16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

हरेकृष्ण कोनर न सिर्फ ब्रिटिश हुकूमत से लड़े, बल्कि भूमि सुधार में भी निभायी अहम भूमिका

Azadi Ka Amrit Mahotsav: अंडमान जेल में हरेकृष्ण कोनर ने 1933 में 12 मई को पहली बार अनशन किया. अनशन के दौरान कई स्वाधीनता सेनानियों की मौत हो गयी. मृतकों के शवों को समुद्र में फेंक दिया जाता था. 1933 में 26 दिनों के बाद यह अनशन समाप्त हुआ था.

Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी की लड़ाई में कई क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत की यातनाएं झेली थी. इनमें से कई ऐसे क्रांतिकारी थे, जो कालांतर में अपने सामाजिक कार्यों के लिए भी जाने गये. इनमें से ही एक थे हरेकृष्ण कोनर. न केवल वह एक स्वाधीनता सेनानी थे, बल्कि बंगाल में भूमि सुधार आंदोलन का उन्हें अगुआ माना जाता है.

नौवीं में पढ़ते समय ही आंदोलन में शामिल हुए

1915 में 5 अगस्त को जन्मे हरेकृष्ण कोनर के पिता का नाम शरतचंद्र कोनर और माता का नाम सत्यबाला देवी था. बर्दवान के रायना थाना इलाके के कामारगरिया गांव में उनका जन्म हुआ. उन्होंने 1930 में मेमारी विद्यासागर स्मृति विद्यामंदिर में नौवीं में पढ़ते वक्त कानून भंग आंदोलन में हिस्सा लिया और गिरफ्तार हुए. उन्हें छह महीने के लिए जेल भेज दिया गया.

Also Read: आजादी के 75 वर्ष : कोलकाता में रेड रोड पर आयोजित होने वाली परेड में दिखेगी विशेष झलक
चरमपंथी आंदोलन में हिस्सा लेने पर किये गये गिरफ्तार

1932 में 15 सितंबर को कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंतर्गत बंगबासी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान देश से ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए उन्हें चरमपंथी आंदोलन में हिस्सा लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और 18 वर्ष की उम्र में 6 वर्ष के लिए अंडमान के सेलुलर जेल भेज दिया गया. गिरफ्तारी से पहले उनका संपर्क तब तक अब्दुल हलीम, बंकिम मुखर्जी, भूपेंद्रनाथ दत्त जैसे कम्युनिस्ट नेताओं के साथ हो गया था.

हरेकृष्ण कोनर ने अंडमान जेल में किया अनशन

अंडमान जेल में हरेकृष्ण कोनर ने 1933 में 12 मई को पहली बार अनशन किया. अनशन के दौरान कई स्वाधीनता सेनानियों की मौत हो गयी. मृतकों के शवों को समुद्र में फेंक दिया जाता था. 1933 में 26 दिनों के बाद यह अनशन समाप्त हुआ था. 200 अन्य स्वाधीनता सेनानियों के साथ उनका दूसरा अनशन अंडमान के स्वाधीनता सेनानियों की मांग के समर्थन में शुरू हुआ.

नेहरू, सुभाष चंद्र बोस ने किया अनशन खत्म करने का अनुरोध

जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, शरत चंद्र बोस, रवींद्रनाथ ठाकुर व अन्य ने अनशन समाप्त करने का अनुरोध किया था. 1937 में 28 अगस्त को गांधीजी, रवींद्रनाथ ठाकुर व कांग्रेस वर्किंग कमेटी का एक टेलीग्राम उन तक पहुंचा, जिसमें लिखा गया था, ‘समूचा राष्ट्र अनशन समाप्त करने के लिए आवेदन कर रहा है. आपकी मांगों को माना जायेगा.’

Also Read: Azadi Ka Amrit Mahotsav: राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर गिरफ्तार किये गये थे अतुलचंद्र घोष
1957 में विधायक बने हरेकृष्ण कोनर

इसके बाद 200 स्वाधीनता सेनानियों ने 36 दिन का अनशन समाप्त किया. 1938 में उन्हें जेल से मुक्ति मिली. 1939 में वह कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए. 1957 में बंगाल विधानसभा चुनाव में कालना सीट से हरेकृष्ण विजयी हुए. 1962 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर वह कालना सीट से जीत गये. 1967 में हरेकृष्ण को भूमि व भूमि सुधार मंत्री बनाया गया.

24 लाख भूमिहीन व गरीब किसानों में बांट दी जमीन

उन्होंने भूमि सीलिंग कानून के अतिरिक्त ऐसी जमीन को अधिग्रहण करने में अग्रणी भूमिका निभायी जो बेनामी या झूठे नाम पर रजिस्टर्ड थी. इस तरह से अधिग्रहित जमीन का परिमाण करीब एक मिलियन एकड़ था. इसके बाद हरेकृष्ण कोनर व विनय चौधरी के नेतृत्व में इस जमीन को करीब 24 लाख भूमिहीन व गरीब कृषकों में वितरित कर दिया गया. 23 जुलाई 1974 को कोलकाता में केवल 58 वर्ष की उम्र में हरेकृष्ण कोनर का कैंसर के चलते निधन हो गया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें