खतरे में गंगा सागर : डूब रहा सागरद्वीप, 52 वर्ष में 31 वर्ग किमी जमीन व 3 कपिल मुनि मंदिर समुद्र में समाये

कोलकाता से करीब 100 किमी दूर दक्षिण 24 परगना जिले के सागर द्वीप पर स्थित तीर्थस्थल गंगा सागर हर साल छोटा होता जा रहा है. सागर द्वीप करीब 224.3 वर्ग किमी में फैला हुआ है. यहां 43 गांव हैं. इनमें सबसे बड़ा गांव है, गंगा सागर. समुद्र के बढ़ते जलस्तर ने इस पूरे द्वीप को खतरे में डाल दिया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 30, 2023 8:20 AM

कोलकाता, अमर शक्ति प्रसाद. हाल ही में विश्व प्रसिद्ध गंगा सागर मेले का समापन हुआ है. सरकारी दावों के अनुसार, मेले में इस साल 70 लाख श्रद्धालुओं के आने की बात कही जा रही है. मेले के समापन के बाद प्रभात खबर ने यूनेस्काे की ओर से विश्व धरोहर घोषित किये गये सुंदरवन क्षेत्र में पड़ने वाले सागर द्वीप पर स्थित इस पवित्र तीर्थ स्थल में होनेवाले कटाव और समुद्र के बढ़ते जलस्तर का आकलन किया, तो कई चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आयी. सागर द्वीप सहित सुंदरवन क्षेत्र में स्थित दूसरे द्वीप समुद्र के जल स्तर बढ़ने व नदियों के कटाव की वजह से सिकुड़ते जा रहे हैं. जिस सागर द्वीप पर गंगा सागर स्थित है, उसका अस्तित्व हर साल सिमट रहा है.

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बंगाल सहित पूरे देश के तटवर्ती इलाकों में समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है. इन क्षेत्रों में मौसम में भी तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है. बंगाल समेत देश के तटवर्ती इलाकों में आये दिन चक्रवाती तूफान आ रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में चक्रवाती तूफानों की संख्या, गति व तीव्रता में काफी वृद्धि देखी गयी है. इसका असर सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल गंगा सागर पर भी पड़ रहा है.

कोलकाता से करीब 100 किमी दूर दक्षिण 24 परगना जिले के सागर द्वीप पर स्थित यह तीर्थस्थल हर साल छोटा होता जा रहा है. सागर द्वीप वर्तमान में करीब 224.3 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है. यहां 43 गांव हैं. इनमें सबसे बड़ा गांव है, गंगा सागर. समुद्र के बढ़ते जलस्तर ने इस पूरे द्वीप को खतरे में डाल दिया है. जानकार बताते हैं, 1969 से 2022 तक लगभग 52 वर्षों में सागरद्वीप का 31 वर्ग किमी ( लगभग छह किमी का इलाका) क्षेत्र पानी में समा गया है. 1969 के आसपास सागरद्वीप का कुल क्षेत्रफल 255 वर्ग किमी के आस-पास था, जो अब कम होकर 224.3 वर्ग किमी हो गया है. यानी हर साल औसतन 110 मीटर (0.6 वर्ग किमी ) का भू-भाग जलमग्न हो रहा है.

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जानकारों का मानना है कि नदियाें के लगातार मार्ग परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से समुद्र के जलस्तर में वृद्धि के कारण कटाव काफी तेजी से हो रहा है. पिछले एक दशक में जिस प्रकार से चक्रवातों की संख्या बढ़ी है, ऐसे में किनारों के बने बांध क्षतिग्रस्त हो गये हैं. इसकी मरम्मत के लिए राज्य सरकार ने पहल भी शुरू की थी, लेकिन बाद में योजना पर काम आगे नहीं बढ़ पाया.

गंगा सागर में स्थित वर्तमान कपिल मुनि मंदिर भी खतरे में है. अगर अब भी केंद्र व राज्य सरकार सचेत नहीं हुई, तो अगले एक दशक में कपिल मुनि मंदिर भी पानी में समा जायेगा. वर्तमान मंदिर का निर्माण 1970 के दशक में किया गया था. लेकिन जब यह बना था, उस समय सागर से करीब चार किमी की दूरी पर था, लेकिन वर्तमान समय में सागर से कपिल मुनि मंदिर की दूरी कम होकर मात्र 500 मीटर रह गयी है. अगर इसी तरह समुद्र का जलस्तर बढ़ता रहा और कटाव जारी रहा, तो बहुत जल्द कपिल मुनि मंदिर भी पानी में समा जायेगा.

जानकारों का मानना है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग के चलते तापमान आधा डिग्री का इजाफा हो जाता है, तो निश्चित तौर पर मंदिर सागर में समा जायेगा. रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1969 से 1985 के बीच समुद्र का जलस्तर काफी तेजी से बढ़ा है. बताया जाता है कि सागरद्वीप में इस दौरान जल स्तर प्रति वर्ष औसतन 2.6 मिमी की दर से बढ़ा है. इसका असर सुंदरवन क्षेत्र के हर इलाके में देखने को मिला. सुंदरवन के अन्य क्षेत्रों में समुद्र का जलस्तर प्रति वर्ष औसतन आठ मिमी तक की दर से बढ़ रहा है.

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विशेषज्ञों के अनुसार, तटीय पर्यावरण के मुद्दे अत्यधिक जटिल हैं, इसलिए तटीय क्षेत्र के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए. भूमि, समुद्र और वायुमंडल के बीच निरंतर भौतिक संपर्क तट को एक गतिशील क्षेत्र बनाता है. सागर द्वीप तट ज्वार-भाटा बहुल वाला क्षेत्र है. अत्यधिक उच्च ज्वार के दौरान यहां उच्च ज्वार छह मीटर तक पहुंच जाता है और कभी-कभी ये प्रभाव चक्रवातों के दौरान बहुत अधिक होते हैं, जो अक्सर तट के इस हिस्से में होते हैं. उस समय तो छह मीटर से उच्च ज्वार आते हैं, जिससे तटवर्ती क्षेत्रों में कटाव बहुत अधिक होता है.

आइआइटी मद्रास की रिपोर्ट पर नहीं हुआ काम

राज्य सरकार ने आइआइटी मद्रास को गंगासागर तट के पास सतह के स्तर के सर्वे का जिम्मा सौंपा था. किस तरह से समुद्र तट कट रहा है, इसके क्या कारण हैं, और इसे कैसे रोका जा सकता है, इस बारे में आइआइटी मद्रास को रिपोर्ट तैयार कर प्राथमिक रिपोर्ट भी पेश की थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर तटवर्ती क्षेत्रों में कंक्रीट से तटबंध तैयार किया जाये, तो इससे कटाव नहीं होगा. इससे अगले 40 वर्षों तक गंगा सागर तट पर कटाव की समस्या नहीं होगी. लेकिन केंद्र सरकार ने पर्यावरण संबंधी कारणों की वजह से इसे मंजूरी नहीं दी.

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तीन कपिल मुनि मंदिर समा गये समुद्र में

गंगासागर की तट पर स्थित कपिल मुनि मंदिर काफी पुराना है. इस जगह के साथ पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. इसका विशेष महत्व है. कपिल मुनि का मंदिर 1437 में स्वामी रामानंद ने स्थापित किया था. हालांकि, पहला मंदिर वर्तमान जगह से लगभग 20 किमी की दूरी पर था. लेकिन जलस्तर बढ़ने से यह समुद्र में समा गया. इसे फिर दूसरी जगह स्थापित किया गया. पर कुछ सालों बाद यह मंदिर भी समुद्र में समा गया. बताया जाता है कि इसी तरह कपिल मुनि के तीन मंदिर समुद्र में समा चुके हैं. अब वर्तमान मंदिर पर भी खतरा मंडरा रहा है. बताया जाता है कि वर्तमान मंदिर का निर्माण 1970 के दशक में किया गया था. लेकिन जब यह बना था, उस समय सागर से करीब चार किमी की दूरी पर था. वर्तमान समय में सागर से कपिल मुनि मंदिर की दूरी कम होकर मात्र 500 मीटर रह गयी है.

मात्र 850 मीटर के लिए ही तैयार हो रही योजना

गंगासागर-बकखाली विकास प्राधिकरण के चेयरमैन व सुंदरवन विकास मंत्री बंकिम चंद्र हाजरा ने बताया, राज्य सरकार ने समस्या के स्थायी समाधान के लिए योजना तैयार की थी. हमने सागर किनारे लगभग पांच किमी लंबा कंक्रीट का तटबंध बनाने का फैसला किया था. लेकिन केंद्र सरकार ने इसकी मंजूरी नहीं दी. अब हम ट्रेटापोड तकनीक से गंगासागर में कटाव की समस्या को दूर करने की पहल शुरू करने जा रहे हैं. टेट्रापोड तकनीक से सागर की बड़ी लहरों को तट पर पहुंचने से पहले ही कमजोर कर दिया जायेगा, इससे वह किनारों पर कटाव ना कर सके.

योजना पर राज्य सरकार की ओर से लगभग नौ करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे. इससे पहले मौसूनी, पाथर प्रतिमा व गोसाबा सहित अन्य क्षेत्रों में इस तकनीक का प्रयोग कर बड़े ज्वार व लहरों को तट पर पहुंचने से पहले ही तोड़ देने या कमजोर करने की दिशा में काम किया गया था. इसमें सफलता भी मिली है. समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है. पिछले 20 वर्ष में लगभग तीन किलोमीटर क्षेत्र सागर में समा गया है. इसलिए राज्य सरकार ने अपने स्तर पर गंगासागर में लगभग 850 मीटर क्षेत्र में कटाव की समस्या को रोकने के लिए यह कदम उठाया है. बाद में इसकी लंबाई और भी बढ़ायी जायेगी.

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