झारखंड के इस गांव में खेली जाती है ढेला मार होली, लोगों की उमड़ती है भीड़, जानें इसके पीछे की मान्यता
होलिका दहन के दिन पूजा के बाद गांव के पुजारी मैदान में खंभा गाड़ देते हैं और अगले दिन इसे उखाड़ने और पत्थर मारने के उपक्रम में भाग लेने के लिए गांव के तमाम लोग इकट्ठा होते हैं
लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड अंतर्गत बरही चटकपुर गांव में ढेला मार होली खेली जाती है. जो पूरे राज्य में प्रसिद्ध है. ग्रामीणों की मानें तो साल संवत कटने के दूसरे दिन लोग धर्म के प्रति आस्था के साथ खूंटा उखाड़ने जाते हैं, और उसी वक्त लोग खूंटा उखाड़ने वालों को ढेला से मारते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
ऐसा कहा जाता है होलिका दहन के दिन पूजा के बाद गांव के पुजारी मैदान में खंभा गाड़ देते हैं और अगले दिन इसे उखाड़ने और पत्थर मारने के उपक्रम में भाग लेने के लिए गांव के तमाम लोग इकट्ठा होते हैं, और मैदान के चारों ओर लोग जमा होकर खूंटा उखाड़ने वालों पत्थर से मारते हैं. इसे देखने के लिए न सिर्फ जिले के लोग पहुंचते हैं बल्कि आस-पास के कई जगहों से भी इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है.
हैरत की बात ये कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी इसमें शिरकत करते हैं और खूंटा उखाड़ने के लिए दौड़ते हैं. मान्यता है कि पत्थर लगने से किसी को चोट नहीं लगती है. और जो पत्थर लगने के बावजूद बिना डरे खूंटा को उखाड़कर देवी मंडप के पीछे फेंक देता है उसे सुख शांती समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस परंपरा को करने और इसमें शामिल होने के लिए कई दिन पहले से ही लोगों की उत्सुकता देखने को मिलती है. स्थानीय लोगों की मानें उनके पूर्वज भी इस ढेला मार होली में शिरकत करते थे.
दूसरे गांव के लोग नहीं हो सकते हैं शामिल
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि दूसरे गांव से आये लोग इस ढेला मार को देख सकते हैं, इसमें शामिल नहीं हो सकते हैं. मान्यता है कि चोरी-छिप्पे अगर दूसरे गांव लोग शामिल हो भी जाते हैं तो उनके साथ अप्रिय घटना घटती है. इस खेल में शिरकत करने से पहले लोग नये दमादों का पगड़ी पहनाकर और अंग वस्त्र देकर ढोल नगाड़ों के साथ स्वागत किया जाता है. इसके अलावा पाहन, पुजार, महतो व मुसलिम समाज के दामादों को भी सम्मानित किया जाता है.