अभिनेता अभिषेक बच्चन की फ़िल्म घूमर बीते शुक्रवार सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी हैं. स्पोर्ट्स बेस्ड इस फ़िल्म में अभिषेक एक सख्त मेंटर के तौर पर नज़र आ रहे हैं. वे बताते हैं कि उन्होंने किरदार के लिए अपने बालों को सफ़ेद करवाया. हालांकि उनकी उम्र के उनके सभी दोस्तों के बाल थोड़े बहुत सफ़ेद हो गए हैं, लेकिन उनके बाल अभी भी बेहद काले हैं, एक भी बाल सफ़ेद नहीं हुए हैं. उनके इस किरदार और फ़िल्म पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत.
फ़िल्म के ट्रेलर में आपका किरदार काफी खड़ूस है, कितना मुश्किल था, इस किरदार में आना?
हां, मेरा किरदार बहुत अक्खड़ और बहुत असंवेदनशील है. मैंने फ़िल्म के निर्देशक बाल्की से भी कहा कि उसे किसी महिला से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए.’ उन्होंने कहा कि नहीं, तुम करो क्योंकि उसे सामान्य व्यवहार की जरूरत हैं. सामान्य व्यवहार ना करके आप उसपर तरस खा रहे हैं. तुम ऐसे बात कर रहे हो मतलब साफ हैं कि तुम उस लड़की,जिसका एक हाथ नहीं है. उससे तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता है. यदि आप बाकी दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं, तो दूसरे लोग से ज़्यादा कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. अपनी कमज़ोरी को बैसाखी के रूप में उपयोग न करें बल्कि मजबूती के तौर पर खुद से जोड़े. सामान्य व्यवहार से भी ये मजबूती आती हैं. उस किरदार में भी आएगी इसलिए मेरे किरदार का ऐसा होना जरूरी है.
आर.बाल्कि के साथ आपका जुड़ाव काफी पुराना रहा है,इस साथ को किस तरह से परिभाषित करेंगे?
मुझे उनके साथ काम करना पसंद है. मैं पिछले बीस वर्षों से उनसे जुड़ा हुआ हूं. हमने उनके साथ पहली फिल्म ‘पा’ की थी लेकिन मैंने उनके साथ कई विज्ञापनों में भी काम किया है.’ मुझे उनकी संवेदनशीलता और जीवन की कुछ स्थितियों पर उनका अनोखा नजरिया पसंद है. वह एक अद्भुत व्यक्ति हैं.
क्या इतने सालों की बॉन्डिंग की वजह से स्क्रिप्ट पढ़ने की ज़रूरत होती हैं?
हमारा थोड़ा अलग हैं, बाल्कि सर बस मुझे अपना आईडिया बताते हैं और जब आप कहते हैं कि आपको यह पसंद है, तो वह आगे बढ़ते हैं और इसे लिखते हैं और फिर स्क्रिप्ट पूरी हो जाने के बाद मैं इसे पढता भी हूं.
क्या यह फ़िल्म किसी स्पोर्टपर्सन की जिंदगी से प्रेरित है?
निर्देशक बाल्कि एक हंगेरियन पिस्टल शूटर से प्रेरित थे जिन्होंनें ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीते थे, लेकिन उनके दाहिने हाथ में समस्या हो गयी, जिसके बाद उन्होंने अपने बाएं हाथ से शूटिंग करने का प्रशिक्षण लिया और उसके बाद दो स्वर्ण पदक और ओलिंपिक में जीते. यह घटना फिल्म के लिए विचार प्रेरणा थी. यह उस पर आधारित नहीं है.
आपका करियर उतार – चढ़ाव से भरा रहा हैं,लगातार असफलता से क्या खुद पर संदेह भी आता हैं, आपके माता-पिता एक्टर के तौर पर बहुत सफल रहे हैं ?
जाहिर तौर पर मैं कई बार खुद पर संदेह करता हूं. हां, मेरे माता-पिता सफल हैं, लेकिन यह आपको खुद को अच्छा बनने से नहीं रोकता है. इससे भी अधिक यह आपके और आपकी अपेक्षाओं के बारे में है. सबसे बड़ी आलोचक आपकी प्रतिभा के आप है. आप यह जानते हैं कि आप कहां गलत हो गए हैं. कम से कम जब मैं अपनी फिल्में देखता हूं तो मुझे पता होता है कि यह चलेगी या नहीं.
आप आलोचक के तौर पर नकारात्मक या रचनात्मक होने में विश्वास करते हैं?
आपको रचनात्मक होना होगा. मैं किसी भी तरह की नकारात्मकता में विश्वास नहीं रखता. आगे क्या होगा इसका फैसला आपको करना है. आप शिकायत न करें, हमेशा समाधान बताएं.
आपका सबसे बड़ा आलोचक कौन है?
मैं अपना सबसे बड़ा आलोचक हूं और हर रोज मेरी फिल्में देखता हूं. मेरे पास नोटबुक्स का ढेर है जहां मैंने नोट्स उतारे हैं कि कहां मैं गलत हुआ हूं.
फिल्म में आप सख्त गुरु के तौर पर नजर आ रहे है, आपके बुरे दिनों में आपका गुरु कौन रहा हैं ?
मेरे माता-पिता हमेशा मेरे गुरु रहे हैं. मुझे लगता है आप ऐसा कह सकते हैं कि मां हमेशा थी. पापा ज़्यादातर शूटिंग में रहते थे. मां सख्त थी,लेकिन पापा ने कभी हम पर हाथ नहीं उठाया, आज भी उन्हें सिर्फ हमारी तरफ देखना पड़ता हैं और हम अपनी गलती समझ जाते हैं. वैसे वे दोनों ही बहुत सहयोगी और प्यार करने वाले माता-पिता रहे हैं.
आपके अनुसार विजेता कौन है?
यह निर्भर करता है, यदि आप एक खिलाड़ी हैं तो आप जानते हैं कि विजेता कौन है, चाहे आप खेल जीतें या हारें, लेकिन जीवन में हमें इससे आगे जाना होगा. हमें एक अलग क्षेत्र से होकर गुजरना होगा. सफलता की परिभाषा बदलनी होगी. मौजूदा पीढ़ी अधिक भौतिकवादी हो गयी हैं. मैं अपनी बात करुं तो मुझे लगता है कि अगर मैं रात को तकिये पर सिर रखकर शांति से सो सकूं तो यही सफलता है. शायद हमें किसी महत्वपूर्ण चीज़ को हासिल करने के बजाय उस पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए. हम इतनी मेहनत करते हैं और सोचते हैं कि हमें एक बंगला और एक कार खरीदना है. यह बहुत पेचीदा बात है, क्योंकि आखिर मे मौत के बाद हमें सबकुछ हार के यही जाना है. मुझे याद हैं कोविड के दौरान हम लोग अभी-अभी कोविड से पीड़ित होकर अस्पताल से लौटे थे. हम सब घर पर बैठे-बैठे थक गए थे और शिकायत कर रहे थे. मेरी पत्नी आई और बोली, “सुनो, हमारे पास आभारी होने के लिए बहुत कुछ है, हमारा एक स्वस्थ परिवार है. इससे अधिक महत्वपूर्ण क्या है. मुझे ये बात सही लगी. आपके करीबी और प्रियजन खुश, स्वस्थ और साथ हैं. मुझे सफलता की इससे बड़ी कोई परिभाषा नहीं दिखती है.
आपने कहा कि यह पीढ़ी भौतिकवादी है, आपकी एक भतीजी और भतीजा है जो अब बड़े हो रहे हैं और आपकी बेटी आराध्या भी बड़ी हो गई है, तो आप उन्हें क्या सलाह देना चाहेंगे?
मैं उन्हें अच्छा इंसान बनना सिखाता हूं.’ मेरे माता-पिता ने मुझे यही सिखाया है. नव्या और अगस्त्य आज वयस्क हैं और वे आराध्या के लिए भी एक उदाहरण हैं. ऐश्वर्या और मैं उसे एक अच्छा इंसान बनना सीखा रहे हैं. बचपन में हमें यही सिखाया गया था.
आप निजी जिंदगी मे मेंटर के तौर पर किसी खास परीक्षा मे आराध्या को प्रेरित करते हैं?
ये सब उसकी मां करती है. मुझे लगता है कि आपको प्यार करने वाला और प्रोत्साहित करने वाला होना चाहिए. यह सबसे अच्छी चीज़ है, जो हर माता-पिता को जरूर करनी चाहिए. उन्हें भावनात्मक समर्थन देना और उन्हें यह बताना कि चाहे कुछ भी हो, उन्हें प्यार किया जाएगा.यह जरूरी है. वैसे भी जिंदगी उन्हें सिखाएगी.
क्या आपने रॉकी और रानी देखी और आपकी मां जया बच्चन के अभिनय के बारे में आपकी क्या राय है?
मां के साथ यह एक अलग भावना और समीकरण है, मैं उन्हें एक अभिनेता के रूप में नहीं देख पाता हूं. पिताजी और ऐश्वर्या को मैं एक्टर के तौर पर देख सकता हूं लेकिन मां को नहीं देख पाता हूं. वह सिर्फ एक भावना है. मैं उसे कभी जज नहीं कर सकता. मैंने उनके साथ फिल्म देखी. उन्हें अपनी मां के अलावा किसी और चीज़ के रूप में जोड़ना कठिन है. इसलिए मेरे लिए यह बहुत भावनात्मक है.
आपकी आनेवाली फ़िल्में?
शूजीत सरकार के साथ एक फ़िल्म की शूटिंग शुरू करने जा रहा हूं.