मायानगरी ऐसा मंच हैं जहा एक कलाकार आकार हर एक किरदार जी सकता हैं. बस उसकी उम्मीदें, उसके सपने जैसी बड़ी होनी चाहिए. तब कोई भी रोल उसके लिए नया या पुराना नहीं होगा. जी हां तुम बिन और ख्वाहिश जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैंडसम हंक हिमांशु मलिक ,अब वापस बड़े पर्दे पर वापसी कर रहे हैं लेकिन इस बार कैमरे के आगे नहीं बल्कि उसके पीछे रहकर ये संभालेंगे बड़ी कमान.
निर्देशक बनने के अपने फैसले के बारे में हिमांशु कहते हैं कि,” मुझे सामान्य प्रकार की फिल्में इतनी भाती नहीं हैं. जैसे करण जोहर की सुगर लेस्ड ओल्ड स्कूल फिल्में, यश राज की मॉडर्न चादर ओढ़े फिल्मे, जो कही न कही एक भारतीय कल्चर को अपने ढंग से दिखाने की कोशिश की. फिर लहर आई अनुराग कश्यप की स्वतंत्र फिल्मों की, जो बहुत अच्छी थी लेकिन मैं अपने विषय को उसमे भी ढूंढता था जो मुझे नही मिली. जिन कहानियों और दुनिया में मैं पला-बढ़ा हूं, उन्हें बताया नहीं जा रहा था और मैं बस उठकर उन्हें कहना चाहता था.” मैने उनका संग्रह बनाना शुरू किया और मैंने कहानियों को लिखा और वहां से उस रास्ते की शुरुआत की जहां मैं अभी हूं.”
यह पूछे जाने पर कि क्या वह फिल्म में अभिनय भी कर रहे हैं, हिमांशु कहते हैं, “नहीं, मैं नहीं हूं, हालांकि एक बेहतर कलाकार की कमी के कारण मैंने एक्टिंग की लेकिन वो बहुत ज्यादा नहीं थी. उतनी उपस्थिति तो मैं वैसे भी प्रोडक्शन के दौरान कर रहा था.”
एक अभिनेता से निर्देशक बनने के अपने सफर के बारे में हिमांशु कहते हैं, “दरअसल, एक निर्देशक के रूप में जो कौशल सबसे अधिक काम आया, वह यह है कि मैं इसके पहले एक अभिनेता रह चुका हूं. फिल्म मेकिंग एक अद्भुत इंसानी कला हैं. जब तक आपके एक्टर उस बिंदु नहीं होंगे तब तक वो कहानी उस तरीके से नहीं बताई जा सकती, जिस तरीके से आप बताना चाह रहे हैं. इसीलिए मेरा बैक ग्राउंड वाकई काम आया. निर्देशन का ऋदम जानने के लिए एक अभिनेता होना बेहद जरूरी हैं. मेरे इस सफर के लिए बहुत लोगो की आपत्ति, नाखुशी और मुंह दबाकर हसनेवालो की भीड़ देखी मैंने ,लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ा.”
अपनी फिल्म के बारे में बताते हुए हिमांशु कहते हैं, “यह प्यार और बारीकियों के बारे में एक ध्यान है जो रिश्तों की अनिश्चित दुनिया के लिए बनाता है. यह भी प्यार पाने और खोने की एक साधारण सी कहानी है. ‘चित्रकूट’ वह स्थान है जहाँ राम और सीता ने वनवास के अपने शुरुवाती वर्ष बिताए थे, कुछ ग्रंथों में वे एक-दूसरे के साथ आनंद में रहने के लिए जाने जाते थे. चित्रकूट में रहने के बाद कभी नहीं, बल्कि उनके अपहरण के बाद उनका बंधन टूट गया था. वे अयोध्या में पुत्र, राजा, भाई थे- क्या वे उतने ही खुश थे जितने चित्रकूट में थे. जीवन और प्रेम का यही रूपक चित्र मेरे फिल्म का आधार बना.” फिल्म 20मई को सिनेमा घरों में रिलीज की जाएगी .