एक अजूबे की तरह लगता Green City of the World Hyderabad
Green City of the World Hyderabad: दुनिया का सबसे बड़ा फिल्मी शहर, ‘ग्रीन सिटी ऑफ वर्ल्ड हैदराबाद’ एक अजूबे की तरह लगता है. इस फिल्मी शहर में योजना बनाकर सब कुछ रचा गया है.
संतोष उत्सुक
टिप्पणीकार
जाने-माने फिल्म निर्माता-निर्देशक, मीडिया हस्ती, पद्म विभूषण रामोजी राव द्वारा बसाया गया दुनिया का सबसे बड़ा फिल्मी शहर, ‘ग्रीन सिटी ऑफ वर्ल्ड हैदराबाद’ एक अजूबे की तरह लगता है. इस फिल्मी शहर में योजना बनाकर सब कुछ रचा गया है. यहां घूमते हुए मन और शरीर कहता है, वाह! क्या जगह है यार.
फिल्मी शहर में एक दिन
पिछले दिनों आपने तहजीब, आकर्षक चट्टानों और मोतियों के शहर हैदराबाद में समय बिताया था, उसे जाना-समझा था. चलिए, आज फिल्मों की तरफ चलते हैं. यूं तो फिल्में बनाने के लिए मुंबई मशहूर है, परंतु असली फिल्मगढ़, ‘ग्रीन सिटी ऑफ वर्ल्ड हैदराबाद’ के पड़ोस में बसायी गयी फिल्म सिटी ही है. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स के अनुसार, यह दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म सिटी है. यहां कई हजार फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है और दर्जनों फिल्मों की शूटिंग होती रहती है.
हमारे हैदराबाद वासी साढू साहब ने गाड़ी प्रथम प्रवेश द्वार पर पार्क की. अगले प्रवेश द्वार तक पहुंचने के लिए फिल्म सिटी की बसें हैं. मुख्य फिल्म सिटी घुमाने के लिए शोख लाल रंग की खुली, हवादार बसें गाइड सहित तैयार मिलती हैं. पर्यटकों की भीड़. सबको जल्दी है. पैदल भाग रहे हैं. हम भी पहुंच गये. सामने मंचनुमा जगह पर महिला कलाकारों द्वारा, ‘सलाम-ए-इश्क मेरी जान…’ गीत पर नृत्य चल रहा है. पृष्ठभूमि में आकर्षक रंगों में बनी संरचनाएं लुभाती हैं. पुरुष नर्तकों ने आकर, ‘ईना मीना डीका…’ पर नृत्य कर सबका स्वागत किया.
यहां हरियाली असली और माहौल फिल्मी है. दूसरी तरफ शादी की शूटिंग चल रही है. इस समय हम पैदल एक कॉरिडोर से गुजर रहे हैं. कलात्मक मूर्तियां, सुंदर फ्रेम में यहां शूट हुई फिल्मों की तस्वीरें हैं. कुछ देर बाद एक पौराणिक दरबार के सामने हैं, सिंहासन, राजा और दरबारी हैं. बाहर निकलो तो सामने टिमापुर रेलवे स्टेशन है, यहां लगा नामपट्ट खाली है, जहां फिल्म के हिसाब से नाम चिपका दिया जाता है. फिर बस में बैठते हैं, गाइड हमें हवाई जहाज के सेट के पास ले जाता है. आज यहां शूटिंग नहीं, तभी पर्यटक फोटो खिंचवा रहे हैं. पास में ही एक ऐतिहासिक इमारत में जाकर लगता है जैसे मुगल काल में पहुंच गये. जयपुर की इमारतों का प्रभाव भी है. टिकाऊ और सुंदर पत्थरों से तराशकर दिलकश स्टैचू बनाये गये हैं. इस फिल्मी शहर में योजना बनाकर सब कुछ रचा गया है. मोर, हाथी, घोड़े, झरोखे, स्टैचू, फव्वारे, वृक्ष, पौधे, फूल, सीढ़ियों पर बहता पानी, लुभावनी मूर्तियां, तितलियों से भरी दीवारें, पत्थर तराश कर उकेरे गये प्रसिद्ध चेहरे और स्तंभ, बुद्ध की अनेक मूर्तियां, जिन्हें देखकर मन और शरीर कहता है, वाह! क्या जगह है यार. खूब फोटो खींचते हैं. कई पर्यटकों का अभिनेता जाग उठता है. खाने के लिए अलग-अलग पसंद का काफी कुछ है. पेट भरो और घूमते रहो.
चहकते पर्यटक एक गैलरी में बैठे हैं. सामने पुरानी फिल्मों जैसा सेट लगा है, होटल, सैलून, रेस्तरां और अस्तबल व घोड़े. शॉट शुरू, फाइटिंग, ढिशुम-ढिशुम, गोलियां. कुछ ही मिनट में सीन पूरा हो जाता है. कोई रीटेक नहीं होता, दर्शक तालियां बजाते हैं. अगला सेट रहस्यात्मक फिल्म के लिए है. दूसरा सेट मोहल्लानुमा है, घर, बाजार, दुकानें. यह जगह कई फिल्मों में देखी है. मिनी थियेटर में हॉरर फिल्म दिखायी गयी. कुछ ही लम्हों में पांवों में कुछ लिपटता, डराता-सा महसूस हुआ और लगा हम उस हॉरर फिल्म का हिस्सा हैं. सीन कैसे बनाया जाता है, इसका अनुभव एक सीन शूट कर बताया गया. सामने शोले की बसंती का तांगा है, पर पहिये नहीं, घोड़े की लगाम है, पर घोड़ा नहीं. एक बच्ची बसंती की भूमिका करने लगती है. प्रोसेसिंग के बाद दिखता है कि बसंती अपना तांगा दौड़ा रही है, पीछे गब्बर सिंह के घोड़े दौड़ रहे हैं. सीन बेहद दिलचस्प, रोमांचक, मजेदार व प्रभावशाली रहा. पांच सौ से अधिक स्थायी सेट वाले विहंगम स्टूडियो में विंटेज कारें भी हैं. फ्रांस का एफिल टावर और अमेरिका का स्टेचू ऑफ लिबर्टी भी. बच्चों ने खूब मजा लिया, उनके लिए मनोरंजक गेम्स के अलावा काफी कुछ जो था यहां.
जाने-माने फिल्म निर्माता, निर्देशक, मीडिया हस्ती, पद्म विभूषण रामोजी राव ने यह फिल्मी शहर बसाया था. उनकी सोच के फलस्वरूप फिल्म बनाने की सभी प्री प्रोडक्शन, प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन से जुड़ी अधिकांश सुविधाएं यहां हैं. स्क्रिप्ट और पैसा लेकर आइए और फिल्म बनाकर ले जाइए. फिल्में सभी को आकर्षित करती हैं. अब फिल्म के साथ-साथ पर्यटन का लुत्फ मिलता हो तो पर्यटक तो खिंचे चले आयेंगे ही. एक दिन के फिल्मी पर्यटन में जितना देखा, न भुलाने वाला अनुभव रहा. अलग सा… एकदम फिल्मी आनंद.
कब जाएं
जब जी चाहे जाएं. हैदराबाद का मौसम गर्म रहता है, पर अक्तूबर से मार्च तक के सौम्य मौसम में जाना ज्यादा बेहतर होगा.
कैसे जाएं
जैसे चाहें, वैसे जा सकते हैं. हैदराबाद सभी तरह के परिवहन साधनों से जुड़ा है. ठहरने के लिए प्रत्येक जेब के हिसाब से आरामगाह उपलब्ध है.