Happy Sawan Shivratri 2023 Wishes Images, Quotes, Messages, Status, Shivratri ki hardik shubhkamnaye: सावन का महीना शिवभक्तों के लिए महादेव की कृपा पाने के लिए सबसे पावन समय होता है। इस महीने में आने वाली शिवरात्रि को सावन शिवरात्रि कहा जाता है. इस साल सावन शिवरात्रि कल यानी 15 जुलाई को है. इस शुभ दिन की खुशियों को दोगुनी करने के लिए अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को यहां से भेजें सावन शिवरात्रि 2023 की हार्दिक शुभकामनाएं.
भक्ति में है शक्ति
शक्ति में संसार है
त्रिलोक में है जिसकी चर्चा
उन शिव जी का आज त्यौहार है
सावन शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं!
Happy Sawan Shivratri 2023
विश्व का कण कण शिव मय हो
अब हर शक्ति का अवतार उठे
जल,थल और अंबर से फिर
बम बम भोले की जय जयकार उठे
Happy Sawan Shivratri 2023
भूखे को अन्न देते
देते प्यासे को पानी
ऐसे है मेरे भोले बाबा औघढ़दानी
Happy Sawan Shivratri 2023
एक पुष्प
एक बेलपत्र
एक लोटा जल की धार
कर दे सबका उद्धार।
Happy Sawan Shivratri 2023
शिव करते सबका उद्धार,
उनकी कृपा आप पर सदा बनी रहे और
भोले शंकर आपके जीवन में खुशियां ही खुशियां भर दे
Happy Sawan Shivratri 2023
भोले की महिमा है अपरम्पार
करते हैं अपने भक्तों का उद्धार
शिव की दया आप पर बनी रहे
और आपके जीवन में खुशियां भरी रहें.
Happy Sawan Shivratri 2023
पी के भांग जमा लो रंग
जिन्दगी बीते खुशियों के संग
लेकर नाम शिव भोले का
दिल में भर लो शिवरात्रि की उमंग
Happy Sawan Shivratri 2023
है हाथ में डमरू है
और काल नाग है साथ
है जिसकी लीला अपरम्पार
वो है भोले नाथ
Happy Sawan Shivratri 2023
शिव की बनी रहे आप पर छाया
पलट दे जो आपकी किस्मत की काया
मिले आपको वो सब अपनी जिंदगी में
जो कभी किसी ने भी न पाया
Happy Sawan Shivratri 2023
गवान शिव आपके जीवन में शांति और समृद्धि के अग्रदूत हों
Happy Sawan Shivratri 2023
ॐ में ही आस्था, ॐ में ही विश्वास,
ॐ में ही सारा संसार, ॐ से होती है अच्छे दिन की शुरुआत,
बोलो ॐ नम: शिवाय।
Happy Sawan Shivratri 2023
सावन शिवरात्रि 2023 मुहूर्त (Sawan Shivratri 2023 Muhurat)
सावन की पहली मासिक शिवरात्रि का व्रत 15 जुलाई 2023 को है. इस दिन सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 15 जुलाई को रात 08.32 मिनट से 16 जुलाई 2023 को रात 10.08 मिनट तक रहेगी. शिवरात्रि में शिव पूजा निशिता काल मुहूर्त में की जाती है.
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाए। मुण्डमाल तन छार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघंबर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
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