Gyanvapi Case: प्रदेश के वाराणसी के ज्ञानवापी मामले से जुड़ी मुस्लिम पक्ष की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में बुधवार को सुनवाई जारी है. इस बीच ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति (GMMC) ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने आवेदन का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सोमवार के आदेश में सुधार की मांग की है.
इसमें मस्जिद के अंदर पूजा के अधिकार की मांग करने वाले हिंदू पक्ष की मांग पर सवाल उठाने वाली समिति की अपील को निस्तारित कर दिया गया था. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने ज्ञानवापी मस्जिद समिति की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सूचित करने को कहा ताकि वह पीठ के सामने पेश हो सकें.
उधर इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने कहा कि निचली अदालत के समक्ष भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) पक्षकार नहीं है. इसके जवाब में हिंदू पक्ष के वकील ने जवाब दिया कि विशेषज्ञ की राय लेने के लिए, विशेषज्ञ को पक्षकार बनना जरूरी नहीं.
हिंदू पक्ष के वकील ने कहा वैज्ञानिक सर्वेक्षण से स्थापित ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा. जबकि, मुस्लिम पक्षकार ने सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर कौन लेगा नुकसान न होने की गारंटी, इससे पहले 1992 अयोध्या में हुए विध्वंस का अनुभव भुलाया नहीं जा सकता. ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश कोर्ट में बड़ी संख्या में अधिवक्ता मौजूद हैं. प्रकरण में आज शाम तक फैसला आने की संभावना है.
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मुस्लिम पक्षकार का आरोप है कि निचली अदालत ने वैज्ञानिक सर्वे का कोई तार्किक कारण अपने आदेश में अंकित नहीं किया है. निचली अदालत ने अपने आदेश में उन परिस्थितियों का उल्लेख भी नहीं किया, जिसमें वैज्ञानिक सर्वे अनिवार्य है. मुस्लिम पक्षकार ने कहा कि काशी विश्वनाथ ट्रस्ट और इंतजामिया कमेटी के बीच कोई विवाद नहीं है तो वादिनी को वाद दाखिल करने का कोई विधिक अधिकार नहीं.
बहस के दौरान मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विष्णु जैन ने बुधवार को कहा कि वाराणसी में जिला जज के समक्ष अर्जी में कहा गया है कि गुंबद के नीचे स्ट्रक्चर है. सत्यता पता करने के लिए एएसआई सर्वे कराया जाए. वहां मंदिर है इसका साक्ष्य साइंटिफिक सर्वे से ही मिलेगा.
कोर्ट ने पूछा कि एएसआई को पार्टी क्यों नहीं बनाया तो जैन ने कहा, ऐसा कोई नियम नहीं है. एएसआई को विशेषज्ञ के तौर पर आदेश दिया गया है. जैसे किसी राइटिंग एक्सपर्ट को राइटिंग की जांच के लिए आदेशित किया जाता है. ठीक उसी प्रकार एएसआई को सर्वे के लिए आदेशित किया गया है. इसके लिए पार्टी बनाना जरूरी नहीं. कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या हाईकोर्ट भी एएसआई के तहत आता है, वहां भी सर्वे कर सकते हैं तो एएसजी आई ने कहा- हां आता है.
याची अंजुमन इंतेजामिया वाराणसी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा कि बिना साक्ष्य ही सर्वे के लिए अर्जी दी गई है. कानून कहता है कि साइंटिफिक सर्वे के आदेश के पूर्व कमीशन भेजा जाता. वह मौके पर जाकर यह स्पष्ट कर सकते हैं कि विवादित स्थल पर साइंटिफिक सर्वे आसानी हो सकता है या नहीं और इसमें क्या दिक्कतें आ सकती हैं.
सहूलियत के लिए क्या कदम उठाए जा सकते है. एक अर्जी दाखिल होती है और इमिडियेट कोर्ट साइनटिफिक सर्वे का आदेश कर दिया जो गलत है. सीपीसी कहती है कि सर्वे कमीशन भेजा जा सकता है. सरकार को भी इस संदर्भ में निर्देश दिया जा सकता है. मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विष्णु जैन ने कहा कि खोदाई अंतिम स्टेज है.
इससे पहले ठीक 9.30 बजे इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर के कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 26 जुलाई की शाम पांच बजे तक परिसर में साइंटिफिक सर्वे संबंधी वाराणसी जिला जज के 22 जुलाई के आदेश पर रोक लगाते हुए याची को इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया था.
इससे पहले जिला जज के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने सोमवार सुबह ज्ञानवापी परिसर की वैज्ञानिक विधि से जांच की, हालांकि कुछ घंटे बाद सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद इसे रोक दिया गया. बताया जा रहा है कि टीम ने साढ़े पांच घंटे तक पश्चिमी, पूर्वी, उत्तरी और दक्षिणी दीवार, व्यास जी का कमरा, नमाज पढ़ने की जगह, खंभों व कमरों की नाप-जोख करने के साथ पूरे परिसर की ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस से पैमाइश की.
इसके साथ ही वहां मौजूद धार्मिक व ऐतिहासिक चिह्नों को देखा. इमारत की नींव के पास से मिट्टी और ईंट-पत्थर के नमूने जुटाए. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने से पहले कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच एएसआई की टीम ने सुबह साढ़े छह बजे परिसर में प्रवेश किया. टीम अपने साथ कई जांच उपकरण भी साथ लाए थे. टीम ने छह समूहों में परिसर के अलग-अलग हिस्सों की जांच की. जीपीएस से संबंधित 12 उपकरण श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के गेस्ट हाउस के चारों तरफ लगाए गए.