बरेली के सीएचसी में जन्मा ‘हार्लेक्विन बेबी’, 30 लाख बच्चों में से एक में होती है समस्या, जानें बीमारी की वजह

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.अजय पाल सिंह का कहना है कि हार्लेक्विन इक्थियोसिस बीमारी में बच्‍चे के शरीर में तेल बनाने वाली ग्रंथियां नहीं होने से त्‍वचा फटने लगती है. आंखों की पलकें पलटने की वजह से चेहरा डरावना लगने लगता है. पूरी दुनिया में अब तक इस बीमारी के 250 मामले सामने आए हैं.

By Sanjay Singh | September 2, 2023 2:08 PM
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Bareilly News: उत्तर प्रदेश में बरेली के बहेड़ी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पर एक दुर्लभ आनुवांशिक विकार से पीड़ित बच्चे का जन्‍म हुआ है. यह बच्चा एलियन की तरह दिख रहा है. मगर, बाल रोग विशेषज्ञों ने नवजात को त्वचा विकार (हार्लेक्विन इक्थियोसिस) बीमारी से पीड़ित बताया है.

स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टरों की टीम ने बच्चे के स्किन बायोप्सी के साथ ही केरिया टाइमिन की जांच को सैंपल लिया है. बच्चे के जन्म से पहले परिवार में काफी खुशियां थी. लेकिन, जन्म के बाद यह खुशियां गम में बदल गई हैं. दरअसल बरेली शहर से 45 किमी. दूर स्थित बहेड़ी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में दुर्लभ आनुवांशिक विकार (हार्लेक्विन इक्थियोसिस) से पीड़ित बच्चे का जन्म हुआ है. यह बच्चा नार्मल डिलीवरी से पैदा हुआ है. डॉक्टरों की टीम बच्चे की बीमारी की सही वजह जानने की कोशिश में जुट गई है.

इसके लिए बच्चे की स्किन बायोप्सी और केरिया टाइमिन जांच के लिए सैंपल लिया गया है. डॉक्‍टरों का कहना है कि ऐसे जन्‍मे बच्‍चों को हार्लेक्विन इक्थियोसिस बेबी कहा जाता है. बच्‍चे का शरीर पूरी तरह से सफेद और त्‍वचा जगह जगह से फटी हुई है.

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बच्चे की अजीब आवाज से दहशत में परिजन

बताया जा रहा है कि बच्चा जन्‍म के बाद अजीब तरह की आवाज निकाल रहा था. इससे परिवार वाले बुरी तरह से डर गए. वह तुरंत डॉक्टर के पास गए. डॉक्‍टरों ने परिजनों को दुर्लभ बीमारी के बारे में विस्तार से बताया. इसके बाद वह शांत हुए. हालांकि, परिजनों के बच्‍चे को लेकर घर जाने की बात सामने आई है. इसके साथ ही बहेड़ी इलाके में इस बच्‍चे के बारे में चर्चा बनी हुई है.

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.अजय पाल सिंह का कहना है कि इस बीमारी में बच्‍चे के शरीर में तेल बनाने वाली ग्रंथियां नहीं होने से त्‍वचा फटने लगती है. आंखों की पलकें पलटने की वजह से चेहरा डरावना लगने लगता है. पूरी दुनिया में अब तक इस बीमारी के 250 मामले सामने आए हैं. हालांकि, अधिकतर मामलों में बच्चे की जन्‍म के कुछ घंटे बाद ही मौत हो जाती है. बच्‍चे के अधिक दिन जीवित होने की संभावना नहीं रहती. क्‍योंकि, इसका कोई इलाज नहीं है.

बाल रोग विशेषज्ञ ने बताया कि हार्लेक्विन बेबी की मौत जन्‍म के दौरान या कुछ घंटे बाद ही हो जाती है. ये बच्‍चे प्रीमेच्‍योर होते हैं. यह विकार माता-पिता से बच्‍चे को ऑटोसोमल रिसेसिव पैटर्न से मिलता है, जो जीन के उत्‍परिवर्तन से होता है. शरीर में प्रोटीन और म्‍यूकस मेंबेरन की गैर मौजूदगी की वजह से बच्‍चे की हालत ऐसी हो जाती है.

30 लाख बच्चों में से एक में होती है समस्या

मेडिकल साइंस की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक करीब 30 लाख जन्म लेने वाले बच्चों में से एक ऐसा केस आता है. इसमें एक हार्लेक्विन इक्थियोसिस से पीड़ित बच्चे होता है. पूरी दुनिया में करीब 250 ऐसे मामले सामने आ चुके हैं.ऐसे बच्चों की दो से चार दिन या फिर कुछ घंटों में ही बाद मौत हो जाती है. कोई कारगर इलाज नहीं होने के कारण ऐसे बच्चों के जीने की संभावना न के बराबर होती है. ऐसे बच्चों के शरीर में प्रोटीन और म्यूकस मेंबरेन के नहीं होने से उनकी स्थिति ऐसा हो जाती है. इनकी त्वचा सख्त, मोटी और सफेद होती है.

शहर में 15 जून को भी हुआ था ऐसे बच्चे का जन्म

इस तरह के एक बच्चे का जन्म शहर के राजेंद्र नगर स्थित एक निजी अस्पताल में 15 जून को भी हुआ था. उस दुर्लभ बच्चे में भी त्वचा विकार (हार्लेक्विन इक्थियोसिस) से पीड़ित होने की बात सामने आई थी.हालांकि, उस बच्चे की मां के गर्भ में ही मृत्यु हो गई थी.

रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद, बरेली

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