अलीगढ़ में एक ऐसा अनोखा मंदिर जहां गिलहरी के रूप में भक्त करते हैं हनुमान जी का दर्शन, जानें रहस्य
Hanuman Jayanti 2023: देशभर में हनुमान जी के बहुत मंदिर है. जिनकी अपनी-अपनी मान्यताएं हैं. वहीं हनुमान जी के विभिन्न रूपों की भी पूजा होती है. लेकिन, अलीगढ़ में हनुमान जी को गिलहरी के रूप में मंदिर स्थापित है और यहां आस्था के साथ पूजा की जाती है.
अलीगढ़. अलीगढ़ में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां गिलहरी के रूप में हनुमान जी की पूजा होती है. हनुमान जन्मोत्सव को लेकर यहां कई दिनों तक कार्यक्रम होते हैं. वहीं भक्तों का कहना है कि यहां सच्चे मन से पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है. यह मंदिर थाना गांधी पार्क इलाके के अचल सरोवर पर है. ऐसी मान्यता है कि मंदिर करीब 5000 साल पुराना है. रामचरितमानस में भी हनुमान जी के गिलहरी रूप का वर्णन है. अचल सरोवर के करीब 50 से अधिक मंदिर है. लेकिन, गिलहराज मंदिर की मान्यता सबसे ज्यादा है. यहां हर मंगलवार को दूरदराज से चलकर लोग हनुमान जी के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. लोगों का कहना है कि यहां 41 दिन दर्शन करने से हर मनोकामना पूरी होती है. लोगों की मान्यता है कि इसके करीब निर्मित सरोवर में स्नान करने से कुष्ठ जैसे असाध्य रोग दूर होते है.
जानें मंदिर की मान्यताएं
देशभर में हनुमान जी के बहुत मंदिर है. जिनकी अपनी-अपनी मान्यताएं हैं. वहीं हनुमान जी के विभिन्न रूपों की भी पूजा होती है. लेकिन, अलीगढ़ में हनुमान जी को गिलहरी के रूप में मंदिर स्थापित है और यहां आस्था के साथ पूजा की जाती है. इस मंदिर के महंत कौशल नाथ बताते हैं कि मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है. सबसे पहले यहां महेंद्र नाथ योगी ने प्रतीक की खोज की थी. जो एक सिद्ध योगी थे. कहा जाता है कि हनुमान जी इन्हें सपने में आए थे. नाथ संप्रदाय के महंत ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. महेंद्र योगी को हनुमान जी सपने में आए थे और कहा कि अचल ताल पर मैं निवास करता हूं. वहां मेरी पूजा करो. जब महंत ने अपने शिष्य को अचल सरोवर पर खोज करने के लिए भेजा, तो उन्हें वहां मिट्टी के ढेर पर बहुत सारी गिलहरी मिली.
जानें मंदिर का इतिहास
गिलहरी को हटाकर जब फावड़े से खोदाई की, तो वहां जमीन के नीचे मूर्ति निकली. यह मूर्ति गिलहरी के रूप में हनुमान जी की थी. बाद में यहां पर मंदिर की स्थापना की गई. महाभारत काल में श्री कृष्ण के भाई दाऊजी ने अचल ताल पर पूजा किया था. अचल ताल के मंदिर में गिलहरी रूप पर हनुमान जी की एक आंख दिखाई देती है. मंगलवार को भारी संख्या में यहां श्रद्धालु पहुंचते हैं और सच्चे मन से गिलहराज मंदिर में पूजा करते हैं. यहां भक्तों के सभी दुखों का नाश होता है. साथ ही जीवन में सुखमय और खुशहाली आती है. हनुमान जयंती पर यहां देश-विदेश से भक्त दर्शन के लिए आते हैं. मान्यता है कि यहां भगवान गिलहराज को लड्डुओं का भोग लगाने से भक्तों के हर संकट दूर हो जाते हैं.
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5000 साल पुराना है यह मंदिर
गिलहराज मंदिर के प्रबंध महंत योगी कौशल नाथ महाराज ने बताया कि मंदिर लगभग 5000 साल पुराना है. इस मंदिर की खोज महंत महेंद्र योगी महाराज ने की थी. जो नाथ संप्रदाय के परम सिद्ध योगी थे. विश्व भर में गिलहरी के रूप में हनुमान जी का मंदिर यही देखने को मिलता हैं. मंदिर में विराजमान हनुमानजी के गिलहरी स्वरूप में जो आकृति है. उसके एक हाथ में लड्डू व चरणों में नवग्रह दबे हुए हैं. इसलिए यहां चोला चढ़ाने से नवग्रह से मुक्ति मिलती है. यहां सुबह और शाम गिलहराज जी का श्रृंगार और महाआरती होती है. महंत कौशल नाथ बताते हैं कि हनुमान जी के गिलहरी स्वरूप उस समय की याद दिलाता है. जब वानरों की ओर से राम सेतु का निर्माण कार्य चल रहा था. तब भगवान हनुमान बड़े-बड़े पत्थरों से पुल बना रहे थे.
हनुमान जन्मोत्सव पर होती हैं भक्तों की भीड़
श्रीराम ने कहा कि हनुमान स्वयं पुल बना देंगे तो अन्य देवता जो वानर रूप में मौजूद थे. वह इस सेवा से वंचित रह जाएंगे. इसलिए आप विश्राम कर लें. प्रभु राम की आज्ञा से हनुमान वहां से चले गए, लेकिन राम कार्य में हनुमान कतई विश्राम नहीं कर सकते थे. इसलिए हनुमान जी ने गिलहरी का रूप रखकर बालू पर लौट लगाकर बालू के कण छोड़ पुल निर्माण का कार्य किया. लेकिन, प्रभु राम ने उन्हें पहचान लिया. उनके गिलहरी स्वरूप को प्यार से अपने हाथ पर बैठाकर दुलार किया. आज भी गिलहरी महाराज के शरीर पर जो तीन लकीरे हैं. वह प्रभु राम की उंगलियों के निशान के रूप में दिखाई देती हैं. हनुमान जन्मोत्सव पर यहां दर्शन करने वालों की काफी भीड़ होती है.
इनपुट-आलोक, अलीगढ़