गंगा का दर्शन पावन है तो गंगा स्नान सदैव मोक्षदायिनी
प्राचीन काल में हिमालय से निकली गंगा सात धाराओं में विभक्त हुई, जिसे गंगा, यमुना, सरस्वती, रथस्था, सरयू, गोमती और गंडकी कहा जाता है. गंगा का आकाश ही तट है, ये देवलोक में अलकनंदा कही जाती है, पितृलोक में वैतरणी कही जाती है, पृथ्वीलोक में इनका नाम गंगा है.
मयंक मुरारी, आध्यात्मिक लेखक व चिंतक
प्राचीन काल में हिमालय से निकली गंगा सात धाराओं में विभक्त हुई, जिसे गंगा, यमुना, सरस्वती, रथस्था, सरयू, गोमती और गंडकी कहा जाता है. गंगा का आकाश ही तट है, ये देवलोक में अलकनंदा कही जाती है, पितृलोक में वैतरणी कही जाती है, पृथ्वीलोक में इनका नाम गंगा है.
हमारी संस्कृति की जीवनधारा है गंगा
भारतीय जीवन में गंगा आस्था है. माता है, हमारी संस्कृति की जीवनधारा है. गंगा सिर्फ नदी नहीं है, जो युगों से प्रवाहित हो रही है. इसके सनातन प्रवाह से भारतीय जीवन में धर्म, दर्शन, सभ्यता, अध्यात्म व मोक्ष की अविरल धारा समृद्ध और शाश्वत स्वरूप धारण करती है. इसके तटों पर शाश्वत सभ्यता का विकास से लेकर सनातन संस्कृति के पदचिन्हों का प्रमाण मिलता है. इसके कंकड़-कंकड़ में शंकर की अनादि सत्ता को स्वीकारने वाली भारतीयता गंगा से जुड़ी है, उसमें समन्वित है. वसुधैव कुटुंबकम का संदेश हो या विविधता में एकता का दर्शन कराती भारतीय संस्कृति की बात हो, गंगा हर समय और परिस्थति में समान रूप से अपना आशीर्वाद और प्रसाद देती रही है.
गंगा की महिमा
गंगा शब्द मात्र सुन कर मन में दिव्य शुचिता और पावनता के भाव उभरने लगते हैं. यह गंगा देव लोक और पृथ्वी दोनों जगह सबको आप्यायित करती हैं. गंगा की महिमा का गान भारत के इतिहास, पुराण और साहित्य में ही नहीं, बल्कि लोक मानस में भी निरंतर गूंजता रहा है. गंगा तट पर सदियों से जाने कितने ध्यानी और ज्ञानी, साधक और परिव्राजक, संत और महात्मा साधना करते आये हैं. इसी गंगा के तट से कवियों, ऋषियों एवं तपस्वियों के विचार और कल्पना भी तरंगायित होकर साहित्य, धर्म व आध्यात्म को सबल और संस्कारित किया है. निर्मल गंगा-जल अपनी पवित्रता और औषधीय गुण से युक्त होने से स्वास्थ्य संवर्धन का साधक भी है. गंगा की यह पवित्रता और इसमें पाये जानेवाली पापनाशिनी तत्व हमारे वृहस्पति ग्रह से निकलने वाले कॉस्मिक एनर्जी और हिमालय से प्रवाहित होने के दौरान पहाड़ से मिलनेवाली जड़ी-बूटियों के कारण है. गंगा असंख्य भारतीयों के लिए मां है और भारतीय मन अपनी माता का सान्निध्य पाने के लिए मचलता रहता है, जिसने मातृभाव से अपने तटवर्ती भूभागों का पालन-पोषण किया, उन्हें तीर्थ बना दिया. जहां देश-विदेश के श्रद्धालु अपनी-अपनी कामना लिये आते हैं और गंगा को अपने अनुसार संबोधन दे जाते हैं. हिमशिखरों से निकलती असंख्य दिव्य धाराएं दिव्य प्रसाद रूपी अमृत है, जो गंगा प्रदान करती है. प्राचीन काल में हिमालय से निकली गंगा सात धाराओं में विभक्त हुई, जिसे गंगा, यमुना, सरस्वती, रथस्था, सरयू, गोमती और गंडकी कहा जाता है. गंगा का आकाश ही तट है, ये देवलोक में अलकनंदा कही जाती है, पितृलोक में वैतरणी कही जाती है, पृथ्वीलोक में इनका नाम गंगा है. (महाभारत, आदि पर्व, चैत्ररथपर्व 19-22).
गंगा का दर्शन पावन
गंगा का दर्शन पावन है, तो गंगा स्नान सदैव एक मोक्षदायिनी अवसर है. गांवों में नहान जीवन का एक अनमोल काम है, जिसे हरेक गरीब-अमीर, ऊंचा-नीचा, स्त्री-पुरुष उसकी मुक्तिकारी गोद में डुबकी लगाकर अपने जीवन को धन्य करना चाहता है. अकारण ही गंगा में स्नान मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है, तो कुंभ पर्व के विराट आयोजन उस नरमुक्ति का गवाह बनता है. यह हरेक बारह सालों पर इसके तट पर उत्सव होता है. कुंभ के पुण्य अवसर पर प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान के अवसर की कामना लिये लोग सालोंसाल तैयारी करते रहते हैं. हरिद्वार में भी गंगा स्नान का उत्सव होता है. गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता है.