Hola Mohalla: स्वर्ण मंदिर में मनाया गया होला मोहल्ला, जानें इससे जुड़ी खास बातें
Hola Mohalla: शनिवार को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में होला मोहल्ला मनाया गया. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में भक्त स्वर्ण मंदिर माथा टेकने पहुंचे.पालकी को फूलों से सजाया गया था. इस दौरान सभी पारंपरिक अनुष्ठान किए गए.
शनिवार को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में होला मोहल्ला मनाया गया. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में भक्त स्वर्ण मंदिर माथा टेकने पहुंचे.पालकी को फूलों से सजाया गया था. इस दौरान सभी पारंपरिक अनुष्ठान किए गए. होला मोहल्ला के दौरान स्वर्ण मंदिर और उसके आसपास मेले जैसा नजारा रहता है.
#WATCH | Devotees celebrate 'Hola Mohalla', a three-day-long festival at the Golden Temple in Amritsar, Punjab pic.twitter.com/pdRvbmYIr6
— ANI (@ANI) March 19, 2022
कब मनाया जाता है होला मोहल्ला
होला मोहल्ला हर साल चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र कृष्ण षष्ठी तिथि तक मनाया जाता है. छह दिवसीय यह पावन पर्व होला मोहल्ला तीन दिन गुरुद्वारा कीरतपुर साहिब और तीन दिन तख्त श्री केशगढ़ साहिब आनन्दपुर साहिब में पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है.
ऐसे मनाया जाता है होला मोहल्ला उत्सव
हर साल देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग होला मोहल्ला पावन पर्व में शामिल होने के लिए आनंदपुर साहिब पहुंचते हैं. इस पावन पर्व की शुरुआत विशेष दीवान में गुरुवाणी के गायन से होता. होला मोहल्ला के दिन श्रीकेसगढ़ साहिब में पंज प्यारे होला मोहल्ला की अरदास करके आनंदपुर साहिब पहुंचते हैं.
इस दिन आपको यहां पर तमाम तरह के प्राचीन एवं आधुनिक शस्त्रों से लैस निंहग हाथियों और घोड़ों पर सवार होकर एक-दूसरे पर रंग फेंकते हुए दिख जाएंगे. इस दौरान आपको यहां पर तमाम तरह के खेल जैसे घुड़सवारी, गत्तका, नेजाबाजी, शस्त्र अभ्यास आदि देखने को मिलेंगे. आनंदपुर साहिब के होला मोहल्ला में आपको न सिर्फ शौर्य का रंग को देखने को मिलता है, बल्कि यहां पर लगने वाले तमाम छोटे-बड़े लंगर में स्वादिष्ट प्रसाद भी खाने को मिलता है. जिसमें आपको हर छोटा-बड़ा शख्स लोगों की सेवा करता दिखता है.
ऐसे हुई होला मोहल्ला की शुरुआत
होला मोहल्ला पर्व की शुरुआत से पहले होली के दिन एक-दूसरे पर फूल और फूल से बने रंग आदि डालने की परंपरा थी लेकिन गुरु गोविंद सिंह जी ने इसे शौर्य के साथ जोड़ते हुए सिख कौम को सैन्य प्रशिक्षण करने का आदेश दिया. उन्होंने होला मोहल्ला की शुरुआत करते हुए सिख समुदाय को दो दलों में बांट कर एक-दूसरे के साथ छद्म युद्ध करने की सीख दी. जिसमें विशेष रूप से उनकी लाडली फौज यानि कि निहंग को शामिल किया गया जो कि पैदल और घुड़सवारी करते हुए शस्त्रों को चलाने का अभ्यास करते थे. इस तरह तब से लेकर आज तक होला मोहल्ला के पावन पर्व पर अबीर और गुलाल के बीच आपको इसी शूरता और वीरता का रंग देखने को मिलता है.