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Happy Janmashtami 2021: झारखंड में 1280 किलो सोने की है कृष्ण की दुर्लभ मूर्ति, ऐसे मन रही जन्माष्टमी

Jharkhand News: गढ़वा के श्रीबंशीधर मंदिर में कोरोना महामारी के कारण सादगी से जन्माष्टमी मनायी जा रही है. मंदिर में बाहरी श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक है. यहां भगवान कृष्ण की मूर्ति है, जो 1280 किलो सोने से बनी है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 30, 2021 2:05 PM
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Happy Janmashtami 2021, गढ़वा न्यूज (जीतेंद्र सिंह): झारखंड के पश्चिमी छोर पर यूपी की सीमा से सटे गढ़वा जिले के श्री बंशीधर नगर (नगर ऊंटारी) में श्री बंशीधर भगवान स्वयं विराजमान हैं. श्री बंशीधर नगर में हर वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मथुरा एवं वृंदावन की तरह मनाई जाती है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण यहां सादगी से जन्माष्टमी मनायी जा रही है. मंदिर में बाहरी श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक है. सिर्फ पुरोहित द्वारा विधिवत पूजा की जा रही है. यहां देश-दुनिया की सबसे महंगी भगवान कृष्ण की मूर्ति है, जो 1280 किलो सोने से बनी है. इसकी कीमत करीब 2500 करोड़ रुपए है.

श्री बंशीधर जी के आगमन के बाद उनकी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिर का निर्माण किया गया है. भगवान के स्वयं आकर विराजमान होने के कारण श्री बंशीधर नगर को योगेश्वर कृष्ण की भूमि और इस धरती को द्वितीय मथुरा और वृंदावन माना जाता है. श्री बंशीधर मंदिर की स्थापना संवत् 1885 में हुई है. श्री बंशीधर मंदिर में स्थित योगेश्वर श्रीकृष्ण की वंशीवादन करती प्रतिमा की ख्याति देश में ही नहीं विदेशों में भी है. इसलिए यह स्थान श्री बंशीधर धाम के नाम से भी प्रसिद्ध है. यहां कण कण में राधा व कृष्ण विद्यमान हैं. श्री बंशीधर जी के आगमन के बारे में इतिहासकारों के अनुसार उस दौरान राजा स्व भवानी सिंह देव की विधवा शिवमानी कुंवर राजकाज का संचालन कर रही थीं. रानी शिवमानी कुंवर धर्मपरायण एवं भगवत भक्ति में लीन रहती थीं.

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एक बार जन्माष्टमी व्रत की रानी साहिबा को 14 अगस्त 1827 की मध्य रात्रि में स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन हुआ. स्वप्न में श्री कृष्ण ने रानी से वर मांगने को कहा. रानी ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि प्रभु आपकी सदैव कृपा हम पर बनी रहे. तब भगवान कृष्ण ने रानी से कनहर नदी के किनारे महुअरिया के निकट शिव पहाड़ी अपनी प्रतिमा के गड़े होने की जानकारी दी और उन्हें अपने राज्य में लाने को कहा. भगवत कृपा जान रानी ने शिवपहाड़ी जाकर विधिवत पूजा अर्चना के बाद खुदाई करायी तो श्री बंशीधर जी की अद्वितीय प्रतिमा मिली. जिसे हाथियों पर बैठाकर श्री बंशीधर नगर लाया गया. गढ़ के मुख्य द्वार पर अंतिम हाथी बैठ गया. लाख प्रयत्न के बावजूद हाथी नहीं उठने पर रानी ने राजपुरोहितों से राय मशविरा कर वहीं पर मंदिर का निर्माण कराया तथा वाराणसी से राधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा मंगाकर दिनांक 21 जनवरी 1828 स्थापित करायी. श्री बंशीधर जी प्रतिमा कला के दृष्टिकोण से अति सुंदर एवं अद्वितीय है. बिना किसी रसायन के प्रयोग या अन्य पॉलिस के प्रतिमा की चमक पूर्ववत है. भगवान श्री कृष्ण शेषनाग के उपर कमल पीड़िका पर बंशीवादन नृत्य करते विराजमान हैं. भूगर्भ में गड़े होने के कारण शेषनाग दृष्टिगोचर नहीं होते हैं.

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श्री बंशीधर मंदिर के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों स्वरूप में हैं. मंदिर में स्थित प्रतिमा को गौर से देखने पर यहां भगवान के त्रिदेव के स्वरूप में विद्यमान रहने का अहसास होता है. यहां स्थित श्री बंशीधरजी जटाधारी के रूप में दिखाई देते है जबकि शास्त्रों में श्रीकृष्ण के खुले लट और घुंघराले बाल का वर्णन है. इस लिहाज से मान्यता है कि श्रीकृष्ण जटाधारी अर्थात देवाधिदेव महादेव के रूप में विराजमान हैं. श्रीकृष्ण के शेषशैय्या पर होने का वर्णन शास्त्रों में मिलता है लेकिन यहां श्री बंशीधर जी शेषनाग के उपर कमलपुष्प पर विराजमान हैं, जबकि कमलपुष्प ब्रह्मा का आसन है. इस लिहाज से मान्यता है कि कमल पुष्पासीन श्री कृष्ण कमलासन ब्रह्मा के रूप में विराजमान हैं. भगवान श्रीकृष्ण स्वयं लक्ष्मीनाथ विष्णु के अवतार हैं. इसलिये विष्णु के स्वरूप में विराजमान हैं. त्रिदेव के रूप में विराजमान भगवान सबकी मनोकामना पूरी करते हैं.

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चुनार-चोपन- गढ़वा रोड रेलखंड और एनएच 75 किनारे पर बसे श्री बंशीधर नगर (नगर ऊंटारी) शहर के बीच में स्थित श्री बंशीधर मंदिर में दर्शन के लिये सालोंभर देश ही नहीं विदेशी श्रद्धालुओं का भी तांता लगा रहता है, जो भी श्रद्धालु एक बार श्री बंशीधर जी की मोहिनी मूरत का दर्शन करता है. वह उनके प्रति मोहित हो जाता है. श्रीकृष्ण जन्मोत्सव बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है.

Posted By : Guru Swarup Mishra

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