कथा सुनी जाती है. उसके पश्चात ही चन्द्र देव को अर्घ्य दिया जाता है.
गणेश चतुर्थी पर मानाया जाता है चौठचंद्र पर्व
मिथिला में गणेश चतुर्थी के दिन चौठ चंद्र पर्व मानाया जाता है. कई जगहों पर इसे चौठचंद्र नाम से भी जाना जाता है. इस दिन मिथिलांचल के लोग काफी उत्साह में दिखाई देते हैं. लोग विधि-विधान के साथ चंद्रमा की पूजा करते हैं. इसके लिए घर की महिलाएं पूरा दिन व्रत करती हैं और शाम के समय चांद के साथ गणेश जी की पूजा करती हैं.
सूर्यास्त होने और चंद्रमा के प्रकट होने पर घर के आंगन में सबसे पहले अरिपन (मिथिला में कच्चे चावल को पीसकर बनाई जाने वाली अल्पना या रंगोली) बनाया जाता है. उस पर पूजा-पाठ की सभी सामग्री रखकर गणेश तथा चांद की पूजा करने की परंपरा है. इस पूजा-पाठ में कई तरह के पकवान जिसमें खीर, पूड़ी, गुझिया और मिठाई में खाजा-लड्डू तथा फल के तौर पर केला, खीरा, शरीफा, संतरा आदि चढ़ाया जाता है.
चांद का हिंदू धर्म में है विशेष महत्व
चांद की रोशनी से शीतलता मिलती है. इस रोशनी को इजोरिया (चांदनी) कहते हैं. चांदनी रात पर कई गाने हैं जो रोमांचित करता है. प्रकृति का नियम है जो रात-दिन चलता रहता है. दोनों का अपना महत्व है. अमावस्या यानी काली रात, पूर्णिमा यानी पूरे चांद वाली रात. भादव महीने में अमावस्या के बाद चतुर्थी तिथि को लोग चांद की पूजा करते हैं, जिससे दोष निवारण होता है. साथ ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन मिथिला में चांद की पूजा ‘कोजागरा’ के रूप में मनाया जाता है. चौठचंद्र की पूजा में एक विशेष श्लोक पढ़ा जाता है :
सिंहप्रसेन मवधीत सिंहोजाम्बवताहत:
सुकुमारक मारोदीपस्तेह्यषव स्यमन्तक:..