Gyanvapi Masjid Case: मसाजिद कमेटी पर मुकदमा दर्ज करने की याचिका खारिज, सबूतों से छेड़छाड़ का था आरोप
Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी प्रकरण में परिसर स्थित ढांचे में छेड़छाड़ करने के मामले में जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में दाखिल निगरानी याचिका खारिज हो गई है. बता दें कि इस मामले को पहले ही सीजेएम अदालत में भी खारिज किया जा चुका है.
Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी प्रकरण में परिसर स्थित ढांचे में छेड़छाड़ करने के मामले में जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में दाखिल निगरानी याचिका खारिज हो गई है. बता दें कि इस मामले को पहले ही सीजेएम अदालत में भी खारिज किया जा चुका है. उसके बाद वादी ने जिला जज की अदालत में अर्जी लगाई थी, जिस पर 23 जून को सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने आदेश को सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने वही आदेश आज पहली जुलाई को जारी कर दिया गया.
23 जून को दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने आदेश के लिए पत्रावली को सुरक्षित रख लिया था. यह याचिका विश्व वैदिक सनातन संघ के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह विसेन की तरफ से दाखिल कर स्पेशल सीजेएम के आदेश को चुनौती दी गई थी. शुक्रवार को जारी आदेश में अदालत ने कहा है कि निचली अदालत ने जो आदेश दिया है वह तार्किक व विधि सम्मत है. वादी की ओर से अर्जी के संबंध में कोई ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे विपक्षी पर आरोप साबित हो. लिहाजा, यह अर्जी सुनने योग्य नहीं है. इसे खारिज किया जाता ह
Also Read: Agra University को पिछले एक साल से है स्थाई कुलपति का इंतजार, विश्वविद्यालय के लिए आयी अब ये खबर
वादी की ओर से अधिवक्ता शिवम गौड़, अनुपम द्विवेदी और मान बहादुर सिंह ने जिला जज की अदालत में निगरानी अर्जी दाखिल की थी. दाखिल प्रार्थना पत्र के माध्यम से बताया था कि ज्ञानवापी ढांचा को हटाने के लिए मुगल बादशाहों ने तोड़ने की कोशिश की. बाद में शेष बचे हिस्से पर पेंटिंग व चूनाकली कर मंदिर की पहचान को मिटाना का प्रयास किया गया. जो उपासनास्थल अधिनियम-1991 की धारा-3 का उल्लंघन है. वादी ने ये भी कहा था कि ज्ञानवापी परिसर स्थित मस्जिद की देखरेख का जिम्मा अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी करती है. ऐसे में कमेटी के पदाधिकारियों के विरुद्ध उपासनास्थल अधिनियम-1991 की धारा-3 (6) के तहत कार्रवाई की जाए.
आवेदन में ये भी बताया गया था कि स्पेशल सीजेएम की अदालत ने प्रार्थना पत्र को गंभीरता को नहीं लिया औऱ एक ही दिन की सुनवाई के बाद 30 मई को उसे खारिज कर दिया. लिहाजा निचली अदालत के आदेश को खारिज कर मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया जाए.