Bihar News: बिहार के सहरसा के घमौर होली की है अलग पहचान, एक दूसरे के कंधे पर चढ़कर लगाते हैं रंग-गुलाल

सहरसा जिले के बनगांव की घुमौर होली की पहचान देश में अलग ही है. इसमें लोग एक दूसरे के कंधे पर सवार होकर, जोर अजमाइस करके होली मनाते है. संत लक्ष्मी नाथ गौसाई द्वारा शुरू की गयी बनगांव की होली ब्रज की लठमार होली की तरह ही प्रसिद्ध है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 19, 2022 12:00 PM

बिहार के चारो तरफ होली की आज धूम है. रंग-गुलाल में सभी लोग सराबोर है. वहीं, सहरसा जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर पश्चिम कहरा प्रखंड के बनगांव में मनाई जाने वाली घमौर होली की अपनी अलग पहचान है. यहां की होली ब्रज की होली की जैसी बेमिसाल है. बनगांव की घुमौर होली. इसमें लोग एक दूसरे के कंधे  पर सवार होकर, जोर अजमाइस करके होली मनाते है. संत लक्ष्मी नाथ गौसाई द्वारा शुरू की गयी बनगांव की होली ब्रज की लठमार होली की तरह ही प्रसिद्ध है.

एक अलग सांस्कृतिक पहचान है घुमौर होली

मान्यता है कि इसकी परंपरा भगवान श्री कृष्ण के काल से चली आ रही है. 18 वीं सदी में यहां के प्रसिद्ध संत लक्ष्मी नाथ गौसाई बाबाजी ने तय किया था. बिहार की सबसे बड़ी आबादी वाले व तीन पंचायत वाले बसे बनगांव की होली की देश में एक अलग सांस्कृतिक पहचान है. बनगांव के भागवती स्थान के पास इमारतों पर रंग बिरंगे पानी के फब्बारे में फिंगोने के बाद इनकी होली पूरी होती है.

एक दूसरे का कपड़ा फार के होली का उठाते है आनंद

बनगांव निवासी स्थानीय लोगों की माने तो यहां की होली सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है. बाबा लक्ष्मी नाथ गोसाई द्वारा स्थापित सभी जाति धर्म के लोग बगैर राग द्वेष के एक साथ होली खेलते है, सभी लोग बैलजोड़ी होली का प्रदर्शन करते है. पुरे क्षेत्र और गांव के लोग भगवती स्थान के प्रांगण में आकर यहां खेलते है. एक दूसरे का कपड़ा फार के होली का आनंद उठाते है. गांव की एकता का ये बहुत अनूठा मिशाल है. सभी जाति धर्म के लोग एक दूसरे के कंधे पर सवार होकर होली का आनंद लेते है.

Also Read: नालंदा में घर से युवक को बुलाकर एसिड से नहलाया, मौत के बाद गांव में तनाव, पुलिस ने की 5 राउंड फायरिंग

Next Article

Exit mobile version