‘गुलुपापा’ की याद में अस्पताल खोलने का लिया संकल्प

बसंती ने कहा कि उसने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. मेरा लक्ष्य उनकी याद में जानवरों के लिए एक अस्पताल खोलना है. बसंती के पति चंद्र शेखर महापात्रा ने भी यही भावना व्यक्त की. कहा कि मेरे परिवार के सदस्यों ने पहली बार उन्हें भुवनेश्वर के टैंकपानी रोड के एक व्यक्ति के विज्ञापन के माध्यम से देखा था.

By Prabhat Khabar News Desk | October 12, 2023 10:08 PM

ओडिशा के खोरधा जिले में एक परिवार ने अपने पालतू कुत्ते को श्रद्धांजलि दी और उसकी मृत्यु के बाद हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार सभी अनुष्ठान किये. खोरधा गांधी पाडिया के चंद्र शेखर महापात्र के परिवार ने अपने पालतू कुत्ते ”गुलुपापा” को अपने बेटे की तरह विदाई दी. 14 साल तक चंद्र शेखर के परिवार की सेवा करने वाले पालतू कुत्ते को अंतिम विदाई देने के लिए बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. मालकिन बसंती महापात्रा ने कहा कि मेरी अपनी कोई संतान नहीं है. वह मेरा बेटा था और 14 साल तक मेरे साथ रहा. उनके निधन के बाद मैं टूट गयी हूं. उनकी उपस्थिति से मुझे कभी बच्चा न होने का बुरा अहसास नहीं हुआ. बसंती ने कहा कि उसने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. मेरा लक्ष्य उनकी याद में जानवरों के लिए एक अस्पताल खोलना है. बसंती के पति चंद्र शेखर महापात्रा ने भी यही भावना व्यक्त की और कहा कि जब मैं उसे घर लाया तो वह सिर्फ 1 महीने का था. मेरे परिवार के सदस्यों ने पहली बार उन्हें भुवनेश्वर के टैंकपानी रोड के एक व्यक्ति के विज्ञापन के माध्यम से देखा था. इसलिए हमने इसे अपनाने का फैसला किया. लेकिन, जिस तरह से उन्होंने हमारे साथ व्यवहार किया और बदले में हमसे प्यार किया, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता.

वह हमसे इतना प्यार करते थे कि हमें जानवरों से प्यार होने लगा. उसने मुझे प्रेरित किया और हममें इतना प्यार भर दिया कि हम सड़क के कुत्तों और गायों से प्यार करने लगे और उनकी देखभाल करने लगे. दुखी चंद्र शेखर ने कहा कि उसने मेरे दैनिक जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव डाला. सुबह से लेकर रात तक वह मेरे साथ ही रहता. अगर मैं देर से घर लौटती तो वह मेरा इंतजार करता रहता. इसलिए हम एक परिवार के रूप में अब वही प्यार फैलाना चाहते हैं जो उन्होंने हमें दिया था.

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विद्यालयों में उर्दू की शिक्षा पर जोर देने का निर्णय

झारखंड अंजुमन तरक्की उर्दू चक्रधरपुर इकाई की टीम सचिव अनीस जमाल के नेतृत्व में सभी उर्दू स्कूलों का भ्रमण किया. इस दौरान अधिकतर स्कूलों में शिक्षकों की कमी मिली. टीम के सदस्यों ने स्कूल में पढ़ रहे बच्चों से विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे. बालिकाओं की ओर से अधिकतर उत्तर मिले, लेकिन बालक काफी कमजोर दिखे. वहीं, प्रारंभिक विद्यालयों में उर्दू की शिक्षा पर जोर देने का निर्णय लिया गया है. अनीस ने बताया कि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की घोर किल्लत है. इसके बावजूद स्कूल में शिक्षक और घरों में अभिभावकों को बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना होगा. हमारी ओर से बंगलाटांड और सिमिदीरी में मुफ्त कोचिंग सेंटर खोला जायेगा. जहां बच्चों को बेसिक शिक्षा दी जायेगी.

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