Happy Gudi Padwa 2023: हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी आज से हो चुकी है. आज चैत्र नवरात्रि के साथ-साथ गुड़ी पड़वा का त्योहार भी बेहद ही धूम-धाम से मनाया जा रहा है. मान्यता है कि यदि इस दिन कोई व्यक्ति अपने घर के बाहर आम के पत्तों का तोरण लगाए तो बेहद ही शुभ होता है. वहीं इस दिन मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा की जाती है. इससे अलग कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन खाली पेट पूरन पोली का सेवन करना चाहिए ऐसा करने से चर्म रोग की समस्या दूर हो सकती है.
मराठी शक संवत 1945 प्रारंभ
प्रतिपदा तिथि 21 मार्च 2023 से प्रारंभ
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 22 मार्च 2023 को रात्रि 08 बजकर 20 मिनट पर
गुड़ी पड़वा के दिन पताका लगाना काफी शुभ माना जाता है. गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका. पताका को जीत का प्रतीक माना जाता है. इसलिए इस दिन पूजा के समय पताका लगाना शुभ होता है. गुड़ी पड़वा के दिन पांच हाथ ऊंचे झड़ में सवा दो हाथ की लाल रंग की ध्वजा ठीक ढंग से बांध दें और घर की दक्षिण-पूर्व दिशा यानी अग्नि कोण में लगा दें. ध्वज लगाने से घर में सुख-समृद्धि के साथ ग्रहों पर शुभ प्रभाव पड़ेगा, साथ ही वास्तु दोष से छुटकारा मिलेगा.
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दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा का त्यौहार काफी लोकप्रिय है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक सतयुग में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन था. जब भगवान श्री राम को पता चला की लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है तो उनकी तलाश करते हुए जब वे दक्षिण भारत पहुंचे तो यहां उनकी उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई. सुग्रीव ने श्रीराम को बालि के कुशासन से अवगत करवाते हुए उनकी सहायता करने में अपनी असमर्थता जाहिर की. इसके बाद भगवान श्री राम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया. मान्यता है कि वह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का था. इसी कारण इस दिन गुड़ी यानि विजय पताका फहराई जाती है.
गुड़ी एक झंडा है जो श्री राम की रावण पर जीत की याद दिलाता है. यह विजय चिन्ह एक लकड़ी की छड़ी, एक कलश, अप्रयुक्त कपड़े का एक टुकड़ा या एक साड़ी, एक मिश्री की माला (साखर गाठी), और नीम के पत्तों से बना होता है. पड़वा पर लोग इसे अपने घरों के बाहर फहराते हैं.
लकड़ी की छड़ी के ऊपर कपड लगाया जाता है. नीम के पत्तों को साखर गठी (चीनी मिश्री की माला) से बांधा जाता है. कुछ आम के पत्ते और एक फूल की माला भी डाली जाती है. फिर लकड़ी के डंडे के ऊपर उल्टा कलश रखा जाता है. उसके बाद, हल्दी और कुमकुम लगाया जाता है, और फिर गुड़ी को पूजा के बाद घर के बाहर फहराया जाता है और सूर्यास्त से पहले फहराया जाता है.