Holi 2022: काशी में धधकती चिताओं के बीच खेली जाती है चिता भस्म होली, देखें तस्वीरें
Holi 2022: काशी में प्रत्येक वर्ष रंगभरनी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चीता भस्म की होली खेली जाती हैं. यहां बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महाश्मशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते है.
Holi 2022, Varanasi News: मोक्ष नगरी काशी… जहां मृत्यु भी उत्सव हैं.. जहां स्वयं देवाधिदेव महादेव महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर अपने गणों और भक्तों के साथ धधकती चिताओं के बीच चिता भस्म की होली खेलते हैं. काशी दुनिया की एकमात्र ऐसी नगरी है, जहां मृत्यु से लेकर मोक्ष तक का सफर विरह से लेकर आनन्द तक के बीच में तय किया जाता है. ऐसे में होली जैसे महापर्व को मनाने का तरीका भी काशी नगरी में अनोखा है.
प्रत्येक वर्ष यहां रंगभरनी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चीता भस्म की होली खेली जाती हैं. यहां बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महाश्मशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते हैं. यह परम्परा अनादि काल से यहां भव्य रूप से मनायी जाती रही है.
यहां शिव भक्त अड़भंगी मिजाज से फगुआ के गीत गाते हुए देश और दुनिया को यह संदेश देते हैं कि काशी में जन्म और मृत्यु दोनों ही उत्सव है. रंगभरनी एकादशी के ठीक अगले दिन होने वाली चिता भस्म की होली के साक्षी बनने के लिए देश और दुनिया भर से लोग काशी आते हैं.
काशी में मणिकर्णिका घाट पर यह दुर्लभ चिता भस्म होली मनाई जाती है. सुबह से ही भक्त जन दुनिया की दुर्लभ, चिता भस्म से खेली जाने वाली होली की तैयारी में लग गए. बाबा के मध्याह्न स्नान के बाद का समय मणिकर्णिका तीर्थ पर देखते ही बनता है, क्योंकि इस वक्त भक्तों का उत्साह चरम सीमा पर रहता है.
बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि काशी में यह मान्यता है कि रंगभरनी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं, जिसे उत्सव के रूप में काशीवासी मनाते हैं और तभी से रंगों का त्योहार होली का प्रारम्भ माना जाता है. इस उत्सव में देवी, देवता, यक्ष, गन्धर्व, मनुष्य सभी शामिल होते हैं. जो शामिल नहीं होते हैं, वो हैं बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य, अदृश्य, शक्तियां, जिन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा है. लेकिन बाबा तो बाबा हैं, वो कैसे अपनों की खुशियों का ध्यान नहीं देंगे.
अंत समय में सबका बेड़ा पार लगाने वाले शिव शम्भू उन सभी के साथ चीता भस्म की होली खेलने मशान आते हैं और उस दिन से ही सम्पूर्ण विश्व को हर्ष-उल्लास देने वाले त्योहार होली का आरम्भ होता हैं, जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं. ऐसी मान्यता हैं कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं. उनके स्नान के बाद सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुण्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और वहां स्नान करने वालों को वह पुण्य बांटते हैं. अंत में बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महामशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते हैं.
काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाये जाने वाले उत्सव को देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं. इस अद्भुत, अद्वितीय, अकल्पनीय होली को देखकर, खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के सास्वत सत्य से परिचित होकर बाबा में अपने को आत्मसात कर शिवोहम् हो जाते हैं. इस आयोजन में गुलशन कपूर के द्वारा बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली (शिव शक्ति) का मध्याह्न आरती कर बाबा व माता को चिता भस्म व गुलाल चढाया जाता है और होली प्रारंभ किया जाता हैं जिससे पुरा मंदिर प्रांगण और शवदाह स्थल भस्म से भर जाता है.
फोटो रिपोर्ट- विपिन सिंह, वाराणसी