धनबाद, मनोज रवानी : सरकार की ओर से जिले की स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर भले ही सालाना 450 करोड़ से अधिक रुपये खर्च किये जा रहे हैं, लेकिन यहां की व्यवस्था और खराब हो गयी है. इसका खुलासा 18 जनवरी से शुरू अर्धवार्षिक परीक्षा में हो गया. कक्षा एक से सातवीं की चल रही परीक्षा के दौरान कहीं बेंच-डेस्क नहीं होने के कारण बच्चे जमीन पर बैठ परीक्षा देते नजर आये, तो कहीं प्रश्नपत्र ही कम पड़ गया. सनद रहे स्कूली शिक्षा के बल ही भविष्य का निर्माण होता है. इसलिए सरकार की ओर से पूरी व्यवस्था लगातार की जा रही है कि संसाधन के साथ-साथ पढ़ाई में भी झारखंड की स्कूली व्यवस्था अव्वल हो, पर हालात बद से बदतर हो गये हैं.
जिले में स्कूली शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए बाबुओं की एक बड़ी टीम है. ये लगातार बैठक, समीक्षा और निर्देश में लगे रहते हैं, पर इस परीक्षा ने बता दिया कि रिजल्ट जीरो है. बेंच-डेस्क की कमी और अन्य दिक्कतों की बातें कभी खुल कर नहीं आती, सब मैनेज की स्थिति में चल रही स्कूली शिक्षा व्यवस्था ने सब बेहाल कर दिया है.
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) ने जिले में शिक्षा के स्तर को उजागर कर दिया है. रिपोर्ट में ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में छठी से आठवीं कक्षा के 47.6 प्रतिशत बच्चे मामूली भाग देना नहीं जानते हैं, जबकि छठी से आठवीं के 28.2 प्रतिशत बच्चे दूसरी कक्षा के पाठ्य पुस्तकों पढ़ नहीं पाते हैं. जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले छह से 14 वर्ष के 81.4 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं..
दूसरे दिन भी परीक्षा में गड़बड़ी बनी रही. बेंच-डेस्क की कमी से बच्चे जमीन पर बैठ कर परीक्षा देते रहे, तो कहीं प्रश्नपत्र कम पड़ने से उसकी फोटो कॉपी कराकर परीक्षा ली गयी. उत्क्रमित उच्च विद्यालय, बिराजपुर में एक छोटे से कमरे में 36 बच्चों ने जमीन पर बैठ परीक्षा दी. परीक्षा में कुल 197 बच्चों में 172 ने ही भाग लिया, बावजूद इसके प्रश्न पत्र कम पड़ गया. प्रधानाध्यापक राकेश कुमार ने बताया कि बेंच व डेस्क की कमी के कारण बच्चों को जमीन पर बैठाना पड़ा. उत्क्रमित उच्च विद्यालय, फूलवार में प्रश्नपत्र कम पड़ गये. इस वजह से जेरॉक्स करवा कर परीक्षा ली गयी.
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कमरों की कमी के कारण स्कूल परिसर के अंदर जमीन पर बैठ बच्चों ने परीक्षा दी. उत्क्रमित मध्य विद्यालय मुराइडीह बस्ती तथा मुराइडीह कालोनी स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय बरमसिया में प्रश्नपत्र की कमी से परीक्षा विलंब से शुरू हुई. प्रभारी प्रधानाचार्य संजू कुमारी ने बताया कि प्रश्नपत्र की कमी के कारण काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. बालिका मध्य विद्यालय, करकेंद में एक बेंच पर 3 से 4 छात्रों को बैठाने के बावजूद कई ने जमीन पर दरी बिछाकर परीक्षा दी है. विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक पंकज कुमार देव ने कहा कि रूम के कमी के कारण ये स्थिति उत्पन्न हुई है.
तोपचांची प्रखंड के मध्य विद्यालय कांडेडीह में दूसरी पाली में विज्ञान की परीक्षा थी. क्लास में शिक्षक नहीं थे. कुछ बच्चे अपने प्रश्न उत्तर पेपर को ले कर विद्यालय प्रांगण में घूम रहे थे. विद्यालय के कमरे में रोशनी काफी कम थी. शिक्षक के नहीं रहने सेर बच्चे किताब खोल कर एक-दूसरे से पूछ कर जवाब लिखने में मशगूल थे. वहीं प्राथमिक विद्यालय रंगरीटांड़, आदिवासी टोला सुकूडीह, भेलवाटांड़, खरियो, बिच्छाकांटा, लक्ष्मीपुर, ढ़ांगी, महुआटांड़, रघुनाथपुर, राजाबांध के विद्यालयों में बच्चे दरी पर बैठ कर एक दूसरे से पूछ कर जवाब लिख रहे थे.
इस संबंध में बीइइओ सहदेव महतो ने बताया कि शिक्षक नहीं थे तो कारवाई होगी. निरसा प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय जोगीतोपा में बच्चे किताब देखकर परीक्षा देते हुए नजर आये. पतलाबाड़ी प्राथमिक विद्यालय में 10:35 बजे कुछ छात्र किताब खोलकर प्रश्न का उत्तर देते हुए नजर आए. एक बेंच पर चार बच्चे एक साथ बैठकर परीक्षा दे रहे थे. उत्क्रमित मध्य विद्यालय कुहूका में 10.30 बजे छात्र-छात्राएं जमीन पर बैठकर परीक्षा देते हुए नजर आये. वर्ग छठी का दो एवं वर्ग सप्तम का एक प्रश्न पत्र कम पड़ गया. उत्क्रमित मध्य विद्यालय बैजना (निरसा) के बच्चे जमीन पर बैठकर अंधेरा में ही परीक्षा देते हुए नजर आए. बीजीएस मध्य विद्यालय, लोयाबाद में विज्ञान के प्रश्न पत्र घट गये.
परीक्षा के दौरान बच्चों को जमीन पर बैठना पड़ा. इससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या पूरे साल बच्चे स्कूल नहीं आते. अगर आते हैं तो क्या उनके बैठने की क्या होती है व्यवस्था. क्या जमीन पर बैठने को लेकर परिजन विरोध नहीं करते. इन सवालों को लेकर यह आशंका है कि पूरे साल सभी बच्चे स्कूल नहीं आते, वरना जगह व बेंच-डेस्क को लेकर हंगामा जरूर होता. असर की रिपोर्ट भी इस बात को बल देती है कि बच्चे नहीं आते क्योंकि रिपोर्ट में यह माना गया है कि बच्चे ट्यूशन ज्यादा पढ़ रहे और यह तभी संभव है जब स्कूल में पढ़ाई नहीं हो.