Himachal Pradesh Election 2022: हिमाचल प्रदेश में एक ओर जहां बीजेपी मिशन रिपीट में जुटी है. वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस के सामने अपनी साख को बचाए रखने की चुनौती है. इन सबके बीच, हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी की एंट्री से इन दोनों प्रमुख सियासी दलों की मुश्किलें बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं जा सकता है. इधर, राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस बार के चुनाव में मुस्लिम पार्टियों की रणनीति का असर राजनीतिक समीकरण पर दिख सकता है.
हिमाचल की सत्ता पर दोबारा काबिज होने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत के साथ जुटी है. वहीं, दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी मैदान संभाल लिया है. जानकारी के मुताबिक, संघ ने करीब छह माह पहले ही पूरे प्रदेश में अपने स्तर पर प्रचार अभियान शुरू कर दिया था. संघ का मुख्य कार्यक्रम मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में हिंदू वोट को संगठित करना बताया जा रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए संघ के कार्यकर्ता लोगों तक पहुंच रहे हैं. बताया जा रहा है कि संघ की कोशिश है कि प्रदेश का हर हिंदू वोट करने जाए. संघ के कार्यकर्ता प्रचार के दौरान उन विधानसभा क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस कर रहे है, जहां मुस्लिम आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है और हिंदू वोट एकजुट हैं.
हिमाचल में सर्वाधिक आबादी राजपूतों की है. इसके अलावा दलित, ब्राह्रण और ओबीसी भी यहां सरकार बनाने में अहम भूमिका अदा करते हैं. 2017 के चुनाव में राज्य में बीजेपी राजपूतों की पसंदीदा पार्टी रही थी और उसे राजपूतों का 49 फीसदी वोट मिला था. वहीं, कांग्रेस के खाते में 36 फीसदी वोट गया था. हिमाचल में ब्राह्मणों की आबादी 18 फीसदी है और पिछले चुनाव में इस जाति का सर्वाधिक 56 फीसदी वोट बीजेपी के खाते में गया था, जबकि 35 फीसदी ब्राह्मणों ने कांग्रेस को पसंद किया था. राज्य में दलितों की 31 फीसदी आबादी एससी-एसटी समुदाय से है. 2017 के चुनाव में 48 फीसदी दलित वोट कांग्रेस के खाते में गया था और 47 फीसदी वोट बीजेपी को मिला था. ओबीसी की जनसंख्या 14 फीसदी है और पिछले चुनाव में ओबीसी मतदाताओं की पसंदीदा पार्टी बीजेपी रही थी और उसे ओबीसी का 48 फीसदी वोट मिला था, वहीं कांग्रेस के खाते में 43 फीसदी वोट गया था. हिमाचल में मुस्लिमों की आबादी सबसे कम है. पिछले चुनाव में इनकी पसंदीदा पार्टी कांग्रेस रही थी और सबसे ज्यादा 67 फीसदी मुस्लिम वोट कांग्रेस के खाते में ही गया था. वहीं, बीजेपी को 21 फीसदी मुस्लिम वोट मिला था. जबकि, शेष 12 फीसदी अन्य पार्टियों के बीच बांटा गया था.
हिमाचल प्रदेश देश का इकलौता ऐसा राज्य है, जहां पर राज्य के गठन से लेकर अब तक कोई भी मुस्लिम प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा तक नहीं पहुंचा है. बड़ी वजह राज्य की जनसंख्या में मुस्लिम आबादी को माना जाता है. आंकड़ों के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश की आबादी में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत 2.1 फीसदी से कुछ ज्यादा है. इस कारण हिमाचल की किसी भी विधानसभा सीट पर मुस्लिम निर्णायक भूमिका में नहीं है. बताया जाता है कि इन्हीं वजहों से लगभग सभी राजनीतिक दल मुस्लिम समुदाय से आने वाले व्यक्तियों को प्रत्याशी भी नहीं बनाते हैं. सामने आ रही जानकारी के मुताबिक, अभी तक हिमाचल में कोई मुस्लिम नेता भी उभर कर सामने नहीं आ सका है. 2011 के जनगणना के अनुसार, हिमाचल की कुल जनसंख्या 68,56,509 है. इस जनसंख्या में अनुसूचित जाति की आबादी 17,29,000 और अनुसूचित जनजाति की आबादी 3,92,000 है. जबकि. राज्य में अल्पसंख्यक आबादी 4.83 फीसदी है.
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उल्लेखनीय है कि हिमाचल में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सत्ता की अदला-बदली परंपरा रही है. ऐसे में कांग्रेस इस बार के चुनाव में बीजेपी के सत्ता से बाहर होने और खुद के वापसी की उम्मीद लगाए हुए हैं. 2017 के चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच 7.1 फीसदी मतों का अंतर रहा था. इधर, आम आदमी पार्टी के दिल्ली और अब पंजाब में मिली बंपर जीत के बाद से पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद है. आम आदमी पार्टी को हिमाचल में पंजाब से लगती सीटों पर बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. इसके अलावा, पार्टी की बागियों पर भी नजर है. ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि हिमाचल में कुछ सीटों पर आम आदमी पार्टी के पक्ष में नतीजे आएंगे, जिसका प्रभाव कहीं न कहीं कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों पर दिखेगा.
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