फ़िल्म -गुमराह
निर्देशक -वर्धन केतकर
कलाकार -आदित्य रॉय कपूर, मृणाल ठाकुर, रोनित रॉय, मोहित आनंद, दीपक कालरा और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग -डेढ़
साउथ के हिंदी रिमेक फिल्मों के बीच इस शुक्रवार को बॉक्स ऑफिस पर एक और साउथ फिल्म थडम के हिंदी रिमेक गुमराह ने दस्तक दे दी है. फॉरेनसिक, पुलिसिया जांच- पड़ताल, ट्विस्ट एंड टर्न के मामले में इस मर्डर मिस्ट्री से बेहतर 90 के दशक का पॉपुलर टीवी शो सीआईडी हैं. फिल्म में मर्डर को परफेक्ट मर्डर जबरदस्ती दिखाया जा रहा है, जबकि फिल्म की कहानी में सबकुछ प्रेडिकेटेबल है. इसके साथ ही फिल्म के दूसरे पहलू भी कमजोर हैं, जिससे यह फिल्म पूरी तरह से बोझिल अनुभव करार दी जा सकती है.
फिल्म की शुरुआत ही एक मर्डर से होती है. पुलिस थोड़ी बहुत जांच-पड़ताल करती है और कातिल का चेहरा एक मोबाइल फोन में उन्हें दिख भी जाता है. एसीपी धीरेन यादव (रोनित रॉय) उसे पहचान भी लेते हैं कि यह अर्जुन (आदित्य रॉय कपूर) है. पुलिस उसे पकड़कर ले आती है और उससे इस मर्डर का गुनाह कबूल करवाती ही है कि अर्जुन की हमशक्ल का एक और शख्स (सूरज ) पकड़ा जाता है. अब हम शक्ल से दिखने वाले दोनों लोगों में से खून किसने किया है…यही रहस्य को सुलझाने में कहानी आगे उलझती है और आखिरकार कातिल तक पहुंचती है. इसके साथ ही कहानी के सब प्लॉट्स में ये दोनों लोग हमशक्ल क्यों हैं. इनका अतीत और अर्जुन को एसीपी धीरेन से क्यों दिक्कत है. यह सब प्लॉट्स भी कहानी में जोड़ें गए हैं, लेकिन यह फिल्म में कोई वैल्यू नहीं जोड़ पाए हैं.
यह एक मर्डर मिस्ट्री फिल्म है, लेकिन उस जॉनर में यह इस मामले में अल्हदा फिल्म है कि यहां आपको पहले ही सीन में कातिल का चेहरा दिखा दिया गया है, लेकिन उसके बाद फिल्म का स्क्रीनप्ले जिस तरह से बुना गया है. वह बहुत ही कमजोर है. फिल्म जिन रहस्यों को सुलझाती है, उन्हें देखकर लॉजिक तो दूर की बात है. आपको यह बात महसूस होती है कि अपने कम्फर्ट के हिसाब से राइटर्स ने फिल्म के अलग-अलग सिचुएशन को बस लिख दिया है. कोई भी सबूत आसानी से बनाए और मिटाएं जा रहे हैं. मर्डर करने से पहले कातिल ने कैसे सबकुछ प्लान किया था, जो सबकुछ आसानी से होता चला गया. यह भी फिल्म में नहीं दिखाया गया है, ताकि फिल्म को थोड़ी छूट दी जा सके. फिल्म सिर्फ मिस्ट्री में ही नहीं बल्कि इमोशनल पक्ष में भी कमजोर है. फिल्म का इमोशन आपको कनेक्ट नहीं करता है.
अभिनय की बात करें तो आदित्य रॉय कपूर इस फिल्म में दोहरी भूमिका में हैं. वह एक किरदार को दूसरे से अलग करने के लिए टैटू, प्रिंटेड शर्ट् और अलग संवाद अदाएगी से करने की कोशिश करते नजर आए हैं, लेकिन परदे पर स्क्रीनप्ले की तरह ही उनका अभिनय भी बेदम सा नजर आता है. रोनित रॉय को इस तरह के किरदार में हम पहले भी देख चुके हैं. वह एक बार फिर खुद को दोहराते नजर आए हैं. मृणाल ठाकुर,वेदिका पिंटो, मोहित आनंद का काम औसत है.
फिल्म के दूसरे पहलुओं की बात करें तो एडिटिंग पर थोड़ा काम करने की जरूरत थी खासकर फर्स्ट हाफ में. फिल्म के संवाद स्क्रीनप्ले की तरह ही कमजोर रह गए हैं. जिन्हे सुनकर कई बार हंसी आती है. यह कहना गलत ना होगा, ऐसी जॉनर की कहानियों में अक्सर गीत-संगीत कहानी की रफ़्तार में बाधा ड़ालते हैं और यहां भी यही देखने को मिलता है.
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कुल मिलाकर इस फिल्म के ओटीटी रिलीज पर ही इसे देखने में समझदारी है.