होली (Holi) रंगों का त्योहार है. इस बार यह त्योहार 18 और 19 मार्च दोनों ही दिन मनाया जा रहा है. खासतौर पर बिहार और झारखंड में होली का त्योहार 19 मार्च है. रंग वाली होली मनाने से पहले फाल्गुन मास की पूर्णिमा (Phalguna Purnima) तिथि को होलिका दहन किया जाता है. इसके बाद चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि पर होली का त्योहार मनाया जाता है. होलिका दहन के लिए किस पेड़ की लकड़ियों का इस्तेमाल करना चाहिए और होलिका दहन के लिए किस पेड़ की लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जानने के लिए आगे पढ़ें.
होलिका दहन के लिए लोग कई दिनों पहले से लकड़ियों का इंतजाम करते हैं. लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुछ पेड़ ऐसे होते हैं, जिन्हें हिंदू धर्म में काफी पूज्यनीय माना जाता है, उन पेड़ों की लकड़ियों को होलिका दहन के लिए प्रयोग में नहीं लाने की सलाह दी जाती है. जान लीजिए कौन-कौने पड़े की लकड़ियां होलिका की अग्नि में नहीं जलानी चाहिए.
बरगद, शमी, आंवला, बेल, नीम, पीपल, आम और केला के पेड़ की लकड़ियों का प्रयोग होलिका दहन के दौरान नहीं करना चाहिए. हिंदू धर्म में इन पेड़ों को काफी पवित्र और पूज्यनीय माना गया है. इनकी पूजा की जाती है और इनकी लकड़ियों का प्रयोग यज्ञ, अनुष्ठान जैसे अत्यंत शुभ कार्यों के लिए किया जाता है. होलिका दहन को जलते हुए शरीर का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस कार्य में इन पूज्यनीय पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
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होलिका दहन के लिए गूलर और अरंडी के पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल किया जा सकता है. बसंत के मौसम में गूलर के पेड़ की टहनियां सूख कर अपने आप गिर जाती हैं. इतना ही नहीं गूलर की लकड़ियां जलती भी बहुत जल्दी हैं. होलिका दहन के लिए किसी भी हरे भरे पेड़ की लकड़ी को काटने से परहेज करना चाहिए. आप खरपतवार या किसी अन्य पेड़ की सूखी लकड़ी जो पहले से टूटी पड़ी हो, उसका भी इस्तेमाल होलिका दहन के लिए कर सकते हैं. होलिका दहन के लिए लकड़ियों के अलावा गोबर के उपलों का भी प्रयोग किया जा सकता है.