Himachal Pradesh Assembly Election 2022: हिमाचल प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने एक दूसरे को मात देने के लिए चुनावी अभियान तेज कर दिया है. हालांकि, इस बार के चुनाव में भी बीजेपी ही प्रबल दावेदार मानी जा रही है. लेकिन, कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल की पार्टी AAP बीजेपी को सत्ता से बाहर करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती है और इसी के मद्देनजर वैसे मुद्दों पर फोकस किया जा रहा है, जिससे प्रदेश की ज्यादा से ज्यादा से आबादी जुड़ी हुई है.
राजनीति के जानकारों का मानना है कि हिमाचल प्रदेश में होने जा रहे इस बार के चुनाव में सेब भी एक मुद्दा रहेगा. बताया जा रहा है कि सेब आंदोलन का असर हिमाचल प्रदेश के 6 जिलों के 20 विधानसभा क्षेत्रों पर पड़ सकता है. जानकारों के मुताबिक, शिमला शहरी विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर अन्य 7 क्षेत्रों में ज्यादातर लोगों की आर्थिक निर्भरता सेब पर रहती है. इसी तरह, किन्नौर और लाहौल स्पीति में भी सेब का मुद्दा हावी रह सकता है. वहीं, कुल्लू के चारों विधानसभा क्षेत्रों के अलावा मंडी, सिरमौर और चंबा के कुछ चुनाव क्षेत्रों में भी सेब के चुनावी मुद्दा बनने की संभावना है.
बताया जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश के सेब बागवानों को ए, बी और सी ग्रेड के सेब का एमएसपी कश्मीर के सेब की तर्ज पर दिए जाने की मांग पर अब तक अमल नहीं हुआ है. कश्मीर में ए ग्रेड के सेब को 60, बी ग्रेड को 40 और सी ग्रेड को 26 रुपये प्रति किलो एमएसपी दिया जाता है. वहीं, हिमाचल में सिर्फ सी ग्रेड के सेब को समर्थन मूल्य साढ़े दस रुपये प्रति किलो दिया जा रहा है. जबकि, ए और बी ग्रेड के सेब की बिक्री बागवानों को बिचौलियों के तय दाम पर करनी पड़ रही है. वहीं, प्रदेश में सेब बागवानों को सुविधा के लिए छोटे कोल्ड स्टोर और विधायन इकाइयां स्थापित करने का मामला लंबे समय से उठता रहा है. बागवानों को यह सुविधा नहीं मिलने से मंडियों में सेब की फसल बेचना मजबूरी रहती है.
इसके अलावा, हिमाचल में कार्टन पर सरकार ने जीएसटी 18 फीसदी लगाया था और बागवानों को 6 फीसदी का उपदान देने का फैसला लिया गया. हालांकि, बागवानों ने बाजार से कार्टन खरीदे और छह फीसदी जीएसटी का लाभ अधिकांश बागवानों को नहीं मिला. सरकार इस दिशा में बागवानों को राहत नहीं दे पाई. पहले कांग्रेस और फिर बीजेपी सरकार के सामने सेब बागवानों का मामला उठाया जाता रहा है. दोनों ही दलों की सरकार से विदेशी सेब पर आयात शुल्क शत प्रतिशत लगाने की मांग की जाती रही है. ऐसा नहीं होने से हिमाचली सेब बाजार प्रतिस्पर्धा में कड़ा मुकाबला नहीं कर पा रहे है. इसको लेकर बागवानों में जबरदस्त रोष व्याप्त है. बताया जा रहा है कि इसका असर चुनाव के परिणामों पर साफ तौर दिखाई देगा.
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