गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार प्रदान किया जाएगा. विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस को सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए यह पुरस्कार मिलेगा. केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने रविवार को इसकी घोषणा की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में यह निर्णय लिया गया है. गांधी शांति पुरस्कार महात्मा गांधी के आदर्शों को श्रद्धांजलि के रूप में दिया जाता है. इस पुरस्कार के तहत एक करोड़ रुपया और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है लेकिन गीता प्रेस ट्रस्ट ने पुरस्कार के तहत मिलने वाली राशि लेने से इनकार कर दिया है . क्योंकि गीता प्रेस ट्रस्ट किसी से भी सहयोग राशि नहीं लेता है.
गीता प्रेस गोरखपुर के प्रबंधक डॉ लालमणि तिवारी ने बताया कि गीता प्रेस की स्थापना का उद्देश्य है कि जन जन तक धार्मिक पुस्तकें पहुंच सके.गीता प्रेस अपने स्थापना की भावनाओं का सम्मान करते हुए लगातार लागत मूल्य से कम पर लोगों को पुस्तकें उपलब्ध कराता रहा है. उन्होंने बताया कि गांधी शांति पुरस्कार के तहत मिलने वाली राशि को गीता प्रेस ट्रस्ट ने लेने से मना कर दिया है क्योंकि गीता प्रेस किसी से भी कोई सहयोग राशि नहीं लेता है.
सरकार ने 1995 में गांधी शांति पुरस्कार देने की शुरुआत की थी यह पुरस्कार 2019 में ओमान के सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद को दिया गया था और 2020 में बांग्लादेश के शेख मुजीबुर्रहमान को दिया गया था. दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के अलावा इसरो, रामकृष्ण मिशन, विवेकानंद केंद्र बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक, समेत कई संस्थानों को भी यह पुरस्कार मिल चुका है.
पिछले 100 वर्षों में गीता प्रेस ने 15 भाषाओं में 93 करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित कर चुका है. यह संस्था प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाल महामारी सहित कई आपदाओं में समाज की मदद के लिए आगे आती रही है गीता प्रेस में श्रीमद्भागवत गीता, श्रीरामचरितमानस ,महाभारत ,बाल्मीकि रामायण, पुराण जैसे कालजई ग्रंथों के प्रकाशन करता है. गीताप्रेस इसके अलावा मासिक पत्रिका कल्याण का भी प्रकाशन करता है. गीता प्रेस में छपने वाली कल्याण की अब तक 17 करोड़ प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं.
सन 1921 में कोलकाता में गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना सेठ जयदयाल गोयनका ने की थी. गीता का प्रकाशन उन्होंने इसी ट्रस्ट के माध्यम से शुरू किया था. शुद्धतम गीता के लिए प्रेस को कई बार संशोधन करना पड़ा था.इसी दौरान छापाखाना यानी प्रेस के मालिक ने जयदयाल गोयनका से कहा कि इतनी शुद्ध गीता प्रकाशित करवानी है तो अपना प्रेस लगवा लीजिए. जिसके बाद से जयदयाल गोयनका ने इस बात को महावीर प्रसाद पोद्दार और घनश्याम दास जालान से बताई. जिसके बाद 1923 में गोरखपुर के उर्दू बाजार में किराए की एक कमरे के अंदर गीता का प्रकाशन शुरू हुआ.आज गोरखपुर का गीता प्रेस विशाल रूप ले चुका है. गीता प्रेस 2 लाख वर्ग मीटर में फैला हुआ है.भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 29 अप्रैल 1955 को गीता प्रेस भवन के मुख्य द्वार पर लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन किया था.
रिपोर्ट –कुमार प्रदीप,गोरखपुर