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Ganesh Ji Ki Aarti: सकट चौथ व्रत कर रहे, तो जरूर पढ़ें गणेश जी की आरती, मंत्र और ये व्रत कथा

Ganesh Ji Ki Aarti: सकट चौथ का व्रत (Sakat Chauth Vrat) सभी संकटों को दूर करने वाला होता है, इसलिए इसे संकटा चौथ भी कहा जाता है. सकट चौथ का व्रत संतान की सुरक्षा और परिवार की खुशहाली के रखा जाता है. इस दिन गणेश जी की आरती और मंत्र जाप भी किया जाता है. पढ़ें गणेश जी की आरती और कौन-सा मंत्र पढ़ें.

Ganesh Ji Ki Aarti Mantra In Hindi: हिंदी पंचांग के अनुसार, माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ का व्रत रखा जाता है. उदाया तिथि के अनुसार इस बार यह व्रत 10 जनवरी, 2023 को रखा जायेगा. इस दिन गणेश जी को तिल से बनी मिठाइयों का भोग लगाया जाता है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं. गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है ऐसी मान्यता है कि गणेश की पूजा करने से सारे काम शुभ होते हैं. गणेश जी की पूजा और आरती से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. गणेश जी की आरती करने से सकारात्मकता आती है. गणेश जी को बुद्धिदाता भी कहा जाता है. इसलिए गणेश जी की आरती करने से सद्बुद्धि भी आती है.

गणेश जी की आरती (Ganesh ji ki Aarti)

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।।
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डू के भोग लगे संत करें सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
अंधे को आंख देत कोढिन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।

गणेश जी के मंत्र

– ॐ गं गणपतये नम:
– वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
– ॐ एकदन्ताय विद्धमहे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥

सकट चौथ व्रत कथा

सकट चौथ यानी संकष्ट चतुर्थी से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें गणेश जी का अपने माता-पिता की परिक्रमा करने वाली कथा, नदी किनारे भगवान शिव और माता पार्वती की चौपड़ खेलने वाली कथा, कुम्हार का एक महिला के बच्चे को मिट्टी के बर्तनों के साथ आग में जलाने वाली कथा प्रमुख रूप से शामिल है. आज आपको सकट चौथ पर तिलकुट से संबंधित गणेश जी की एक कथा के बारे में बताते हैं.

एक समय की बात है. एक नगर में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. वे दोनों पूजा पाठ, दान आदि नहीं करते थे. एक दिन साहूकारनी अपने पड़ोसन के घर गई. वहां वह पूजा कर रही थी. उस दिन सकट चौथ थी. साहूकारनी ने पड़ोसन ने सकट चौथ के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि आज वह सकट चौथ का व्रत है. इस वजह से गणेश जी की पूजा कर रही है. साहूकारनी ने उससे सकट चौथ व्रत के लाभ के बारे में जानना चाहा. तो पड़ोसन ने कहा कि गणेश जी की कृपा से व्यक्ति को पुत्र, धन-धान्य, सुहाग, सबकुछ प्राप्त होता है.

इस पर साहूकारनी ने कहा कि वह मां बनती है तो सवा सेर तिलकुट करेगी और सकट चौथ व्रत रखेगी. गणेश जी ने उसकी मनोकामना पूर्ण कर दी. वह गर्भवती हो गई. अब साहूकारनी की लालसा बढ़ गई. उसने कहा कि उसे बेटा हुआ तो ढाई सेर तिलकुट करेगी. गणेश जी की कृपा से उसे पुत्र हुआ. तब उसने कहा कि यदि उसके बेटे का विवाह हो जाता है, तो वह सवा पांच सेर तिलकुट करेगी.

गणेश जी के आशीर्वाद से उसके लड़के का विवाह भी तय हो गया, लेकिन साहूकारनी ने कभी भी न सकट व्रत रखा और न ही तिलकुट किया. साहूकारनी के इस आचरण पर गणेश जी ने उसे सबक सिखाने की सोची. जब उसके लड़के का विवाह हो रहा था, तब गणेश जी ने अपनी माया से उसे पीपल के पेड़ पर बैठा दिया. अब सभी लोग वर को खोजने लगे. वर न मिलने से विवाह नहीं हुआ.

एक दिन साहूकारनी की होने वाली बहू सहेलियों संग दूर्वा लाने जंगल गई थी. उसी समय पीपल के पेड़ पर बैठे साहूकारनी के बेटे ने आवाज लगाई ‘ओ मेरी अर्धब्याही’. यह सुनकर सभी युवतियां डर गईं और भागकर घर आ गईं. उस युवती ने सारी घटना मां को बताई. तब वे सब उसे पेड़ के पास पहुंचे. युवती की मां ने देखा कि उस पर तो उसका होने वाला दामाद बैठा है.

उसने यहां बैठने का कारण पूछा, तो उसने अपनी मां की गलती बताई. उसने तिलकुट करने और सकट व्रत रखने का वचन दिया था लेकिन उसे पूरा नहीं किया. सकट देव नाराज हैं. उन्होंने ही इस स्थान पर उसे बैठा दिया है. यह बात सुनकर उस युवती की मां साहूकारनी के पास गई और उसे सारी बात बताई. तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ.

तब उसने कहा कि हे सकट महाराज! उसका बेटा घर आ जाएगा तो ढाई मन का तिलकुट करेगी. गणेश जी ने उसे फिर एक मौका दिया. लड़का घर आ गया और उसका विवाह पूर्ण हुआ. उसके बाद साहूकारनी ने ढाई मन का तिलकुट किया और सकट व्रत रखा. उसने कहा कि हे सकट देव! आपकी महिमा समझ गई हूं, आपकी ​कृपा से ही उसकी संतान सुरक्षित है. अब मैं सदैव तिलकुट करूंगी और सकट चौथ का व्रत रहूंगी. इसके बाद से उस नगर में सकट चौथ का व्रत और तिलकुट धूमधाम से होने लगा.

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