Guru Purnima 2023: ऐसे हुई गुरु पूर्णिमा मनाने की शुरुआत, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

Guru Purnima 2023: इस साल गुरु पूर्णिमा सोमवार 3 जुलाई को है. मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. यही वजह है कि इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी मनाया जाता है.

By Shaurya Punj | July 1, 2023 10:48 AM

Guru Purnima 2023: हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है. इस साल गुरु पूर्णिमा सोमवार 3 जुलाई को है. मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. यही वजह है कि इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी मनाया जाता है.

गुरु पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 02 जुलाई को रात्रि 08 बजकर 21 मिनट पर होगा और पूर्णिमा तिथि का समापन 03 जुलाई को शाम 05 बजकर 08 मिनट पर हो जाएगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, गुरु पूर्णिमा पर्व 03 जुलाई 2023, सोमवार के दिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा.

गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करें

गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पादुका पूजन, गुरु दर्शन करके उन्हें मिठाईयां, नेवैध, वस्त्र, दक्षिणा आदि देकर उनकी आरती कर उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें. तथा गुरु के चरणो में कुछ देर बैठ कर उनकी कृपा प्राप्त करें.

कब और कैसी हुई गुरु पूर्णिमा पर्व की शुरुआत (Guru Purnima 2023 History)

कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाने की शुरुआत महर्षि वेद व्यास जी के 5 शिष्यों द्वारा की गई. हिंदू धर्म में महर्षि वेद व्यास को बह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना गया है. महर्षि वेद व्यास को बाल्यकाल से ही अध्यात्म में गहरी रूचि थी. ईश्वर के ध्यान में लीन होने के लिए वो वन में जाकर तपस्या करना चाहते थे. लेकिन उनके माता-पिता ने इसके लिए उन्हें आज्ञा नहीं दी. तब वेद व्यास जी जिद्द पर अड़ गए. इसके बाद वेद व्यास जी की माता ने उन्हें वन में जाने की अनुमति दे दी. लेकिन माता ने कहा कि, वन में परिवार की याद आए तो तुरंत वापस लौट जाए. इसके बाद पिता भी राजी हो गए. इस तरह माता-पिता की अनुमति के बाद महर्षि वेद व्यास ईश्वर के ध्यान के लिए वन की ओर चले गए और तपस्या शुरू कर दी.

वेद व्यास जी ने संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल की और इसके बाद उन्होंने महाभारत, 18 महापुराण, ब्रह्मसूत्र समेत कई धर्म ग्रंथों की रचना की. साथ ही वेदों का विस्तार भी किया. इसलिए महर्षि वेद व्यास जी को बादरायण के नाम से भी जाना जाता है.

कौन थे महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास

वेदव्यास ऋषि पराशर के पुत्र थे. ये तीनों कालों के ज्ञाता थे. उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से पहले ही जान लिया था कि कलियुग में धर्म को लेकर लोगों की रुचि कम होती चली जाएगी. महर्षि व्यास ने ही वेद को चार भागों में बांट दिया था जिससे हर कोई आसानी से वेदों का अध्ययन करके इनका लाभ उठा सके. व्यास जी ने इन चार वेदों का नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद रखा. वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास ऋषि जी का नाम वेद व्यास प्रसिद्ध हुआ. महर्षि व्यास ने ही महाभारत की रचना भी की थी. ये हमारे आदि-गुरु भी माने जाते हैं. गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी की परंपरा है.

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