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Gyanvapi Case: फिर जी उठेंगे औरंगजेब – अहिल्याबाई होल्कर के किस्से, जानें ASI सर्वे में किन चीजों का पता चलेगा

काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी विवाद में पहला केस 1991 में वाराणसी कोर्ट में दाखिल हुआ था. इसमें ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई थी और केस के कुछ महीने बाद सितंबर 1991 में केंद्र सरकार ने पूजा स्थल का कानून बना दिया. अब विवादित स्थल को छोड़ पूरे परिसर का सर्वे से कई रहस्यों से पर्दा उठ जाएगा.

लखनऊ. श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मामले में वाराणसी की अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए निर्देश दिए.कोर्ट के इस फैसले से सर्वेक्षण में वुज़ू खाना क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाएगा, जिसे पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सील कर दिया गया था जब हिंदूवादियों ने वहां एक ऐसी चीज़ की मौजूदगी की ओर इशारा किया था,जिसे उन्होंने शिवलिंग के रूप में पहचाना था. कोर्ट के इस फैसले से सदियों का दबा छिपा सच सामने आने की उम्मीद है. जानकारों का दावा है कि श्रृंगार गौरी- ज्ञानवापी मामले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर कोर्ट का फैसला टिका है. याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर यह पता लगाए जाए कि अंदर का भाग मंदिर का है या नहीं.

मस्जिद के नाम में एक संस्कृत शब्द  जिसका अर्थ है ज्ञान का कुआं

वाराणसी मे स्थित ज्ञानवापी मस्जिद जिसे कभी कभी आलमगीर मस्जिद भी कहा जाता है, एक विवादित मस्जिद बन गई है.काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी इस मस्जिद के नाम में एक संस्कृत शब्द है इसका अर्थ है ज्ञान का कुआं. 1991 से इस मस्जिद को हटाकर मंदिर बनाने की कानूनी लड़ाई चल रही है लेकिन 2022 में सर्वे होने बाद ये ज्यादा चर्चों में है. ज्ञानवापी परिसर में मस्जिद है और ठीक बगल में काशी विश्वनाथ मंदिर है. हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्ष के अपने- अपने दावा और तर्क हैं. एएसआई और वैज्ञानिक सर्वे से सच सामने आ जाएगा. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से तीनों गुंबद का सर्वे होगा. ज्ञानवापी के व्यासजी के तहखाने की भी जांच और सर्वे एएसआई करेगी. सर्वे के पूरे प्रक्रिया की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराई जाएगी. अदालत में 4 अगस्त तक एएसआई को सर्वे कर रिपोर्ट देने को कहा गया है.

इतिहास में दर्ज है मोहम्मद गोरी से लेकर ओरंगजेब तक का ‘विध्वंस’

ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर दावा किया जाता है कि यह जगह यह देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की है.पुराणों में भी काशी विश्वनाथ का उल्लेख है. किताबों के पन्ने पलटने से पता चलता है कि मोहम्मद गोरी ने विध्वंस किया . इस मंदिर को 1194 दोबारा बनवाया गया. 1447 में जौनपुर के सुल्तान ने मंदिर को तुड़वा दिया. 1585 में अकबर के सेनापति राजा मान सिंह और नवरत्न कहे जाने वाले राजा टोडर मल ने मंदिर को बनवा दिया. दिल्ली की गद्दी पर औरंगजेब बैठा तो उसके शासन काल में 1669 में फिर तोड़ा गया. यहां मस्जिद बनवा दी गई. हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है. मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर उसकी भूमि पर किया गया था.

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रानी अहिल्याबाई होल्कर ने दिया मंदिर को नया रूप

मुगल शासक औरंगजेब ने साल 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वा दिया था. इसके करीब 108 साल बाद 1777 में इंदौर के होल्कर राजघराने की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निमाण करवाने का प्रण लिया. उनकी निगरानी में मंदिर का पुनर्निमाण तीन वर्षों तक चला. अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह को फिर से बनवाया और पूरे विधि विधान से मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी कराई.अहिल्याबाई इंदौर के होल्कर राजघराने के मल्हारराव होल्कर के बेटे खांडेराव होल्कर की पत्नी थीं. 1754 कुम्भेर के युद्ध में खांडेराव की मौत हो गई. 12 साल बाद ससुर मल्हारराव का भी निधन हरे गया. मल्हारराव ने काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निमाण की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए थे. 1777-80 के बीच रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसमें सफल रहीं.

ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन करेगा ऊपरी अदालत में अपील

श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के विशेष वकील राजेश मिश्रा ने कहा, “ज्ञानवापी परिसर के बैरिकेडिंग क्षेत्र के सर्वेक्षण की मांग करने वाले आवेदन को जिला अदालत ने अनुमति दे दी है. यानि मस्जिद के सीलबंद क्षेत्र को छोड़कर सर्वे होगा. मिश्रा ने कहा, अदालत ने संपत्ति को कोई नुकसान पहुंचाए बिना परिसर में जीपीआर,खुदाई आदि का आदेश दिया. अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 4 अगस्त तय की है.ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन के वकील रईस अहमद अंसारी ने कहा कि वे इस आदेश को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे.

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