धनबाद, सत्या राज : आठ मार्च को होली है. इसे लेकर लोगों में उत्साह का माहौल है. एक-दूसरे को रंग-गुलाल से सराबोर करने की तैयारी की जा रही है. लेकिन रंगों के इस त्योहार में अनेक लोग रंग-गुलाल लगाने से बचते हैं. कारण केमिकल युक्त रंग गुलाल त्वचा और आंखों के लिए नुकसानदेह होते हैं. ऐसे में विकल्प के तौर पर हर्बल रंग-गुलाल खूब पसंद किये जा रहे हैं. इसकी मांग को देखते हुए तेजस्विनी क्लब टिकियापाड़ा पुराना बाजार की सदस्य हर्बल गुलाल तैयार कर रही हैं.
क्लब से जुड़ी पांच सदस्य सब्जियों व फूलों से गुलाल व रंग तैयार कर रही हैं. ग्रुप की लीडर साइबा खान बताती हैं : 15 फरवरी से हमने हर्बल रंग व गुलाल तैयार करना शुरू कर दिया है. दोपहर में तीन-चार घंटे काम कर हम रोज 10 किलो रंग, गुलाल तैयार कर लेते हैं. टीम में नैना कौशर, मुस्कान श्रीवास्तव, जरा खान, निक्की कौशर शामिल हैं. घर बैठे हमारा व्यवसाय चल रहा है.
साइबा ने बताया कि हमने तेजस्विनी क्लब से तीन हजार रुपये लोन लिया है. उसी पूंजी से काम शुरू किया. एक किलो गुलाल बनाने में ढाई से तीन सौ रुपये लगते हैं. जिसे होलसेल में चार सौ रुपये प्रति किलो की दर से बेचते हैं. रोज करीब दस किलो गुलाल तैयार हो जाता है. वहीं रंगों के 10 से 12 ग्राम के पाउच का पैकेट बनाते हैं. जिसे होलसेल वाले पांच रुपये प्रति डिब्बा लेते हैं. खुला लेने पर प्रति पुड़िया एक रुपये में बेचते हैं.
पालक, चुकुंदर, पलाश के फूल, गेंदा फूल, नीम के पत्ते, हल्दी, गुलाब जल से हर्बल रंग या गुलाल तैयार किये जा रहे हैं. चुकंदर का रंग निकालकर उसे आरारोट में मिलाकर छांव में सूखाते हैं. फिर उसमें गुलाब जल मिलाकर पैकेजिंग की जाती है. इससे गुलाबी रंग तैयार होता है. लाल रंग बनाना है तो चुकंदर का रस अधिक मात्रा में मिलाया जाता है. इसी तरह फूलों की पंखुड़ियों को या तो पानी में रात भर भिगो लेते हैं या उबाल लेते है. उसे ठंडा कर उसमें आरारोट मिलाकर गुलाब जल मिलाते हैं. छांव में सूखा कर पैकेटिंग करते हैं. गेंदा, पलाश के फूल से केसरिया रंग, नीम के पत्ते व पालक के रस से हरा रंग तैयार होता है. हल्दी से पीला रंग बनाया जाता है. फूलों व सब्जियों के रस निकालने के बाद बची हुई सामग्री को सूखाकर उसे बारिक पीस लें. आपका प्राकृतिक रंग तैयार है. इससे कोई नुकसान नहीं होता है. हर्बल कलर आसानी से छूट जाता है.
क्लब की सदस्यों द्वारा तैयार हर्बल कलर रांगाटांड़ व पुराना बाजार के होलसेल मार्केट में पहुंच रहे हैं. साइबा ने बताया पहले पुराना बाजार के होलसेलर हमें रंग-गुलाल बनाने की सामग्री देकर प्रशिक्षण देते थे. लेकिन मेहताना बहुत कम देते थे. जब से तेजस्विनी क्लब से जुड़े और को-ऑर्डिनेटर अनुशअरी लायक से पता चला हमें व्यवसाय के लिए लोन मिलेगा, हमने खुद का व्यवसाय करने की ठानी. होली करीब था. इसलिए हर्बल रंग का काम शुरू किया.