Guru Gobind Singh Jayanti 2021: 22 दिसंबर 1666 को पटना में सिखों के 9वें गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी के घर जन्में एक बच्चे के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि आगे चलकर यही बच्चा एक दिन पूरी दुनिया में अपना नाम रौशन करेगा. ऐसा कारनाम करेगा जिसके सजदे में पूरी दुनिया अपना शीश नवाएगी. कहते है न पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. ऐसा ही हो रहा था गुरू तेग बहादुर के घर. माता पिता ने बड़े प्यार से इस बच्चे का नाम गोविन्द राय रखा. गोविंद का बचपन शरारतों से भरा था, लेकिन जल्द ही बालक की रुची खिलौने से हटकर तलवार, बरछी, कटार पर आ गयी. स्पष्ट था, गोबिंद सिंह में योद्धाओं वाले लक्षण थे.
उस समय पूरे देश में मुगलों का शासन था. दिल्ली की तख्त पर मुगल बादशाह औरंगजेब विराजमान था. हर ओर जबरन धर्म परिवर्तन की हवा चल रही थी. बहुतायात में लोगों के धर्म परिवर्तित कराये जा रहे थे. सिखों के साथ भी यही सलूक किया जा रहा था. इसी कड़ी में गुरु तेगबहादुर को औरंगजेब का बुलावा आया. नन्हें गोबिंद राय ने पिता को मुस्कुराते हुए विदा किया और धर्म के रक्षार्थ शहीद होने को भी कहा.
मुगल शासन ने 1675 में जब तेगबहादुर की निर्मम हत्या कर दी, उस समय गोविन्द राय की उम्र महज 12 साल की थी. उसी उम्र में गोबिंद राय को सिखों का दसवां गुरु नामित किया गया. अब उनका नाम हो गया गुरु गोबिंद सिंह. उन्होंने सिखों को निर्देशित करना शुरू कर दिया. फारसी, अरबी, संस्कृत और पंजाबी भाषा के जानकार गुरु गोबिंद सिंह को साहित्य में काफी रूचि थी. वो खुद भी कविताएं लिखा करते हैं. हर दिन हजारों की संख्या में सिख, बुजुर्ग, महिला, युवा और बच्चे उनको सुनने आया करते थे.
खालसा पंथ की रखी नींव : एक दिन, इसी तरह एक दिन जब सब लोग इकट्ठा हुए, गुरु गोबिंद सिंह ने कुछ ऐसा मांग लिया कि सभा में सन्नाटा छा गया. दरअसल, सभा में मौजूद लोगों से गुरु गोबिंद सिंह ने उनका सिर मांग लिया था. गुरु गोबिंद सिंह ने रौबदार आवाज में कहा, मुझे सिर चाहिए. आखिरकार एक-एक कर पांच लोग उठे और कहा, हमारा सिर प्रस्तुत है. गुरु गोबिंद सिंह पांचों को एक-एक कर अंदर ले गए. वो जैसे ही उन्हें तंबू के अंदर ले जाते कुछ देर बाद वहां से रक्त की धार बह निकलती और भीड़ की बैचेनी भी बढ़ती जाती. पांचों के साथ ऐसा ही हुआ.
और आखिर में गुरु गोबिंद सिंह अकेले तंबू में गए और साथ लौटे तो भीड़ भी आश्चर्यचकित हो गयी. पांचो युवक गुरु गोबिंद सिंह के साथ थे, नए कपड़े पहने, पगड़ी धारण किए हुए. गोबिंद सिंह तो उनकी परीक्षा ले रहे थे. गोबिंद सिंह ने सेवकों से एक कड़ाह में पानी मंगवाया, उसमें थोड़ी शक्कर डाली और तलवार से उसे घोला. उन्होंने ये पांचो युवकों को बारी-बारी से पिलाया. कहा कि अब तुम पंच प्यारे हो. उन्होंने एलान किया कि अब से हर सिख युवक कड़ा, कृपाण, केश, कच्छा और कंघा धारण करेगा. यहीं हुई थी खालसा पंथ की स्थापना. खालसा यानी शुद्ध.
इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह ने सैन्य दल का गठन किया, हथियारों का निर्माण करवाया और युवकों को युद्धकला का भी प्रशिक्षण दिया, क्योंकि उनको लगता था कि केवल संगठन से काम नहीं बनेगा, सैन्य संगठन बनाना होगा ताकि समुदाय और धर्म की रक्षा की जा सके. जीवन के आखिरी दिनों में गुरु गोबिंद सिंह ने मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाई छेड़ दी थी. वो छुपकर रहते और अचानक मुगलों पर हमला बोल देते. उन्होंने, कभी मुगलों के आगे अपना सिर नहीं झुकाया, न अपने धर्म से कोई समझौता किया. आज उनके जन्म दिवस के मौके पर पूरी दुनिया उन्हें कर रही है शत शत नमन…
Posted by: Pritish Sahay