फिल्म – घूमर
निर्देशक -आर बाल्कि
निर्माता – होप प्रोडक्शन
कलाकार -अभिषेक बच्चन सैयमी खेर, शबाना आज़मी,अंगद बेदी और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग – ढाई
चीनी कम, पा और पैडमैन जैसी यादगार फ़िल्में बना चुके निर्देशक आर बाल्कि इस बार स्पोर्ट्स ड्रामा के जरिये असम्भव को संभव बनाने वाली कहानी लेकर आए हैं. ओलिंपिक में गोल्ड मेडल विनर हंगेरियन शूटर की कहानी से प्रेरित इस प्रेरणादायी फ़िल्म में बहुत कुछ खास है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है, जो हमने पहले देखा और सुना ना हो. फ़िल्म की कहानी और उसका ट्रीटमेंट बहुत प्रेडिक्टेबल है. जिस वजह से यह एक औसत फ़िल्म बनकर रह गयी है.
फिल्म की कहानी अनीना (सैयामी खेर) की है, जो एक महत्वाकांक्षी क्रिकेटर है. फिल्म के पहले से शॉट से यह बात साबित हो जाती है कि वह एक होनहार क्रिकेटर है. उसका सपना भारतीय क्रिकेट टीम में अपनी जगह बनाने का है और वह जल्द ही इंग्लैंड जानेवाली भारतीय टीम के प्लेइंग 16 खिलाडियों में अपनी में जगह भी बना लेती है. आईना का एक प्यारा सा परिवार है,और एक प्रेमी (अंगद बेदी ) भी है. एक पिक्चर परफेक्ट लाइफ है, लेकिन एक हादसे में वह अपना हाथ खो बैठती है. ज़िंदगी को बहुत प्यार करने वाली अनीना को अपनी ज़ुंदगी से नफरत होने लगती है क्योंकि उसके पास अब उसका क्रिकेट नहीं है. उसकी ज़िंदगी में शराबी और एक सिर्फ एक टेस्ट खेल चुके क्रिकेटर पदम सिंह सोढ़ी उर्फ पैडी (अभिषेक बच्चन) की एंट्री होती है. अक्खड़ और स्वभाव से असंवेदनशील पैडी ना सिर्फ अनीना को खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उसे बॉलर के तौर पर ट्रेनिंग देता है बल्कि अनीना में जीवन में जीने के जज्बे को भी फिर से जिन्दा करता है. यह सब कैसे होता है। यही आगे की कहानी है.
यह एक स्पोर्ट्स बेस्ड फिल्म है. क्रिकेट में महिला प्लेयर की जर्नी को दिखाया गया है , जो आमतौर पर पुरुषों का क्षेत्र माना जाता है. इसके लिए इस फिल्म की पूरी टीम को बधाई है , लेकिन फिल्म देखते हुए यह बात शिद्दत से महसूस होती है कि ऐसा कुछ भी नहीं है , जो पहले देखा नहीं गया है. यह फिल्म कई बार इकबाल, परिंदे और साला खड़ूस की भी याद दिलाती है. असंभव को संभव बनाने वाली कई प्रेरणादायी कहानियों वाली फिल्मों की इसमें झलक है। फिल्म में एक संवाद है ज़िन्दगी लॉजिक का नहीं बल्कि मैजिक का खेल है, लेकिन फिल्म पर्दे पर वह मैजिक नहीं ला पायी है कि आपके जेहन में यह सवाल ना आए कि क्या क्रिकेट में ऐसे किसी खिलाडी या बॉलिंग का ऐसा एक्शन मान्य है. फ़िल्म इस पर सरसरी तौर बात करती हैं, लेकिन वह कंविन्स नहीं कर पायी है. फ़िल्म का फर्स्ट हाफ अच्छा बन पड़ा हैं. सेकेंड हाफ में कहानी बहुत ही प्रेडिक्टेबल हो गयी है. क्लाइमैक्स भी चौंकाता नहीं है, बल्कि वह गैर जरूरी सा लगता है.फिल्म के संवाद जरूर अच्छे बन पड़े हैं. सिनेमाटोग्राफी औसत रह गयी है. गीत – संगीत की बात करें तो घूमर छोड़कर कोई भी गीत यादगार नहीं है.
अभिनय की बात करें तो अभिषेक बच्चन ने उम्दा परफॉरमेंस दी है. अपने किरदार को उन्होने बारीकी से जिया है. सैयमी खेर ने भी अपने किरदार पर खूब मेहनत की है, लेकिन उन्हें अपने संवाद अदाएगी को थोड़ा और तराशने की जरूरत थी. इमोशनल दृश्यों में भी उन्हें थोड़ा और खुद पर काम करना चाहिए. शबाना आज़मी हमेशा की तरह अपने किरदार में इस बार भी छाप छोड़ गयी है. सैयमी के परिवार के बीच की केमिस्ट्री भी अच्छी बन पड़ी है. अंगद बेदी और सहित दूसरे कलाकारों ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है. अमिताभ बच्चन और क्रिकेट लीजेंड बिशन सिंह बेदी को परदे पर देखना सुखद अनुभव है.